समय अनुसार उग्रता और कोमलता | Ugratva & Mriduta in Life – Sanskrit Niti Shloka Explained

Sooraj Krishna Shastri
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यह संस्कृत नीति श्लोक “उग्रत्वं च मृदुत्वं च समयं वीक्ष्य संश्रयेत्” जीवन में संतुलित व्यवहार का अत्यंत गूढ़ संदेश देता है। इस श्लोक के माध्यम से बताया गया है कि व्यक्ति को परिस्थिति और समय को देखकर ही उग्रता या कोमलता अपनानी चाहिए। सूर्य स्वयं इसका सर्वोत्तम उदाहरण है—वह पहले अंधकार को दूर करता है और उसके बाद ही अपनी तीव्रता प्रकट करता है।

यह लेख इस नीति श्लोक का शब्दार्थ, व्याकरणात्मक विश्लेषण, भावार्थ, आधुनिक सन्दर्भ, नेतृत्व एवं जीवन-प्रबंधन में उपयोग, संवादात्मक नीति-कथा तथा निष्कर्ष सहित विस्तृत विवेचन प्रस्तुत करता है।

शिक्षक, छात्र, प्रशासक, नेतृत्वकर्ता और आध्यात्मिक चिंतन करने वाले पाठकों के लिए यह लेख अत्यंत उपयोगी है।

यदि आप Sanskrit Niti Shloka Explained in Hindi, Life Lessons from Sanskrit, Leadership and Behaviour Ethics, या Time Based Decision Making जैसे विषयों में रुचि रखते हैं, तो यह लेख आपके लिए विशेष रूप से लाभकारी सिद्ध होगा।

समय अनुसार उग्रता और कोमलता | Ugratva & Mriduta in Life – Sanskrit Niti Shloka Explained

समय अनुसार उग्रता और कोमलता | Ugratva & Mriduta in Life – Sanskrit Niti Shloka Explained
समय अनुसार उग्रता और कोमलता | Ugratva & Mriduta in Life – Sanskrit Niti Shloka Explained


1️⃣ मूल श्लोक (संस्कृत)

उग्रत्वं च मृदुत्वं च समयं वीक्ष्य संश्रयेत् ।
अन्धकारमसंहृत्य नोग्रो भवति भास्करः ॥


2️⃣ English Transliteration (IAST)

Ugratvaṁ ca mṛdutvaṁ ca
samayaṁ vīkṣya saṁśrayet |
andhakāram asaṁhṛtya
nogro bhavati bhāskaraḥ ||


3️⃣ शुद्ध हिन्दी अनुवाद

मनुष्य को समय और परिस्थिति को भली-भाँति देखकर कभी उग्रता और कभी कोमलता का आश्रय लेना चाहिए, क्योंकि सूर्य भी पहले अंधकार को दूर करता है, उसके बाद ही उग्र (तीव्र) बनता है।


4️⃣ शब्दार्थ (Padārtha)

शब्द अर्थ
उग्रत्वम् कठोरता, तीव्रता
मृदुत्वम् कोमलता, सौम्यता
च…च और…और
समयम् काल, परिस्थिति
वीक्ष्य देखकर, विचार करके
संश्रयेत् आश्रय ग्रहण करे
अन्धकारम् अज्ञान, अंधेरा
असंहृत्य न हटाकर, न मिटाकर
नहीं
उग्रः तीव्र, प्रखर
भवति होता है
भास्करः सूर्य

5️⃣ व्याकरणात्मक विश्लेषण (Grammatical Analysis)

  • उग्रत्वं, मृदुत्वं – नपुंसकलिङ्ग, एकवचन, द्वितीया विभक्ति
  • समयं – पुंलिङ्ग, द्वितीया विभक्ति
  • वीक्ष्य – क्त्वा-प्रत्ययान्त अव्यय (Gerund – देखकर)
  • संश्रयेत् – लोट् लकार, विधिलिङ् भाव, प्रथम पुरुष एकवचन
  • असंहृत्य – क्त्वा प्रत्यय, निषेधार्थक प्रयोग
  • भास्करः – पुंलिङ्ग, प्रथमा विभक्ति
  • नोग्रः = न + उग्रः (सन्धि)

➡️ श्लोक में कर्तव्य-बोध (Normative Ethics) और दृष्टान्त-अलंकार का सुंदर प्रयोग है।


6️⃣ भावार्थ एवं तात्त्विक विवेचन

यह श्लोक बताता है कि—

  • उग्रता और मृदुता दोनों दोष नहीं हैं, दोष है उनका असमय प्रयोग
  • सूर्य स्वयं आदर्श है—
    • प्रातःकाल में वह सौम्य होता है
    • अंधकार नष्ट होने के बाद ही उसकी उग्रता लोककल्याणकारी बनती है

अर्थात्—

पहले समस्या (अंधकार) का समाधान,
फिर शक्ति (उग्रता) का प्रयोग।


7️⃣ आधुनिक सन्दर्भ (Contemporary Relevance)

🔹 शिक्षा में

शिक्षक को कभी अनुशासन में कठोर, तो कभी छात्र की भावनाओं के प्रति कोमल होना चाहिए।

🔹 प्रशासन एवं नेतृत्व में

नेता यदि हर समय उग्र रहेगा तो विद्रोह जन्म लेगा,
और हर समय कोमल रहेगा तो अनुशासन टूटेगा।

🔹 पारिवारिक एवं सामाजिक जीवन में

माता-पिता, गुरु, अधिकारी—सभी के लिए यह श्लोक Balanced Leadership का सूत्र है।


8️⃣ संवादात्मक नीति-कथा (Didactic Story)

शिष्य: गुरुदेव! क्या कठोर होना बुरा है?
गुरु: नहीं पुत्र, पर असमय कठोरता अंधकार बढ़ाती है।
शिष्य: तब सही समय कैसे पहचानें?
गुरु: सूर्य को देखो—वह पहले प्रकाश देता है, तपन बाद में।
शिष्य: अर्थात् पहले समझ, फिर शक्ति?
गुरु: हाँ, यही नीति है—समयं वीक्ष्य संश्रयेत्


9️⃣ नीति-सूत्र (Key Takeaway)

न अत्यन्त कोमलता, न अकारण उग्रता—
बल्कि समयानुसार विवेकयुक्त आचरण ही श्रेष्ठ नीति है।


🔟 निष्कर्ष

यह श्लोक केवल नीति नहीं, जीवन-प्रबंधन (Life Management) का शास्त्रीय सूत्र है।
जो व्यक्ति समय, स्थान और पात्र को देखकर व्यवहार करता है, वही वास्तव में धर्म, नीति और बुद्धि का धारक होता है।


उग्रत्वं च मृदुत्वं च

Sanskrit Niti Shloka

Sanskrit Life Lessons

Time Based Behaviour

Sanskrit Shloka Meaning in Hindi

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