सूर्य हूं मैं

Sooraj Krishna Shastri
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sun
i am sun



उष्णता से व्याप्त हूं मैं
ताप से संतप्त हूं 
परमार्थ की अभिलाष ले
द्योतित सदा निष्काम हूं मैं
सूर्य हूं मैं ।।१।।
स्वप्न से जागृत हुआ
प्रेमाब्धि में मज्जित हुआ
निज कर्म से प्रेरित हुआ
सत्पंथ पर बढ़ता हुआ मैं 
सूर्य हूं मैं ।।२।।
प्रलय सी जब रात्रि होती
और न कोई  राह होती
स्मरण तब होता हमारा
पन्थ जब सूना तुम्हारा
आशाओं का आगार बनकर
आता हूं पथ दीप बनकर
भूलकर सारी व्यथाएं
आस की नूतन प्रभाएं
तम विरत कर देता पथ को
फिर भुला देता तू मुझको
पर न इसका गम है मुझको
जानता है कौन हूं मैं
विष्णु का वह चक्षु हूं मैं
ऋत्विजों का मन्त्र हूं मैं
शुष्क सहित बसन्त हूं मैं
अज्ञ तम का अन्त हूं मैं
सूर्य हूं मैं ।।३।।
ज्ञानेन्द्रियों के बिन कहीं क्या ज्ञान होता है?
चक्षुष्मतान्धों के लिए क्या सूर्य होता है?
पातालिकों की दृष्टि में भी सूर्य होता है नहीं ।
नास्ति कहने मात्र से अस्तित्व मिटता है नहीं ।।
तेज का भण्डार हूं मैं
सत्य हूं चिन्मात्र हूं मैं
आत्मदर्शन में निरत
आनंद का इक बिन्दु हूं मैं
सूर्य हूं मैं।।४।।
 🌷 सूरज कृष्ण शास्त्री 🌷🙏



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