वृष्टियोग (Vrishti Yoga in Astrology) – Definition, Conditions, Effects and 30th Year Fortune Rise
जानिए वृष्टियोग (Vrishti Yoga) क्या है? इसकी परिभाषा, ज्योतिषीय शर्तें, प्रभाव और 30वें वर्ष में होने वाले भाग्योदय का विस्तृत विवरण। Vrishti Yoga in Astrology explained with conditions and results.
🌟 वृष्टियोग (Vrishti Yoga) 🌟
📜 श्लोक
कर्मांशकगते मन्दे तुं गे चन्द्रसमन्विते ।
निशि जन्म चरे लग्ने वृष्टियोग इतीरितः ॥
🔎 पदच्छेद एवं शाब्दिक अर्थ
- कर्मांशकगते मन्दे – जब मन्द ग्रह (शनि) दशम भाव (कर्म भाव) में स्थित हो।
- तुं गे चन्द्रसमन्विते – और वह शनि तुला राशि में चन्द्रमा के साथ स्थित हो।
- निशि जन्म – जन्म रात्रि के समय हुआ हो।
- चरे लग्ने – लग्न चर राशि (मेष, कर्क, तुला, मकर) में हो।
- वृष्टियोग इतीरितः – तो यह योग वृष्टियोग कहलाता है।
🌌 योग की शर्तें (Conditions of Vrishti Yoga)
- चर लग्न (मेष, कर्क, तुला, मकर) में जन्म होना चाहिए।
- जन्म रात्रि के समय हुआ हो।
- शनि तुला राशि (उसकी उच्च राशि) में हो।
- शनि और चन्द्रमा दशम भाव (कर्म भाव) में एक साथ स्थित हों।
👉 विशेष ध्यान दें : यह योग केवल मकर लग्न वाली कुण्डली में ही सम्भव है, क्योंकि मकर लग्न में दशम भाव तुला राशि होता है।
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वृष्टियोग (Vrishti Yoga in Astrology) – Definition, Conditions, Effects and 30th Year Fortune Rise |
✨ फल (Results of Vrishti Yoga)
- इस योग से जातक का भाग्योदय (fortune rise) प्रायः 30वें वर्ष में होता है।
- शनि उच्च राशि में दशम भाव में होने से जातक को
- कठिन परिश्रम,
- स्थिर प्रगति,
- उच्च पद और यश प्राप्त होता है।
- चन्द्रमा के साथ संयोग होने से जातक का सामाजिक प्रभाव बढ़ता है और समाज में प्रतिष्ठा मिलती है।
- यह योग जातक को धैर्यवान, कर्मनिष्ठ और विलम्ब से सफलता पाने वाला बनाता है।
🪔 सारांश
वृष्टियोग एक अत्यंत दुर्लभ और प्रभावशाली योग है। इसका फल त्वरित नहीं मिलता, बल्कि जातक को संघर्ष और धैर्य के बाद लगभग 30वें वर्ष से जीवन में सफलता और स्थायित्व प्राप्त होता है। यह योग जातक को कर्मठ, अनुशासित, और अंततः समाज में सम्माननीय व्यक्तित्व बनाता है।