ग्रह, राशि, नक्षत्र एवं लग्न की शास्त्रीय परिभाषा - श्लोक के साथ, भारतीय ज्योतिष, बृहत् पाराशर होरा शास्त्र, भागवत दर्शन, सूरज कृष्ण शास्त्री।
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ग्रह, राशि, नक्षत्र एवं लग्न की शास्त्रीय परिभाषा - श्लोक के साथ |
ग्रह, राशि, नक्षत्र एवं लग्न की शास्त्रीय परिभाषा - श्लोक के साथ
प्रस्तुत है बृहत् पाराशर होरा शास्त्र के ग्रह, राशि, नक्षत्र एवं लग्न की शास्त्रीय परिभाषा, जिसमें सम्बन्धित सभी श्लोकों का क्रमशः शुद्ध पाठ, शाब्दिक अर्थ, व्याकरणिक विश्लेषण, भावार्थ, तथा आधुनिक सन्दर्भ में विस्तृत व्याख्या दी गई है-
१. ग्रह परिभाषा
गच्छन्तो भानि गृह्णन्ति सततं ये तु ते ग्रहाः ।(बृ.पा.हो.शा. – अध्याय १)
शाब्दिक अर्थ:
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गच्छन्तः – चलने वाले (प्र.पु. पुं. पु. बहु.)
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भानि – ज्योतिर्बिन्दु, प्रकाशमान पिण्ड (सूर्य, चन्द्र आदि)
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गृह्णन्ति – पकड़ते हैं, ग्रहण करते हैं (लट् लकार, प्र.पु. पु. बहु.)
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सततम् – निरंतर
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ये – जो लोग / वस्तुएं
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ते – वे
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ग्रहाः – ग्रह कहलाते हैं
भावार्थः:
वे सभी ज्योतिपिंड जो आकाश में निरंतर गति करते हुए नक्षत्रों को पार करते हैं और हमारे जीवन पर सतत प्रभाव डालते हैं — उन्हें "ग्रह" कहते हैं।
आधुनिक सन्दर्भः:
ग्रह न केवल खगोलीय पिंड हैं, बल्कि भारतीय ज्योतिषशास्त्र में ये जीवन के सूक्ष्म मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक पक्षों को नियंत्रित करने वाले शक्तिपुंज माने जाते हैं।
२. नक्षत्र परिभाषा
भचक्रस्य नगाश्व्यंशा अश्विन्यादि समाह्वयाः ।। 14 ।।
शाब्दिक अर्थ:
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भचक्रस्य – भचक्र का (राशिचक्र का)
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नगाश्व्यंशाः – नग = नक्षत्र, अश्व = गति, अंश = भाग
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अश्विन्यादि – अश्विनी आदि
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समाह्वयाः – कहे जाते हैं, नामांकित हैं
भावार्थः:
भचक्र (राशिचक्र) को 27 समान भागों में बाँटने पर जो खण्ड बनते हैं, वे नग-अश्व-अंश, अर्थात् गति करने वाले नक्षत्र कहलाते हैं। इनका नामकरण अश्विनी से आरम्भ होकर रेवती तक होता है।
नक्षत्रों की संख्या:
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कुल 27 नक्षत्र
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प्रत्येक का विस्तार – 13 अंश 20 कला
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नक्षत्र – आध्यात्मिक कंपनों (spiritual vibrations) के वाहक माने जाते हैं
३. राशि परिभाषा
तदद्वादशविभागास्तु तुल्या मेषादि संज्ञकाः ।प्रसिद्धा राशयः सन्ति ग्रहास्त्वकर्कादिसंज्ञकाः ।। 511 ।।
शाब्दिक अर्थ:
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तत् – वह (भचक्र)
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द्वादशविभागाः – बारह भाग
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तुल्याः – समान (30° प्रत्येक)
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मेषादि संज्ञकाः – मेष आदि नाम वाले
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प्रसिद्धाः राशयः – प्रसिद्ध राशियाँ
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ग्रहाः तु – ग्रह तो
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अकर्कादि संज्ञकाः – कर्क आदि (राशियों) के नाम से अभिहित
भावार्थः:
भचक्र को जब 12 समान भागों में विभाजित किया जाता है, तो वे मेष से मीन तक की राशियाँ कहलाती हैं। ये सभी 30 अंश के होते हैं। ग्रह इन राशियों में स्थित होकर उसी नाम से सम्बोधित होते हैं – जैसे "गुरु कर्क में", "शुक्र वृष में" इत्यादि।
४. लग्न परिभाषा
राशीनामुदयो लग्नं तद्वशादेव जन्मिनाम् ।ग्रहयोगवियोगाभ्यां फलं चिन्त्यं शुभाशुभम् ।। 6 ।।
शाब्दिक अर्थ:
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राशीनाम् उदयः – राशियों का उदय (पूर्व क्षितिज पर)
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लग्नं – लग्न (जन्म के समय पूर्व में जो राशि उदित हो)
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तद्वशात् – उसी के अनुसार
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जन्मिनाम् – जन्म लेने वालों के लिए
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ग्रहयोग-वियोगाभ्याम् – ग्रहों की युति और वियोग द्वारा
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फलं चिन्त्यम् – फल का विचार किया जाता है
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शुभ-अशुभम् – शुभ या अशुभ
भावार्थः:
जिस राशि का उदय जातक के जन्मकाल में पूर्व क्षितिज पर हो, वही उसकी जन्म-कुण्डली का लग्न कहलाता है। उसी लग्न और उसमें स्थित ग्रहों की युति-वियोग के आधार पर जातक के जीवन का शुभ या अशुभ फल जाना जाता है।
५. समन्वित व्याख्या – एक संपूर्ण दृष्टिकोण
तत्त्व | परिभाषा | व्यावहारिक महत्त्व |
---|---|---|
ग्रह | गतिशील प्रकाश-पिण्ड जो प्रभाव डालते हैं | 9 ग्रहों का मानसिक, शारीरिक एवं आध्यात्मिक प्रभाव |
राशि | भचक्र के 12 भाग | ग्रहों का स्वभाव और प्रभाव-क्षेत्र |
नक्षत्र | भचक्र के 27 भाग (13°20') | सूक्ष्म आध्यात्मिक कंपन |
लग्न | जन्मकालीन उदित राशि | जीवन की मूल रूपरेखा |
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