सनातन धर्म के तीन महत्वपूर्ण दान, क्या हैं ? आप भी जानिए !

Sooraj Krishna Shastri
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सनातन धर्म के तीन महत्वपूर्ण दान, क्या हैं ? आप भी जानिए !
सनातन धर्म के तीन महत्वपूर्ण दान, क्या हैं ? आप भी जानिए ! 


सनातन धर्म के तीन महत्वपूर्ण दान, क्या हैं ? आप भी जानिए ! 

त्रिकाल स्मरण एवं दान के तीन रूप

(स्मृति दान, शक्ति दान, शांति दान)

शास्त्रों में कहा गया है कि मनुष्य को दिन में तीन महत्वपूर्ण समय पर प्रभु का स्मरण अवश्य करना चाहिए। ये तीन समय—प्रातः, भोजन से पूर्व और रात्रि में सोने से पूर्व—हमारे जीवन को सात्त्विक, सशक्त और शांतिपूर्ण बनाते हैं। इन तीन समयों पर प्रभु का ध्यान करना तीन प्रकार के दान के समान माना गया है:

  1. स्मृति दान (प्रभु का प्रातःकालीन स्मरण)
  2. शक्ति दान (भोजन से पूर्व प्रभु का स्मरण)
  3. शांति दान (रात्रि में सोने से पूर्व प्रभु का स्मरण)

अब हम इन तीनों को विस्तार से समझते हैं।


1. स्मृति दान (प्रातः स्मरण)

सुबह उठते ही भगवान का स्मरण करना हमारे दिन की पवित्र और सकारात्मक शुरुआत करता है। जागरण के तुरंत बाद हाथों को देखना और निम्नलिखित श्लोकों का उच्चारण करना शुभ माना जाता है:

श्लोक:

कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमूले सरस्वती।
करमध्ये तु गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम्॥

हिन्दी अर्थ:

हमारे हाथों के अग्रभाग (अंगुलियों) में भगवती लक्ष्मी का वास है, हाथों के मूल (हथेली के केंद्र) में देवी सरस्वती निवास करती हैं, और हाथों के मध्य में भगवान गोविंद स्वयं स्थित हैं। इसलिए प्रातःकाल उठकर अपने हाथों का दर्शन करना अत्यंत शुभकारी है।

इसके पश्चात, पृथ्वी माता से क्षमायाचना करते हुए यह श्लोक बोला जाता है:

श्लोक:

समुद्रवसने देवि पर्वतस्तनमंडले।
विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्श क्षमस्व मे॥

हिन्दी अर्थ:

हे देवी पृथ्वी! आप समुद्र के वस्त्र को धारण करने वाली हैं और पर्वत आपके उन्नत वक्षस्थल के समान हैं। आप भगवान विष्णु की पत्नी हैं। हे माता! मैं अपने चरणों से आपको स्पर्श करने जा रहा हूँ, कृपया मुझे क्षमा करें।

इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण को नमन करते हुए यह श्लोक कहा जाता है:

श्लोक:

वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम्।
देवकीपरमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्॥

हिन्दी अर्थ:

मैं वसुदेव के पुत्र, कंस और चाणूर के संहारक, माता देवकी के परम आनंददाता, और समस्त संसार के गुरु श्रीकृष्ण को नमन करता हूँ।


2. शक्ति दान (भोजन से पूर्व स्मरण)

भोजन केवल शरीर के पोषण का साधन नहीं है, बल्कि यह आत्मा को भी प्रभावित करता है। भोजन से पहले प्रभु को स्मरण करने से भोजन पवित्र और सात्त्विक बनता है। भोजन ग्रहण करने से पूर्व निम्नलिखित श्लोकों का उच्चारण करना चाहिए:

श्लोक:

यज्ञशिष्टाशिनः सन्तो मुच्यन्ते सर्वकिल्विषैः।
भुञ्जते ते त्वघं पापा ये पचन्त्यात्मकारणात्॥

