क्रांतिकारी: योगी श्रीअरविंद

Sooraj Krishna Shastri
By -
0

क्रांतिकारी योगी श्रीअरविंद
क्रांतिकारी योगी श्रीअरविंद

 

क्रांतिकारी योगी श्रीअरविंद 

        जब भी देश के क्रांतिकारियों को याद किया जाता है, पुडिचेरी- आश्रम की प्रतिष्ठाता योगी श्रीअरविंद जी का नाम बड़े ही सम्मान पूर्वक लिया जाता है। आध्यात्मिक गुरु श्री अरविंद घोष (श्रीअरविंद) एकाधार में स्वतंत्रता- सैनिक, क्रांतिकारी, योगी, दार्शनिक, अध्यात्मवादी लेखक और महान कवि थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन हिंदी साहित्य के नाम कर दिया था। इसके अलावा इंग्रेजी भाषा में भी उनके द्वारा रचित कुछ पुस्तकों विश्वभर में प्रसिद्ध है। उनके द्वारा रचित रचनायें वेदों, गीता और उपनिषदों के रहस्यों को उजागर करती है। श्रीअरविंद जी के द्वारा लिखे गए योग- साधना के ग्रंथ मौलिक ग्रन्थ हैं, जो योग- साधना का सही ज्ञान देता है। श्रीअरविंद जी के द्वारा योगादि शिक्षा तथा दीक्षा प्राप्त शिष्यों ने आज पुरे विश्वभर में अपने गुरुजी की आदर्श तथा आध्यात्मिक संस्कृति को प्रचार- प्रसार करने में लगे हुए हैं।

    श्रीअरविंद जी का जन्म कोलकाता में 15 अगस्त 1872 को एक प्रतिष्ठित हिन्दू बंगाली परिवार में हुआ था। उनके पिता कृष्णधन घोष एक डॉक्टर थे और वह चाहते थे की धीमान पुत्र अरविंद उच्च शिक्षा लेकर एक अच्छे सरकारी पद पर नियुक्त हो जाए। इसलिए वह अरविंद जी को 07 साल की उम्र में अच्छी और उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड भेज दिया था। अरविंद जी की माता का नाम स्वर्णलता देवी, दोनों भाइयों का नाम बारीन्द्र कुमार घोष और मनमोहन घोष। पत्नी का नाम मृणालिनी देवी, जिनके साथ 1901 में विवाह हुआ था। इंग्लैंड में अरविंद जी 18 साल की उम्र में उस समय की कठिन परीक्षाओं में से एक मानी जाने वाली आई० सी० एस० की परीक्षा को पास कर लिया था। इस परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद, उनका एडमिशन इंग्लैंड की बहु प्रतिष्ठित कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में किया गया था। वंहा से शिक्षा प्राप्त करते समय वह अंग्रेजी, जर्मन, फ्रेंच, ग्रीक एवं इटैलियन आदि भाषाओं में भी शिक्षा प्राप्त की और उन्हें इन सभी भाषाओं का अच्छा ज्ञान हो गया था।

    जब श्रीअरविंद अपनी युवावस्था में थे, उस समय देश में अंग्रेजों द्वारा किये जाने वाले अत्याचार को देखकर एक क्रांतिकारी बनने को प्रेरित होकर मन में ठान लिया की उन्हें पुरे जीवन देश की सेवा करनी है और लोगों को गुलामी की बेड़ियों से आज़ाद करवाना भी है। वही संकल्प को साकार करने के लिए अपने को पहले योग्य बनाना भी जरूरी था और इसलिए वह इंगलेंड की उस विश्वविद्यालय से मिली शिक्षा में अच्छे से सफलता लाभ के प्रति गुरुत्व दिया था और उनको उत्तम फल प्राप्ति भी हुआ था।

    इंगलेंड से शिक्षा समाप्ति के बाद अरविंद जी ने गुजरात का बड़ौदा नरेश के आमंत्रण को स्वीकार कर तुरन्त वंहा आये थे। बड़ौदा के राजा अरविंद जी से मिलकर बहुत प्रभावित हुए और अपनी रियासत में शिक्षा- शास्त्री के रूप में नियुक्त कर दिया, जहाँ वेतन के रूप उनको 750 रूपये प्रतिमाह दिए जाते थे। स्कूल में शिक्षावित अरविंद जी ने प्राध्यापक, वाइस प्रिंसिपल, बड़ौदा राजा का निजी सचिव आदि पदों पर रहते हुए अपनी योग्यता का भरपूर प्रदर्शन किये थे। सन 1896 से लेकर वर्ष 1905 के बीच बड़ौदा की रियासत में अरविंद जी को राजस्व अधिकारी, फ्रेंच अध्यापक और उपाचार्य जैसे महत्वपूर्ण पदों पर कार्य करने का सुयोग मिला था। ऐसे, अरविंद जी ने बड़ौदा में 1905 तक कार्य- निर्वाह कर वंहा से विदाई ली और देश की आजादी से जुड़ी क्रांतिपथ में यात्रारम्भ की।

