संस्कृत श्लोक: "जीर्णोऽपि क्रमहीनोऽपि कृशोऽपि यदि केसरी" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद

Sooraj Krishna Shastri
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संस्कृत श्लोक: "जीर्णोऽपि क्रमहीनोऽपि कृशोऽपि यदि केसरी" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद
संस्कृत श्लोक: "जीर्णोऽपि क्रमहीनोऽपि कृशोऽपि यदि केसरी" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद

संस्कृत श्लोक: "जीर्णोऽपि क्रमहीनोऽपि कृशोऽपि यदि केसरी" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद

श्लोक:

जीर्णोऽपि क्रमहीनोऽपि कृशोऽपि यदि केसरी।
तथापि यूथनाथस्य शङ्कातङ्काय कल्पते॥


हिन्दी अनुवाद:

भले ही सिंह बूढ़ा हो जाए, उसकी चाल धीमी पड़ जाए और वह दुर्बल हो जाए, फिर भी वह हाथियों के झुंड के नेता के मन में भय उत्पन्न करने में सक्षम रहता है।


शाब्दिक विश्लेषण:

  • जीर्णः – वृद्ध, बूढ़ा
  • क्रमहीनः – जिसकी गति बाधित हो गई हो, जो चलने-फिरने में असमर्थ हो
  • कृशः – कमजोर, दुर्बल
  • यदि – यदि, भले ही
  • केसरी – सिंह (शेर)
  • तथापि – फिर भी
  • यूथनाथः – हाथियों के झुंड का मुखिया
  • शङ्कातङ्काय – भय उत्पन्न करने के लिए
  • कल्पते – योग्य होता है, सक्षम होता है

व्याकरणीय विश्लेषण:

  • जीर्णोऽपि, क्रमहीनोऽपि, कृशोऽपि – "अऽपि" उपपदयुक्त विशेषण हैं, जो विपरीत परिस्थिति को दर्शाते हैं।
  • यदि केसरी – "यदि" यहाँ संभाव्यता का बोध कराता है।
  • यूथनाथस्य – षष्ठी विभक्ति (सम्बन्ध कारक) में प्रयुक्त है, जिसका अर्थ "हाथियों के झुंड के नेता का" होता है।
  • शङ्कातङ्काय – चतुर्थी विभक्ति (हेतु हेतु हेतुकारक) में प्रयुक्त है, जिसका अर्थ "भय उत्पन्न करने के लिए" होता है।
  • कल्पते – धातु "क्लृप्" से लट् लकार (वर्तमानकाल) में प्रयुक्त रूप, जिसका अर्थ "योग्य होता है" या "सक्षम होता है" है।

आधुनिक संदर्भ में व्याख्या:

यह श्लोक बताता है कि वास्तविक शक्ति केवल शारीरिक बल पर निर्भर नहीं होती, बल्कि व्यक्ति की प्रतिष्ठा, अनुभव और आत्मबल भी उतना ही महत्वपूर्ण होता है। आधुनिक जीवन में भी हम देखते हैं कि कोई व्यक्ति चाहे वृद्ध हो जाए या शारीरिक रूप से कमजोर हो जाए, फिर भी उसकी विद्वत्ता, प्रतिष्ठा और अनुभव दूसरों में सम्मान एवं भय उत्पन्न करने में सक्षम रहते हैं।

उदाहरण के लिए—

  1. राजनीति में अनुभवी नेता – उम्र अधिक होने के बावजूद उनके निर्णयों और प्रभाव से बड़े-बड़े नेता भयभीत रहते हैं।
  2. व्यवसाय जगत में वरिष्ठ व्यक्ति – वर्षों के अनुभव के कारण उनकी सलाह और उपस्थिति ही प्रतिस्पर्धियों में चिंता उत्पन्न कर सकती है।
  3. शिक्षा एवं ज्ञान के क्षेत्र में विद्वान – एक वृद्ध विद्वान का ज्ञान इतना प्रभावशाली होता है कि युवा भी उनके सामने छोटा महसूस करते हैं।

निष्कर्ष:

यह श्लोक हमें सिखाता है कि असली शक्ति केवल शारीरिक क्षमता में नहीं, बल्कि व्यक्तित्व, अनुभव और प्रतिष्ठा में होती है। चाहे व्यक्ति शारीरिक रूप से दुर्बल हो जाए, लेकिन यदि उसमें आत्मविश्वास, ज्ञान और प्रभाव है, तो वह अब भी सम्माननीय और प्रभावशाली बना रहेगा।

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