संस्कृत श्लोक: "द्रवत्वात् सर्वलोहानां निमित्तान्मृगपक्षिणाम्" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद

Sooraj Krishna Shastri
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संस्कृत श्लोक: "द्रवत्वात् सर्वलोहानां निमित्तान्मृगपक्षिणाम्" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद
संस्कृत श्लोक: "द्रवत्वात् सर्वलोहानां निमित्तान्मृगपक्षिणाम्" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद

संस्कृत श्लोक: "द्रवत्वात् सर्वलोहानां निमित्तान्मृगपक्षिणाम्" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद

श्लोक:
द्रवत्वात् सर्वलोहानां निमित्तान्मृगपक्षिणाम्।
भयाल्लोभाच्च मूर्खाणां सङ्गतं दर्शनात् सताम्॥

अर्थ:

  • सभी धातुएँ एक-दूसरे के साथ केवल गलने (पिघलने) के कारण जुड़ती हैं।
  • पशु-पक्षी किसी विशेष कारण से ही एकत्र होते हैं।
  • मूर्ख लोग केवल भय या लोभ के कारण साथ आते हैं।
  • किन्तु सज्जनों का मेल सिर्फ एक-दूसरे के दर्शन मात्र से हो जाता है।

शाब्दिक विश्लेषण

  1. द्रवत्वात् – पिघलने के कारण (पंचमी विभक्ति)
  2. सर्वलोहानाम् – सभी धातुओं का (षष्ठी विभक्ति)
  3. निमित्तात् – किसी विशेष कारण से (पंचमी विभक्ति)
  4. मृगपक्षिणाम् – पशु-पक्षियों का (षष्ठी विभक्ति)
  5. भयात् – भय से (पंचमी विभक्ति)
  6. लोभात् – लोभ से (पंचमी विभक्ति)
  7. मूर्खाणाम् – मूर्खों का (षष्ठी विभक्ति)
  8. सङ्गतं – मेल, एकत्रित होना (नपुंसकलिंग, एकवचन)
  9. दर्शनात् – केवल दर्शन मात्र से (पंचमी विभक्ति)
  10. सताम् – सज्जनों का (षष्ठी विभक्ति)

व्याकरणीय विश्लेषण

  • द्रवत्वात्, निमित्तात्, भयात्, लोभात्, दर्शनात् – पंचमी विभक्ति (करण एवं हेतु कारक)।
  • सर्वलोहानाम्, मृगपक्षिणाम्, मूर्खाणाम्, सताम् – षष्ठी विभक्ति (सम्बन्ध कारक)।
  • सङ्गतं – कर्ता रूप में (नपुंसकलिंग, एकवचन)।

आधुनिक संदर्भ में व्याख्या

यह श्लोक समाज में विभिन्न प्रकार के मेल-जोल को चार भागों में विभाजित करता है:

  1. धातुओं का मेल – द्रवत्व से (पिघलने से)

    • सभी धातुएँ (जैसे सोना, चाँदी, तांबा) केवल तब एक-दूसरे से जुड़ती हैं जब उन्हें गर्म कर पिघलाया जाता है
    • यह दर्शाता है कि बाहरी दबाव या सामर्थ्य का ह्रास होने पर ही उनका मिलन संभव होता है।
  2. पशु-पक्षियों का मेल – किसी कारणवश

    • पशु-पक्षी केवल स्वार्थवश एकत्र होते हैं, जैसे भोजन की तलाश में झुंड बनाना।
    • यह बताता है कि उनका साथ सिर्फ लाभ-हानि के सिद्धांत पर आधारित होता है।
  3. मूर्खों का मेल – भय और लोभ से

    • मूर्ख व्यक्ति केवल डर (सुरक्षा की आवश्यकता) या लालच (लाभ की आशा) के कारण एक-दूसरे का साथ देते हैं।
    • उनका संबंध न तो सच्ची मित्रता पर आधारित होता है और न ही आदर और प्रेम पर।
  4. सज्जनों का मेल – केवल दर्शन मात्र से

    • सज्जनों को किसी कारण, भय या लोभ की आवश्यकता नहीं होती
    • उनका मेल मात्र स्नेह, सद्भाव और आपसी सम्मान के आधार पर होता है।
    • जब दो सज्जन मिलते हैं, तो उनके मन में स्नेह और आदर का स्वतः संचार हो जाता है।

व्यावहारिक शिक्षा

  1. सच्ची मित्रता लोभ, भय या किसी स्वार्थ से परे होती है।
  2. जो संबंध किसी दबाव, स्वार्थ या डर पर आधारित हो, वह स्थायी नहीं रहता।
  3. सज्जनों का मिलन बिना किसी स्वार्थ के मात्र सद्गुणों के कारण होता है।
  4. हमें अपनी संगति का चयन सोच-समझकर करना चाहिए – क्या वह भय, लालच, स्वार्थ से प्रेरित है या सच्चे स्नेह और सद्भाव पर आधारित?

संक्षिप्त निष्कर्ष

यह श्लोक हमें बताता है कि सच्चे संबंध केवल सज्जनों के बीच ही बिना किसी स्वार्थ के बनते हैं, जबकि अन्य प्रकार के मेल-जोल स्वार्थ, भय, लोभ या किसी दबाव के कारण ही होते हैं। इसलिए हमें अपने मित्र और संगति का चुनाव बुद्धिमानी से करना चाहिए।

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