संस्कृत श्लोक: "चन्दनं शीतलं लोके , चन्दनादपि चन्द्रमाः" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद

Sooraj Krishna Shastri
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संस्कृत श्लोक: "चन्दनं शीतलं लोके , चन्दनादपि चन्द्रमाः" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद
संस्कृत श्लोक: "चन्दनं शीतलं लोके , चन्दनादपि चन्द्रमाः" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद

 

संस्कृत श्लोक: "चन्दनं शीतलं लोके , चन्दनादपि चन्द्रमाः" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद

जय श्री राम! सुप्रभातम्!
यह अत्यंत सुंदर एवं गहन भाववाला श्लोक है। आइए इसे विस्तृत रूप से समझते हैं—


श्लोकः

चन्दनं शीतलं लोके , चन्दनादपि चन्द्रमाः । 
चन्द्रचन्दनयोर्मध्ये शीतला साधुसंगतिः ।। 


शाब्दिक अनुवादः

  • चन्दनं — चन्दन
  • शीतलं — शीतल, शांति प्रदान करने वाला
  • लोके — संसार में
  • चन्दनात् अपि — चन्दन से भी (अधिक)
  • चन्द्रमाः — चन्द्रमा
  • चन्द्रचन्दनयोः मध्ये — चन्द्र और चन्दन के बीच
  • शीतला — अधिक शीतल
  • साधुसंगतिः — साधु (श्रेष्ठ, गुणवान, पुण्यात्मा) का संग

हिन्दी भावार्थः

इस संसार में चन्दन को अत्यंत शीतल और शांतिदायक माना जाता है। किंतु चन्द्रमा, चन्दन से भी अधिक शीतल और सुखद होता है। परंतु चन्द्र और चन्दन — इन दोनों की तुलना में भी साधुजनों की संगति, यानी पुण्यात्माओं, संतों और सज्जनों का साथ — अधिक शीतलता, संतोष और मानसिक शांति प्रदान करने वाला होता है।


व्याकरणिक विश्लेषणः

  • चन्दनंनपुंसकलिङ्ग एकवचनम्, प्रथमा विभक्ति
  • शीतलंविशेषणम्, चन्दनं के लिए प्रयुक्त
  • चन्द्रमाःपुंलिङ्ग एकवचनम्, प्रथमा विभक्ति
  • साधुसंगतिःस्त्रीलिङ्ग एकवचनम्, प्रथमा विभक्ति
  • मध्यॆसप्तमी विभक्ति, चन्द्र और चन्दन के बीच

आधुनिक सन्दर्भ में व्याख्या:

आज के जीवन में भौतिक साधनों से सुख पाने की होड़ है — जैसे एयर कंडीशनर, ठंडी चीजें, आरामदायक वस्त्र आदि। लेकिन मानसिक अशांति, चिंता और तनाव इन सबको व्यर्थ कर देते हैं।

  • चन्दन — इन्द्रियों को सुख देने वाला।
  • चन्द्रमा — मन को ठंडक देने वाला, शीतल प्रकाश का प्रतीक।
  • साधुसंगतिः — जीवन में सच्चे शांति और मानसिक ठंडक की एकमात्र राह।

सज्जनों की संगति से हमें:

  • जीवन की दिशा मिलती है
  • मूल्य, नैतिकता और धर्म का बोध होता है
  • मन की व्यथा का समाधान होता है

एक संक्षिप्त बालकथा (आधारित इस श्लोक पर):

"शीतलता की खोज"
एक राजा चन्दन के बागों में ठंडी हवा का आनंद लेता था। फिर भी उसे मानसिक अशांति बनी रहती। उसने चन्द्रमा की शीतल रात्रियों में भी विश्राम की कोशिश की, पर निद्रा नहीं आती।

एक दिन वह एक संत के पास गया। संत की वाणी और सान्निध्य से उसका चित्त शांति से भर गया। तब राजा ने कहा:
"आज मैंने समझा कि चन्दन और चन्द्रमा की शीतलता शरीर को मिलती है, परंतु मन की शीतलता तो सज्जन की संगति से ही प्राप्त होती है।"

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