हिन्दी अर्थ:

जो संतजन यज्ञ के अवशिष्ट भाग का भोजन करते हैं, वे समस्त पापों से मुक्त हो जाते हैं। परंतु जो केवल अपनी तृप्ति के लिए भोजन पकाते और खाते हैं, वे पाप का भक्षण करते हैं।

श्लोक:

यत्करोषि यदश्नासि यज्जहोषि ददासि यत्।
यत्तपस्यसि कौन्तेय तत्कुरुष्व मदर्पणम्॥

हिन्दी अर्थ:

हे अर्जुन! तुम जो कुछ भी करते हो, जो भोजन ग्रहण करते हो, जो यज्ञ में अर्पण करते हो, जो दान देते हो, और जो तपस्या करते हो, वह सब मुझे अर्पित करो।

श्लोक:

अहं वैश्वानरो भूत्वा प्राणिनां देहमाश्रितः।
प्राणापानसमायुक्तः पचाम्यन्नं चतुर्विधम्॥

हिन्दी अर्थ:

मैं ही वैश्वानर अग्नि (पाचन शक्ति) बनकर समस्त प्राणियों के शरीर में स्थित हूँ। मैं ही प्राण और अपान वायु के संतुलन से चार प्रकार के अन्न को पचाता हूँ।

शांति मंत्र:

ॐ सह नाववतु। सह नौ भनक्तु। सह वीर्यं करवावहै।
तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥

हिन्दी अर्थ:

हे प्रभु! हमें साथ-साथ संरक्षण दें, हमें साथ-साथ पोषण दें, हमें साथ-साथ शक्ति और सामर्थ्य प्रदान करें। हमारी विद्या तेजस्वी बने, और हम कभी भी एक-दूसरे से द्वेष न करें।


3. शांति दान (रात्रि स्मरण)

दिनभर के कार्यों के बाद, रात में सोने से पहले प्रभु का स्मरण करना मन को शांति प्रदान करता है और दिनभर के दोषों से हमें मुक्त करता है।

श्लोक:

कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने।
प्रणतक्लेशनाशाय गोविन्दाय नमो नमः॥

हिन्दी अर्थ:

वासुदेव के पुत्र, परमात्मा हरि, समस्त दुखों को हरने वाले गोविंद को मेरा बारंबार प्रणाम।

श्लोक:

करचरणकृतं वाक् कायजं कर्मजं वा।
श्रवणनयनजं वा मानसं वाअपराधम्॥
विहितमविहितं वा सर्वमेतत् क्षमस्व।
जय जय करुणाब्धे श्री महादेव शंभो॥

हिन्दी अर्थ:

हे प्रभु! मैंने अपने हाथ-पैरों से, वाणी से, शरीर से, कर्मों से, कानों से, नेत्रों से, मन से, जाने-अनजाने, जो भी अपराध किए हैं, उन्हें क्षमा करें। हे करुणा के सागर, महादेव शंकर! आपको बारंबार प्रणाम।

श्लोक:

त्वमेव माता च पिता त्वमेव।
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव।
त्वमेव सर्वं मम देवदेव॥

हिन्दी अर्थ:

हे प्रभु! आप ही मेरे माता-पिता हैं, आप ही मेरे बंधु और सखा हैं। आप ही मेरी विद्या, धन और सर्वस्व हैं। आप ही मेरे सर्वस्व और परम देव हैं।


निष्कर्ष

त्रिकाल स्मरण (स्मृति दान, शक्ति दान, शांति दान) हमारे जीवन को शुद्ध, सशक्त और शांतिपूर्ण बनाता है। यह दिनभर की गतिविधियों में आध्यात्मिकता को समाहित करने का एक सरल और प्रभावशाली उपाय है। यदि हम इस परंपरा को अपने जीवन में उतार लें, तो निश्चित ही हमारा जीवन प्रभु-कृपा से पूर्ण और आनंदमय होगा।

हरि ओम् तत्सत्।


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