संस्कृत श्लोक: "अनवाप्यं च शोकेन शरीरं चोपतप्यते" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद

Sooraj Krishna Shastri
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संस्कृत श्लोक: "अनवाप्यं च शोकेन शरीरं चोपतप्यते" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद
संस्कृत श्लोक: "अनवाप्यं च शोकेन शरीरं चोपतप्यते" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद


संस्कृत श्लोक: "अनवाप्यं च शोकेन शरीरं चोपतप्यते" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद

🙏 जय श्री राम 🌷 सुप्रभातम् 🙏

 प्रस्तुत श्लोक अत्यंत प्रेरणादायक एवं नीति से भरपूर है। आइए इसका विस्तारपूर्वक हिन्दी अनुवाद, शाब्दिक विश्लेषण, व्याकरण, और आधुनिक सन्दर्भ सहित समझते हैं।


श्लोकः

अनवाप्यं च शोकेन शरीरं चोपतप्यते।
अमित्राश्च प्रहृष्यन्ति मा स्म शोके मनः कृथाः॥


शाब्दिक अनुवाद:

  • अनवाप्यं – अप्राप्त होने वाला, प्राप्त न किया जा सकने वाला
  • – और
  • शोकेन – शोक करने से
  • शरीरं – शरीर
  • – भी
  • उपतप्यते – संतप्त होता है, कष्ट पाता है
  • अमित्राः – शत्रु
  • प्रहृष्यन्ति – प्रसन्न होते हैं
  • मा – मत
  • स्म – कभी
  • शोके – शोक में
  • मनः – मन
  • कृथाः – लगाओ

सरल हिन्दी भावार्थ:

शोक करने से वह वस्तु तो प्राप्त नहीं होती जो हम पाना चाहते हैं, परंतु इससे हमारा शरीर दुखी होता है और हमारे शत्रु प्रसन्न होते हैं। अतः हे मानव! तुम कभी भी अपने मन को शोक में मत लगाना।


व्याकरणिक विश्लेषण:

  • अनवाप्यंकर्मणि वर्तमान कृदन्त, "न अवाप्य" (जो प्राप्त न किया जा सके)।
  • शोकेनतृतीया विभक्ति एकवचन, "शोक" शब्द से
  • उपतप्यतेप्रथम पुरुष एकवचन आत्मनेपदी लट् लकार, "उप+तप्" धातु से
  • प्रहृष्यन्तिप्रथम पुरुष बहुवचन आत्मनेपदी लट् लकार, "प्र+हृष्" धातु से
  • मा स्म...कृथाः – निषेधवाचक संयोजन; 'मा स्म' वैदिक निषेध (मत करो) और कृथाः लोट् लकार द्वितीय पुरुष

आधुनिक सन्दर्भ में शिक्षाः

  1. शोक एक मानसिक रोग है – यह न केवल मन को दुख देता है, बल्कि शरीर पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है – तनाव, रोग, थकावट आदि।
  2. शत्रुओं को सुख देना मूर्खता है – जब हम टूटते हैं, तो हमारे विरोधी हर्षित होते हैं। क्यों उन्हें अवसर दें?
  3. समाधान में लगें, शोक में नहीं – शोक करने से समस्या हल नहीं होती। इसलिए ऊर्जा समाधान में लगाएँ।
  4. मनोबल को बनाए रखें – किसी भी कठिनाई के समय मन को स्थिर और सकारात्मक रखना ही सच्ची बुद्धिमानी है।

प्रेरक नीति-कथा (संक्षेप में):

राजा नल ने अपने राज्य, वस्त्र, संपत्ति, और पत्नी दमयंती तक को जुए में हार दिया। उन्होंने कुछ समय अत्यंत शोक में बिताया। एक वृद्ध मुनि ने उन्हें यही उपदेश दिया – "शोक करने से कुछ वापस नहीं मिलेगा, केवल शरीर ही दुःख पाएगा। उठो, प्रयास करो, आत्मबल पुनः स्थापित करो।" उसी उपदेश के कारण नल ने दुबारा स्वयं को खड़ा किया और अपना राज्य पुनः प्राप्त किया।

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