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कहानी: आखिरी भरोसा – ईश्वर |
कहानी: आखिरी भरोसा – ईश्वर
यह प्रेरक कथा एक सुंदर भाव लिए हुए है जिसे हम कुछ अधिक संवेदनशील, धाराप्रवाह एवं प्रभावशाली ढंग से इस प्रकार प्रस्तुत कर सकते हैं:
राजा व्याकुल था, किसी भी उपाय से पुत्र प्राप्त करना चाहता था। अतः राज्यभर में घोषणा करवा दी –
"जो कोई अपना बच्चा बलि के लिए देगा, उसे अपार धन दिया जाएगा।"
कठोर निर्णय और विश्वास की परीक्षा
"यह बच्चा हमारे किसी काम का नहीं। यदि इसे राजा को दे दें, तो बदले में धन मिलेगा और बाकी परिवार का पालन हो सकेगा।"
इस तरह वह बालक राजा को सौंप दिया गया।
बलि की घड़ी और बालक की अंतिम इच्छा
"तुम्हारी अंतिम इच्छा क्या है?"
जब रेत लाई गई, उसने चार छोटी ढेरियाँ बनाईं। फिर एक के बाद एक करके तीन ढेरियाँ तोड़ दीं, और चौथी के सामने हाथ जोड़कर बैठ गया।
राजा और तांत्रिक चकित रह गए। तांत्रिक ने पूछा –
"यह तुमने क्या किया?"
बालक का उत्तर – सच्चे सहारे की परख
बालक ने शांत स्वर में उत्तर दिया –
"पहली ढेरी मेरे माता-पिता की थी। जिनका धर्म था मुझे सुरक्षित रखना, पर उन्होंने मुझे धन के लिए बेच दिया – इसलिए वह ढेरी तोड़ दी।""दूसरी ढेरी मेरे सगे संबंधियों की थी – उन्होंने अन्याय के विरुद्ध कुछ नहीं कहा, इसलिए वह भी टूट गई।""तीसरी ढेरी राजा की थी – प्रजा की रक्षा करना उसका धर्म होता है, लेकिन वही मेरी बलि देने को तैयार है – यह ढेरी भी टूट गई।"
फिर वह बालक चौथी ढेरी की ओर देखकर बोला –
"अब सिर्फ एक ही सहारा है – मेरा ईश्वर। वही सच्चा रक्षक है। इस ढेरी को नहीं तोड़ा, क्योंकि अब उसी पर मेरा संपूर्ण भरोसा है।"
ईश्वर में भरोसे की विजय
राजा उस बालक की निष्ठा और विवेक से अत्यंत प्रभावित हुआ। उसने सोचा,
"क्या पता बलिदान के बाद पुत्र प्राप्त हो या नहीं, किंतु यह बालक तो ईश्वरभक्त, बुद्धिमान और निडर है – इससे श्रेष्ठ संतान मुझे कहाँ मिलेगी?"
राजा ने उसे वहीं राजकुमार घोषित कर दिया।
कथा का संदेश
- सभी सांसारिक संबंध अवसर आने पर छूट सकते हैं, पर ईश्वर का साथ कभी नहीं छूटता।
- जो प्रभु पर पूर्ण विश्वास रखते हैं, उनका कोई अहित नहीं कर सकता।
- सच्चे शरणागति से संकट टलते हैं, और जीवन में अप्रत्याशित कृपा प्रकट होती है।
"सभी संबंध मिथ्या हो सकते हैं, परंतु एकमात्र ईश्वर का सहारा ही सत्य है।"