मन्त्र 7 (केन उपनिषद)

Sooraj Krishna Shastri
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मन्त्र 7 (केन उपनिषद) । यह रहा उच्च गुणवत्ता वाला चित्र, जिसमें केन उपनिषद के प्रश्नोत्तर दृश्य को दर्शाया गया है। ऋषि अपने शिष्य को ब्रह्म के गूढ़ तत्व समझा रहे हैं। यह दृश्य दिव्यता और गहन आध्यात्मिकता को दर्शाता है।

मन्त्र 7(केन उपनिषद) । यह रहा उच्च गुणवत्ता वाला चित्र, जिसमें केन उपनिषद के प्रश्नोत्तर दृश्य को दर्शाया गया है। ऋषि अपने शिष्य को ब्रह्म के गूढ़ तत्व समझा रहे हैं। यह दृश्य दिव्यता और गहन आध्यात्मिकता को दर्शाता है। 


मन्त्र 7 (केन उपनिषद)


मूल पाठ:
यच्चक्षुषा न पश्यति येन चक्षूँषि पश्यति।
तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि नेदं यदिदमुपासते॥


शब्दार्थ:

  1. यत् चक्षुषा न पश्यति: जिसे आँखों से देखा नहीं जा सकता।
  2. येन चक्षूँषि पश्यति: लेकिन जिसके द्वारा आँखें देखने की शक्ति प्राप्त करती हैं।
  3. तत् एव ब्रह्म त्वं विद्धि: वही ब्रह्म है, इसे जानो।
  4. न इदं यत् इदम् उपासते: यह नहीं, जिसकी उपासना लोग बाहरी रूप में करते हैं।

अनुवाद:

जो आँखों से नहीं देखा जा सकता, लेकिन जो आँखों को देखने की शक्ति प्रदान करता है, वही ब्रह्म है। इसे जानो। वह ब्रह्म नहीं है जिसकी उपासना बाहरी रूप में की जाती है।


व्याख्या:

1. इंद्रियों की सीमाएँ:

  • यह मन्त्र बताता है कि ब्रह्म को आँखों से देखा नहीं जा सकता, क्योंकि वह इंद्रियों के परे है।
  • फिर भी, ब्रह्म आँखों को उनकी कार्यक्षमता प्रदान करता है, जिससे वे संसार को देख पाती हैं।

2. ब्रह्म का स्वरूप:

  • ब्रह्म किसी दृश्य रूप में नहीं है; यह निराकार और अज्ञेय है।
  • यह हमारी दृष्टि और समझ के सभी साधनों से परे है।

3. अनुभव के माध्यम से ज्ञान:

  • ब्रह्म को जानने के लिए बाहरी दृष्टि से नहीं, बल्कि आंतरिक अनुभव और आत्मज्ञान की आवश्यकता है।

4. मूर्त और अमूर्त का भेद:

  • "न इदं यदिदम् उपासते" यह स्पष्ट करता है कि ब्रह्म वह नहीं है जिसे बाहरी रूप में पूजा जाता है।
  • यह बाहरी प्रतीकों से परे आत्मा और चेतना का स्रोत है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण:

  1. दृष्टि और चेतना का संबंध:

    • आधुनिक विज्ञान भी स्वीकार करता है कि हमारी दृष्टि और मस्तिष्क बाहरी जगत को देखने और समझने में सीमित हैं।
    • यह मन्त्र उस "चेतना" को इंगित करता है जो दृष्टि और अनुभव को संभव बनाती है।
  2. निराकारता का सिद्धांत:

    • भौतिक विज्ञान में, ऊर्जा को देखा नहीं जा सकता, लेकिन यह हर भौतिक गतिविधि का स्रोत है। इसी प्रकार, ब्रह्म को अनुभव किया जा सकता है, देखा नहीं जा सकता।

आध्यात्मिक संदेश:

  1. बाहरी और आंतरिक दृष्टि:

    • बाहरी दुनिया को देखने वाली आँखें ब्रह्म को नहीं देख सकतीं। ब्रह्म को देखने के लिए आंतरिक दृष्टि की आवश्यकता है।
  2. इंद्रियों का संचालन:

    • हमारी इंद्रियां, जिनसे हम संसार का अनुभव करते हैं, ब्रह्म की शक्ति से संचालित होती हैं।
  3. आध्यात्मिक चेतना:

    • ब्रह्म को जानने के लिए हमें इंद्रियों से परे आत्मा की चेतना में उतरना होगा।

आधुनिक संदर्भ में उपयोग:

  1. आत्मचिंतन और ध्यान:

    • यह मन्त्र हमें सिखाता है कि हमें बाहरी दृष्टि से परे आत्मचिंतन और ध्यान के माध्यम से सत्य को जानने का प्रयास करना चाहिए।
  2. सीमितता का स्वीकार:

    • आधुनिक जीवन में, जहाँ भौतिक वस्तुओं पर अधिक जोर है, यह मन्त्र हमें उनकी सीमाओं को समझने और आत्मा के सत्य को खोजने की प्रेरणा देता है।
  3. आध्यात्मिक दृष्टिकोण:

    • यह सिखाता है कि ब्रह्म केवल प्रतीकों या रूपों से नहीं समझा जा सकता। यह अनुभव और चेतना का विषय है।

निष्कर्ष:

मन्त्र 7 यह सिखाता है कि ब्रह्म इंद्रियों से परे है। इसे आँखों से देखा नहीं जा सकता, लेकिन यह आँखों और इंद्रियों को उनकी शक्ति प्रदान करता है। इसे जानने के लिए आत्मज्ञान और ध्यान का सहारा लेना चाहिए।

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