Navratri Vishesh: नवरात्रि में जौ बोने का महत्त्व एवं उसका धार्मिक, वैज्ञानिक और आध्यात्मिक रहस्य

Sooraj Krishna Shastri
By -
1

 

नवरात्रि में जौ बोने का महत्त्व एवं उसका धार्मिक, वैज्ञानिक और आध्यात्मिक रहस्य

Navratri Vishesh: नवरात्रि में जौ बोने का महत्त्व एवं उसका धार्मिक, वैज्ञानिक और आध्यात्मिक रहस्य

सनातन धर्म में पर्व एवं उनके नियम

भारतीय सनातन परंपरा में हर पर्व का एक विशिष्ट धार्मिक और वैज्ञानिक आधार होता है। नवरात्रि में देवी दुर्गा की आराधना की जाती है, जिसमें कलश स्थापना और जौ (यव) बोने की विशेष परंपरा है। यह परंपरा अत्यंत प्राचीन है और इसके पीछे गहरे आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक कारण छिपे हुए हैं।


1. नवरात्रि में जौ (जवारे) बोने का धार्मिक महत्त्व

(1) वैदिक एवं पुराणों में जौ का महत्व

  • ऋग्वेद में जौ का उल्लेख महत्वपूर्ण अन्नों में किया गया है।
  • तैत्तिरीय उपनिषद में कहा गया है –

    "अन्नं ब्रह्मेति व्यजानात्" (अन्न ही ब्रह्म है)
    "अन्नं न निन्द्यात् तद् व्रतं" (अन्न की निंदा नहीं करनी चाहिए)

  • जौ को अन्नपूर्णा देवी का स्वरूप माना जाता है।
  • ऋषियों को सभी धान्यों में जौ सर्वाधिक प्रिय है, इसलिए पितृ तर्पण और देव कार्य में इसका उपयोग किया जाता है।
  • पुराणों के अनुसार, जब ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना की, तब सबसे पहले उगने वाला अनाज जौ था।
  • मीमांसा शास्त्र के अनुसार, जब वसंत ऋतु में अन्य फसलों के पत्ते झड़ जाते हैं, तब भी जौ की बालियाँ दानों से भरी रहती हैं।

(2) जौ और माँ दुर्गा की आराधना का संबंध

  • जौ को माँ दुर्गा की कृपा का प्रतीक माना जाता है।
  • जौ उगाना सुख, समृद्धि और उर्वरता का प्रतीक है।
  • इसे नवधान्य (नव अंकुरित अन्न) के रूप में देखा जाता है, जो जीवन में उन्नति और सकारात्मक ऊर्जा लाता है।
  • नवमी के दिन इन जवारों को माँ दुर्गा को अर्पित किया जाता है और फिर जल में प्रवाहित कर दिया जाता है।

2. नवरात्रि में जौ बोने का वैज्ञानिक रहस्य

(1) ऋतु परिवर्तन और जौ का संबंध

  • नवरात्रि का समय दो ऋतुओं के संधिकाल में आता है।
    • चैत्र नवरात्रि → सर्दी से गर्मी की ओर परिवर्तन
    • शारदीय नवरात्रि → वर्षा से शीत ऋतु की ओर परिवर्तन
  • इस दौरान रबी और खरीफ फसलों की कटाई-बुआई होती है।
  • जौ सबसे पहले अंकुरित होने वाला अनाज है, जिससे भूमि की उर्वरता का अनुमान लगाया जाता है।
  • इसे बोने से पता चलता है कि मिट्टी में आगामी फसल के लिए कितना पोषण है।

(2) पर्यावरणीय एवं स्वास्थ्य लाभ

  • जौ में मिट्टी को पुनर्जीवित करने की क्षमता होती है।
  • जौ की जड़ें मिट्टी के कटाव को रोकती हैं और मृदा उर्वरता बढ़ाती हैं।
  • इसका उपयोग आयुर्वेद में औषधि के रूप में किया जाता है।
  • जौ से बना भोजन (जैसे यवागू या लापसी) शरीर को ऊर्जा, पाचन शक्ति और रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करता है।

