संस्कृत श्लोक: "एकं हन्यान्न वा हन्यात् इषुर्मुक्तो धनुष्मता" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद

Sooraj Krishna Shastri
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संस्कृत श्लोक: "एकं हन्यान्न वा हन्यात् इषुर्मुक्तो धनुष्मता" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद
संस्कृत श्लोक: "एकं हन्यान्न वा हन्यात् इषुर्मुक्तो धनुष्मता" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद

संस्कृत श्लोक: "एकं हन्यान्न वा हन्यात् इषुर्मुक्तो धनुष्मता" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद

जय श्री राम। सुप्रभातम्।

यह श्लोक नीति और युद्धनीति का गहन बोध कराता है। आइए इसे विस्तार से समझते हैं:


श्लोक:

एकं हन्यान्न वा हन्यात् इषुर्मुक्तो धनुष्मता।
बुद्धिर्बुद्धिमतः सृष्टा हन्ति राष्ट्रं सनायकम्॥


शाब्दिक विश्लेषण:

  • एकम् – एक (व्यक्ति)
  • हन्यात् – मार सकता है
  • न वा हन्यात् – अथवा न भी मारे (संभावना है)
  • इषुः – बाण
  • मुक्तः – छोड़ा गया
  • धनुष्मता – धनुर्धर (विलधारी व्यक्ति)
  • बुद्धिः – बुद्धि (चालाकी, योजना)
  • बुद्धिमतः – बुद्धिमान व्यक्ति की
  • सृष्टा – बनाई गई / रची गई
  • हन्ति – मार देती है / नाश कर देती है
  • राष्ट्रम् – राष्ट्र (देश)
  • स-नायकम् – नायक सहित, अर्थात् शासक समेत

हिन्दी भावार्थ:

धनुर्धारी द्वारा छोड़ा गया एक बाण संभव है कि किसी एक को मारे या न मारे, किंतु बुद्धिमान व्यक्ति द्वारा रची गई योजना (या षड्यंत्र) सम्पूर्ण राष्ट्र को उसके शासक (नायक) सहित नष्ट कर सकती है।


व्याकरणिक विश्लेषण:

  • यह श्लोक अनुष्टुप् छन्द में है।
  • इसमें विपरीत प्रभाव (contrast) का उपयोग हुआ है – बाण के सीमित प्रभाव और बुद्धि के व्यापक प्रभाव को दर्शाने हेतु।
  • कर्तृवाच्य प्रयोग – "इषुर्मुक्तो धनुष्मता" – करण कारक सहित कर्ता "धनुष्मता"।

आधुनिक सन्दर्भ में विवेचना:

  • बाहुबल (बलप्रयोग) की तुलना में चातुर्य, नीति और मानसिक रणनीति अधिक प्रभावशाली होती है।
  • इतिहास में देखें तो –
    • कौटिल्य की नीतियाँ मगध साम्राज्य को खड़ा कर गईं।
    • चाणक्य नीति ने नन्द वंश का अंत कराकर मौर्य सम्राज्य की स्थापना कराई।
    • ट्रोजन हॉर्स जैसी रणनीति ने नगरों को ढहा दिया, जबकि शस्त्र केवल सीमित युद्ध कर पाते।
  • आज के संदर्भ में – आर्थिक युद्ध, साइबर अटैक, प्रोपेगंडा युद्ध, आदि बुद्धि के ही रूप हैं जो राष्ट्रों को अस्थिर कर सकते हैं।


बालकथा: "मूषक की चालाकी"

स्थान: वन में स्थित एक छोटा राज्य — सिंहनगर
पात्र:

  • राजा सिंहराज — एक शक्तिशाली मगर भोला सिंह
  • चातुर्यक — एक छोटा मूषक (चूहा), बहुत बुद्धिमान
  • भालुसेनापति — वीर मगर क्रोधित स्वभाव वाला सेनापति

कहानी:

बहुत समय पहले की बात है। सिंहनगर राज्य के राजा सिंहराज बड़े वीर थे। उनका बाण इतना सटीक था कि जंगल के शत्रु थर-थर कांपते थे। उनके सेनापति भालुसेनापति भी बहुत बलवान थे।

किन्तु, उसी वन में एक छोटा सा मूषक भी रहता था — नाम था चातुर्यक। वह अत्यंत बुद्धिमान था। उसे युद्ध नहीं आता था, मगर नीति और योजना में वह अद्भुत था।

एक दिन जंगल में हिरणों का संघ राजा से नाराज़ हो गया, क्योंकि राजा ने उन्हें कर देने को कहा। सेनापति भालुसेनापति ने कहा, "हमें युद्ध करना होगा!"
मगर मूषक बोला, "राजन, यदि युद्ध हुआ तो दोनों पक्ष हानि उठाएँगे। क्या आप मेरी एक नीति अपनाएँगे?"

राजा हँसे, "अरे मूषक! तुम एक बाण भी नहीं चला सकते, और राष्ट्र नीति की बात करते हो?"
मूषक ने मुस्कराते हुए कहा, "राजन्, बाण एक को मारता है, बुद्धि पूरे राष्ट्र को जीतती है।"

राजा ने उसे अवसर दिया। चातुर्यक ने हिरणों के संघ के बीच संदेश फैलाया कि अगर वे कर देंगे, तो जंगल का एक भाग हिरण उद्यान घोषित कर दिया जाएगा।
फिर उसने वन में एक विशेष हिरण मेला की योजना बनाई, जिसमें दूर-दूर से व्यापारी आते।

हिरणों को इससे लाभ हुआ, कर देने में सहजता हुई और राज्य को भी व्यापारिक समृद्धि मिली।
युद्ध टल गया, और पूरा जंगल खुशहाल हो गया।


नैतिक शिक्षा:

  • केवल बाह्य बल नहीं, अपितु विवेक और नीति की शक्ति से समाज या राष्ट्र की दिशा बदल सकती है।
  • बुद्धि का प्रयोग रचनात्मक हो तो समाज का कल्याण; विनाशकारी हो तो पूरे राष्ट्र का पतन।
  • शस्त्र की शक्ति सीमित होती है, पर बुद्धि की योजना राष्ट्र का भविष्य बदल सकती है।
  • जहाँ युद्ध से विनाश होता, वहीं नीति से समृद्धि आई।


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