ब्रज रज

Sooraj Krishna Shastri
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 ब्रज रज उड़ के मेरे शीश लगे

गुणगान किशोरी के गायौ करूं ।।

यमुना जलपान करू नित ही, 

उर ध्यान बिहारी कौ लायौ करूं ।।

कहै माधव रूप निहारौ अलि बनि,

 प्रेम प्रसादहि पायौ करूं ।।

यही आसा मेरी ब्रज वास सदां

ब्रजवासी ही बनि कैं आयौ करूं

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