   बड़ौदा में अरविंद जी ने स्कूल में पढ़ाते समय लगभग हजारों बच्चों को क्रांतिकारी तालिम के साथ- साथ क्रांतिकारी की दीक्षा दी थी। इसके बाद आजादी हासिल करने की क्रांतिपथ में भ्रमण करते हुए, पूरे देशभर में आम जनता को आज़ादी के लिए जागरूक करने लगे थे। जब वह भ्रमण करते हुए बांग्लादेश में पहुंचे, वंहा के किशोरगंज में स्वदेशी आंदोलन की सुरुआत की और इसके साथ विदेशी कपड़ों के बहिष्कार हेतु आवाज़ उठाई तथा खुद देश के कपास से निर्मित होने वाले सूत से बने धोती, कुर्ता और चादर पहनना सुरु किया था।

   02 मई 1908 को लोगों को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ भड़काने के आरोप में अंग्रेजों द्वारा उन्हें और उनके चालीस शिष्यों को गिरफ्तार कर लिया गया था। कोलकाता के आलीपुर जेल में उन लोगों को अनेकों प्रकार की कठिन यातनाएं दी गयीं, जिस घटना को लेकर इतिहास के पन्नों में "आलीपुर- षडयन्त्र" केस के नाम से दर्ज किया गया था।

    उस जेल में क्रांतिकारी योद्धा अरविंद जी को ऐश्वरीय सन्देश मिली थी कि वह क्रांतिपथ से निकल कर योग- भित्तिक आध्यात्मिक मार्ग को चुन लें और इस माध्यम से देश के जनता को आजादी दिलाने के लिए आध्यात्मिक- आंदोलन सुरु करें। इस अलौकिक घटना को अरविन्द जी के माध्यम पृथ्वी पर "अतिमानस शक्ति की उत्तरण" प्रक्रिया कहा गया है किंतु यह शक्ति अभिव्यक्त होने में बहुत समय लगेगा-- यह बात भी तय था।

   पुडिचेरी- आश्रम में रहने के बहुत पहले 30 मई 1909 को अरविंद जी ने अपना एक प्रसिद्ध अभिभाषण दिया था, जिसे "उत्तरपड़ा- अभिभाषण" के नाम से जाना जाता है। उस अभिभाषण में वह धर्म और राष्ट्र विषय से जुड़े खुद के कारावास के ऊपर खुलकर अपने विचार रखे थे-- यह आज भी गवेषकों के लिए एक मूल्यवान दस्ताबिज की रूप से महजूद है।

      श्री अरविंद जी द्वारा रचित ''दिव्य जीवन'', ''योग- समन्यय'', ''वेद- रहस्य'', ''ईशोपनिषद'', ''गीता- प्रबंध'', ''केन'' एवं अन्यान्य उपनिषद् तथा मातृ- चेतना आधारित ''श्रीमा'' के साथ "द ह्यूमन साइकिल", "द आइडियल ऑफ़ ह्यूमानिटी", "द फ्यूचर पोएट्री", "द रेनेसां इन इंडिया", "वार एंड सेल्फ डिटरमिनेसन" पुस्तक समूह विश्व प्रसिद्ध। यह मूल्यवान पुस्तक सब पुडिचेरी- आश्रम से प्रकाशित हुआ था। श्री अरविंद जी एक दार्शनिक, योगी, आध्यात्मिक गुरु तथा महान कवि थे, जिनके विचार पुरे विश्व भर में प्रसिद्ध हैं।

    जेल से निकलने के बाद भी श्रीअरविंद जी के ऊपर ब्रिटिश सरकार ने पाबन्दी/ रोक लगाया था कि वह सरकार- विरोधी किसी भी आंदोलन/ आंदोलनकारियों से सम्पर्क न रखे और लोगों से दूर रहे। इस स्थिति में पराधीन भारत में रहकर कुछ न कर पाने की कारण, श्रीअरविंद जी ने ब्रिटिश शाशन से अलग पुडिचेरी राज्य को चले गए थे। वंहा 24 नवंबर 1926 में उनके द्वारा प्रतिष्ठित "पुडिचेरी- आश्रम" में उनके साथ प्रमुख शिष्य चम्पकलाल, नलिनि कान्त गुप्त, कैखुसरो दादाभाई सेठना आदि योग्य सहयोगी रूप में उनका साथ दिए थे। आश्रम की तरफ से श्रीअरविन्द जी के द्वारा उन साधक- शिष्यों को आध्यात्म एवं क्रांतिकारी दर्शन के आधार पर दीक्षा दान कार्यक्रम सुरु किया गया था। इस अवसर में वंहा "श्रीमा" आये और श्रीअरविंद जी के ऐसे उच्चतर आध्यात्मिक- साधना से प्रभावित होकर स्थायी रूप से आश्रम में रह गए थे। आगे श्रीअरविंद जी के बाद श्रीमा ही आश्रम को परिचालन करने की उत्तर- दायित्व निर्वाह की थी।

    पुडिचेरी- आश्रम में रहकर पढ़ाई के साथ इंट्रीगल योग- साधना करने वाले साधकों और अनुयायियों ने श्रीअरविंद जी के विचारधारा को पुरे विश्वभर में प्रचारित एवं प्रसारित किया था। 05 दिसम्बर 1950 को अपने पुडुचेरी के आश्रम में श्रीअरविंद जी ने आखिरी सांस ली और अपने शरीर को त्याग कर ईश्वर का ध्यान करते हुए सम्पूर्णता में विलीन हो गए। आज भी जब देश के क्रांतिकारियों को याद किया जाता है, श्रीअरविंद जी का नाम बड़े ही सम्मान पूर्वक लिया जाता है।

Post a Comment

0 Comments

Post a Comment (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!