SUBHASHITANI: संस्कृत श्लोक "महताप्यर्थसारेण यो विश्वसिति शत्रुषु" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण
🌸 जय श्रीराम – सुप्रभातम् 🌸
आज का श्लोक हमें विश्वास (trust) के दुरुपयोग और उसकी सीमा के विषय में चेतावनी देता है।
📜 संस्कृत मूल
महताप्यर्थसारेण यो विश्वसिति शत्रुषु ।
भार्यासु च विरक्तासु तदन्तं तस्य जीवनम् ॥
🔤 IAST Transliteration
mahatāpy arthasāreṇa yo viśvasiti śatruṣu ।
bhāryāsu ca viraktāsu tad antaṁ tasya jīvanam ॥
🇮🇳 हिन्दी भावार्थ
जो पुरुष, चाहे बड़े लाभ के कारण ही क्यों न हो,
- अपने शत्रुओं पर विश्वास करता है, अथवा
- अपनी ऐसी पत्नी पर भरोसा करता है जो उससे विरक्त (अविश्वासी, परपुरुषासक्त) हो चुकी है,
उसके जीवन का अन्त निकट समझना चाहिए।
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SUBHASHITANI: संस्कृत श्लोक "महताप्यर्थसारेण यो विश्वसिति शत्रुषु" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण |
📚 व्याकरणिक विश्लेषण
- महतापि अर्थसारेण → बड़े लाभ या विशेष प्रयोजन की दृष्टि से भी।
- विश्वसिति → भरोसा करता है।
- शत्रुषु → शत्रुओं पर।
- भार्यासु च विरक्तासु → ऐसी स्त्रियों पर जो पतिव्रता धर्म से विमुख हो गई हों।
- तदन्तं तस्य जीवनम् → उसके जीवन का नाश समझो।
🌼 नीति संदेश
👉 शत्रु का स्वभाव ही छल और विनाश है।
👉 पतिव्रता धर्म से विरक्त स्त्री का भरोसा करना अपने जीवन को संकट में डालना है।
👉 विश्वास जीवन का आधार है, परंतु उसे सही स्थान पर ही रखना चाहिए।
🪔 आधुनिक सन्दर्भ
- आज के समय में यह शिक्षा हमें सावधान करती है कि
- व्यावसायिक जीवन में अपने प्रतिद्वंद्वी (rivals) पर आँख मूँदकर भरोसा न करें।
- निजी जीवन में जहाँ विश्वासघात (betrayal) हो चुका हो, वहाँ अंधविश्वास घातक सिद्ध होता है।
- बिना परखे किसी पर भरोसा करना जीवन और प्रतिष्ठा दोनों के लिए विनाशकारी है।
✅ शिक्षा
👉 विश्वास उसी पर करो जो वास्तव में विश्वसनीय हो।
👉 शत्रु और अविश्वासी संबंधों पर भरोसा करना जीवन का अंत लाने जैसा है।