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संस्कृत श्लोक: "नात्यश्नतस्तु योगोऽस्ति न चैकान्तमनश्नतः" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद |
संस्कृत श्लोक: "नात्यश्नतस्तु योगोऽस्ति न चैकान्तमनश्नतः" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद
🙏 जय श्री राम 🌹 सुप्रभातम् 🙏
उद्धृत यह श्लोक भगवद्गीता के षष्ठ अध्याय (ध्यानयोग), श्लोक संख्या १६ से लिया गया है। यह श्लोक योग-साधना में मध्यमार्ग (मध्यमाचार) की महत्ता को रेखांकित करता है।
यहाँ प्रस्तुत है —
श्लोक:
नात्यश्नतस्तु योगोऽस्ति न चैकान्तमनश्नतः।
न चातिस्वप्नशीलस्य जाग्रतो नैव चार्जुन॥
(श्रीमद्भगवद्गीता 6.16)
शाब्दिक विश्लेषण:
पद | अर्थ |
---|---|
न | नहीं |
अत्यश्नतः | अत्यधिक खाने वाले व्यक्ति का |
तु | तो / लेकिन |
योगः | योग / ध्यान-साधना |
अस्ति | होता है |
न च | और नहीं |
एकान्तम् | पूर्ण रूप से / एकदम |
अनश्नतः | न खाने वाले (उपवास करने वाले) का |
न च | नहीं |
अतिस्वप्नशीलस्य | जो अधिक सोने का स्वभाव रखता है |
जाग्रतः | जो सदा जागता ही रहता है उसका |
न एव | बिल्कुल नहीं |
अर्जुन | हे अर्जुन! |
व्याकरणिक विवेचन:
- नात्यश्नतः, न अनश्नतः — कर्तरि षष्ठी (जिनके लिए योग नहीं है)।
- योगः अस्ति — प्रथम पुरुष, एकवचन।
- अतिस्वप्नशीलस्य, जाग्रतः — विशेषण रूप में उपयोग हुआ है।
हिंदी भावार्थ (सरल भाषा में):
हे अर्जुन!
जो व्यक्ति बहुत अधिक खाता है, या बिल्कुल नहीं खाता —
जो बहुत अधिक सोता है, या बिल्कुल नहीं सोता —
ऐसे लोगों के लिए योग (ध्यान, समाधि) सिद्ध नहीं होता।
आधुनिक सन्दर्भ में अर्थ:
-
आज की भागदौड़ भरी जीवनशैली में लोग या तो अत्यधिक आहार-विहार करते हैं या अत्यधिक संयम के नाम पर शरीर को कष्ट देते हैं।
-
गीता यहाँ स्पष्ट करती है कि योग या ध्यान कोई उग्र तपस्या या त्याग नहीं है,बल्कि एक संतुलित, संयमित जीवनचर्या में ही वह फलीभूत होता है।
-
Balance is the foundation of all spiritual progress.
नैतिक शिक्षा:
"योग" का मूल आधार है — मित आहार, मित निद्रा, मित व्यवहार।अतएव चर्या में संयम और मध्य मार्ग ही सच्ची साधना का पथ है।
प्रेरणात्मक कथा (संक्षेप में):
एक समय बुद्ध के शिष्य ने उपवास करके ध्यान साधना प्रारम्भ की।
परंतु वह दुर्बल होकर मूर्छित हो गया।
बुद्ध ने कहा —
"वीणा के तार यदि बहुत ढीले हों, तो स्वर नहीं निकलते।यदि बहुत कसे हों, तो टूट जाते हैं।ध्यान भी ऐसा ही है — संतुलन ही उसका मूल है।"