संस्कृत श्लोक: "निर्गुणेष्वपि सत्त्वेषु दयां कुर्वन्ति साधवः" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद

Sooraj Krishna Shastri
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संस्कृत श्लोक: "निर्गुणेष्वपि  सत्त्वेषु  दयां  कुर्वन्ति  साधवः" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद
संस्कृत श्लोक: "निर्गुणेष्वपि सत्त्वेषु दयां कुर्वन्ति साधवः" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद


संस्कृत श्लोक: "निर्गुणेष्वपि सत्त्वेषु दयां कुर्वन्ति साधवः" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद

जय श्री राम! सुप्रभातम्!
यह सुंदर श्लोक करुणा, समानता और साधुता के उच्च आदर्श को प्रकट करता है। आइए, इसे विस्तार से देखते हैं। 


श्लोक

निर्गुणेष्वपि सत्त्वेषु दयां कुर्वन्ति साधवः ।
न हि संहरते ज्योत्स्नां चन्द्रश्चाण्डालवेश्मनः ॥


शाब्दिक अर्थ (पदविच्छेद एवं शब्दार्थ):

  • निर्गुणेषु – गुणरहितों में, गुणों से रहित प्राणियों में
  • अपि – भी
  • सत्त्वेषु – प्राणियों में
  • दयाम् – दया (करुणा)
  • कुर्वन्ति – करते हैं (कृ धातु से)
  • साधवः – सज्जन पुरुष, महात्मा
  • न हि – निश्चय ही नहीं
  • संहरते – हटाता है, छीनता है
  • ज्योत्स्नाम् – चन्द्रमा की शीतल चांदनी
  • चन्द्रः – चन्द्रमा
  • चाण्डालवेश्मनः – चाण्डाल (अत्यंत निम्न जाति) के घर से

भावार्थ (सरल हिन्दी में):

महात्मा सज्जन पुरुष गुणहीन प्राणियों पर भी दया करते हैं। जैसे चन्द्रमा अपनी शीतल किरणों को चाण्डाल के घर से भी नहीं हटाता, वैसे ही साधुजन सबके प्रति समान रूप से करुणाशील रहते हैं।


व्याकरणिक विश्लेषण:

  • दयाम् – स्त्रीलिंग, एकवचन, द्वितीया विभक्ति (कर्म रूप)
  • साधवः – "साधु" शब्द का बहुवचन रूप, प्रथमा विभक्ति।
  • संहरते – "हृ" धातु से निषेधार्थक प्रयोग, लट् लकार (वर्तमानकाल)।
  • चाण्डालवेश्मनः – षष्ठी विभक्ति एकवचन (किसका? चाण्डाल के घर का)।
  • ज्योत्स्नाम् – "ज्योत्स्ना" शब्द का द्वितीया विभक्ति एकवचन।

आधुनिक सन्दर्भ में विवेचना:

आज भी यह नीति अत्यंत प्रासंगिक है:

  • एक सच्चा महात्मा, शिक्षक, नेता, या कोई भी सज्जन व्यक्ति सभी प्राणियों में दया और समानता का भाव रखता है, चाहे वे गुणी हों या निर्गुण।
  • जैसे सूर्य और चन्द्रमा अपनी रोशनी सब पर समान रूप से बरसाते हैं, वैसे ही सच्चा साधु अपनी दया, ज्ञान, और प्रेम सभी पर समान भाव से लुटाता है।
  • किसी की सामाजिक स्थिति, जाति, धन या पद देखकर नहीं, बल्कि मानवता के आधार पर व्यवहार करना ही महापुरुषों का लक्षण है।

प्रेरक संदेश:

  • सज्जनों की दया बिना भेदभाव के होती है।
  • करुणा और प्रेम सभी के प्रति समान होना चाहिए, न कि गुण और दोष देखकर।
  • दयालुता सच्चे साधु का स्वभाव है, जो सूर्य और चन्द्रमा की तरह सबको आलोकित करता है।

संक्षिप्त नीति निष्कर्ष:

"सच्ची साधुता बिना भेदभाव के सबमें करुणा प्रकट करना है।"



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