3. कलश स्थापना एवं जौ बोने की विधि

(1) आवश्यक सामग्री

  1. माँ दुर्गा की प्रतिमा या चित्र
  2. कलश (मिट्टी, तांबे या पीतल का)
  3. गंगाजल, सुपारी, सिक्का, लौंग
  4. मिट्टी (कलश और जौ बोने के लिए)
  5. जौ के बीज
  6. लाल कपड़ा, फूल, चावल, कर्पूर
  7. नारियल, हल्दी की गांठ, मौली
  8. दीपक, धूपबत्ती, आरती की किताब

(2) कलश स्थापना की प्रक्रिया

  1. पूजा स्थल की तैयारी:

    • एक स्वच्छ स्थान पर लकड़ी की चौकी रखें।
    • उस पर लाल कपड़ा बिछाएँ।
    • माँ दुर्गा की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
  2. मिट्टी बिछाना और जौ बोना:

    • एक मिट्टी के पात्र में उपजाऊ मिट्टी डालें।
    • उसमें जौ के बीज डालकर हल्की मिट्टी से ढक दें।
    • इसे हल्का-सा पानी दें ताकि यह अंकुरित हो सके।
  3. कलश स्थापना:

    • मिट्टी, तांबे या पीतल के कलश में गंगाजल भरें।
    • उसमें सुपारी, सिक्का और लौंग डालें।
    • कलश के मुख पर आम के पत्ते रखें और नारियल रखें।
    • मौली (कलावा) से नारियल और कलश को बाँध दें।
    • कलश को जौ के पात्र के बीचों-बीच स्थापित करें।
  4. नवरात्रि के दौरान जौ की देखभाल:

    • प्रतिदिन पूजा करते समय जौ पर जल अर्पित करें।
    • इनका अंकुरण 2-3 दिन में शुरू हो जाएगा।
    • यदि जौ हरे-भरे और लंबे होते हैं, तो यह शुभ संकेत माना जाता है।
  5. अंतिम प्रक्रिया (विसर्जन):

    • नवमी के दिन इन जवारों को माँ दुर्गा को अर्पित करें।
    • फिर इन्हें किसी पवित्र नदी में प्रवाहित करें या किसी पवित्र स्थान पर दबा दें।

4. जौ उगाने के लाभ और संकेत

(1) जौ की वृद्धि के आधार पर भविष्यफल

  • यदि जौ हरे और स्वस्थ होते हैं → सुख, समृद्धि और शुभ संकेत।
  • यदि जौ पीले या कमजोर होते हैं → कठिनाइयों की संभावना।
  • यदि जौ समय से पहले मुरझा जाते हैं → परिवार में अशांति हो सकती है।

(2) ज्योतिषीय महत्त्व

  • जौ को ग्रह शांति और नकारात्मक ऊर्जा नाशक माना जाता है।
  • इसे शनि और मंगल ग्रह से संबंधित दोषों को दूर करने के लिए उगाया जाता है।
  • नवरात्रि के दौरान इसका उपयोग विशेष यज्ञ और अनुष्ठानों में किया जाता है।

निष्कर्ष

नवरात्रि में जौ बोने की परंपरा केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि गहरा वैज्ञानिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रहस्य समेटे हुए है।

  • यह हमें ऋतु परिवर्तन और भूमि की उर्वरता का संकेत देता है।
  • यह अन्नपूर्णा देवी का आशीर्वाद और संपन्नता का प्रतीक है।
  • यह धार्मिक, ज्योतिषीय और पर्यावरणीय लाभ प्रदान करता है।
  • इसकी विधिपूर्वक स्थापना करने से माँ दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।

इसलिए, सदियों से इस परंपरा को श्रद्धा और विधि-विधान से निभाया जाता रहा है, और भविष्य में भी इसे इसी प्रकार सम्मानपूर्वक मनाना चाहिए।

Post a Comment

1 Comments

Post a Comment

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!