विश्व महिला दिवस: लोकतंत्र और महिला सशक्तिकरण का उपहास: पंचायतों में परदे के पीछे पुरुषों की हुकूमत

Sooraj Krishna Shastri
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विश्व महिला दिवस: लोकतंत्र और महिला सशक्तिकरण का उपहास: पंचायतों में परदे के पीछे पुरुषों की हुकूमत
लोकतंत्र और महिला सशक्तिकरण का उपहास: पंचायतों में परदे के पीछे पुरुषों की हुकूमत

विश्व महिला दिवस: लोकतंत्र और महिला सशक्तिकरण का उपहास: पंचायतों में परदे के पीछे पुरुषों की हुकूमत

भूमिका

लोकतंत्र की मूल भावना नागरिकों की समान भागीदारी और प्रतिनिधित्व में निहित है। भारत में पंचायती राज व्यवस्था के अंतर्गत महिलाओं को 50% आरक्षण प्रदान किया गया है, ताकि वे राजनीति में सक्रिय भूमिका निभा सकें और निर्णय-निर्माण की प्रक्रिया का अभिन्न हिस्सा बनें। लेकिन हाल ही में छत्तीसगढ़ के कवर्धा जिले के परसवारा ग्राम पंचायत में जो घटना सामने आई, उसने इस व्यवस्था की विफलता को उजागर कर दिया।

घटना का विवरण

परसवारा ग्राम पंचायत में कुल 12 पंच चुने गए, जिनमें से 6 महिलाएं थीं। शपथ ग्रहण समारोह के दौरान, निर्वाचित महिला पंचों की बजाय उनके पतियों ने शपथ ली। यह पूरी प्रक्रिया पंचायत चुनावों में महिला भागीदारी को एक औपचारिकता मात्र बना देने का उदाहरण है। जब इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, तो जिला पंचायत प्रशासन ने जांच के आदेश दिए। हालाँकि, ग्राम पंचायत सचिव ने सफाई दी कि किसी पंच पति को शपथ नहीं दिलाई गई, लेकिन वीडियो प्रमाण इस दावे को झुठलाते हैं।

महिला आरक्षण का उद्देश्य और वास्तविकता

महिलाओं को पंचायती राज में आरक्षण देने का उद्देश्य उन्हें राजनीति और प्रशासन में निर्णायक भूमिका दिलाना था। लेकिन जमीनी स्तर पर स्थिति इसके ठीक विपरीत दिखाई देती है।

  1. परदे के पीछे पुरुषों की सत्ता: ग्रामीण क्षेत्रों में कई बार ऐसा देखा जाता है कि निर्वाचित महिला प्रतिनिधि केवल नाममात्र की होती हैं, जबकि उनके पति या परिवार के अन्य पुरुष सदस्य वास्तविक निर्णय लेते हैं।
  2. सामाजिक दबाव और पितृसत्तात्मक सोच: महिलाओं को अक्सर प्रशासनिक कार्यों से दूर रखा जाता है, क्योंकि समाज में अब भी यह धारणा बनी हुई है कि वे शासन करने में सक्षम नहीं हैं।
  3. प्रशासनिक उदासीनता: कई बार सरकारी अधिकारी भी इस गलत प्रथा को नजरअंदाज कर देते हैं, जिससे यह समस्या और गहरी हो जाती है।

कानूनी प्रावधान और न्यायपालिका का रुख

भारत में महिलाओं के नाम पर उनके पति या अन्य पुरुष रिश्तेदारों का शासन करना अवैध है। सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न हाई कोर्ट इस पर कई बार अपनी नकारात्मक राय दे चुके हैं।

  • संविधान का अनुच्छेद 243D पंचायती राज में महिलाओं के लिए आरक्षण की गारंटी देता है।
  • सुप्रीम कोर्ट ने कई बार स्पष्ट किया है कि निर्वाचित प्रतिनिधि को स्वयं अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना होगा।
  • मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने भी एक मामले में कहा था कि महिला प्रतिनिधियों के स्थान पर उनके पति का शासन लोकतंत्र की मूल भावना के खिलाफ है।

समस्या का समाधान

  1. कड़े कानूनी प्रावधान: इस तरह की घटनाओं में संलिप्त लोगों पर कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए, ताकि ऐसी प्रथाओं पर रोक लगाई जा सके।
  2. सतर्क प्रशासन: शपथ ग्रहण और पंचायत कार्यों की निगरानी सुनिश्चित की जाए, ताकि कोई बाहरी व्यक्ति महिला प्रतिनिधियों के कार्यभार को न संभाले।
  3. महिलाओं को प्रशिक्षण और जागरूकता: निर्वाचित महिलाओं को प्रशासनिक कार्यों का प्रशिक्षण दिया जाए और उन्हें अपने अधिकारों के प्रति जागरूक किया जाए।
  4. सामाजिक सोच में बदलाव: महिलाओं को राजनीति और प्रशासन में समान भागीदारी देने के लिए जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए।

निष्कर्ष

महिला सशक्तिकरण सिर्फ एक नारा नहीं होना चाहिए, बल्कि इसे जमीनी स्तर पर लागू किया जाना चाहिए। जब तक निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों को उनकी वास्तविक शक्ति और अधिकार नहीं मिलते, तब तक लोकतंत्र में उनकी भागीदारी अधूरी ही रहेगी। सरकार, प्रशासन, और समाज – सभी को मिलकर इस समस्या का समाधान निकालना होगा, ताकि पंचायतों में महिलाओं का नेतृत्व महज औपचारिकता न बनकर, वास्तविकता में परिवर्तित हो सके।

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