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संस्कृत श्लोक: "अनारम्भो हि कार्याणां प्रथमं बुद्धिलक्षणम्" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद |
संस्कृत श्लोक: "अनारम्भो हि कार्याणां प्रथमं बुद्धिलक्षणम्" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद
श्लोक:
1. शाब्दिक अन्वय एवं अर्थ:
- अनारम्भः – आरम्भ न करना
- हि – निःसंदेह, क्योंकि
- कार्याणाम् – कार्यों का (सप्तमी बहुवचन, 'कार्य' शब्द से)
- प्रथमम् – पहला
- बुद्धि-लक्षणम् – बुद्धि का लक्षण
- आरब्धस्य – आरंभ किए गए (कार्य का)
- अन्तगमनम् – अंत तक पहुँचना, पूर्ण होना
- द्वितीयम् – दूसरा
- बुद्धिलक्षणम् – बुद्धि का लक्षण
2. संक्षिप्त हिन्दी अनुवाद:
3. व्याकरणिक विश्लेषण:
पद | शब्द रूप | कारक/विभक्ति | अर्थ |
---|---|---|---|
अनारम्भः | रामः (पुल्लिंग) | प्रथमा एकवचन | आरंभ न करना |
कार्याणाम् | कार्य (नपुंसक) | षष्ठी बहुवचन | कार्यों का |
प्रथमम् | प्रथम (पुल्लिंग) | प्रथमा एकवचन | पहला |
बुद्धिलक्षणम् | लक्षण (नपुंसक) | प्रथमा एकवचन | बुद्धि का चिन्ह |
आरब्धस्य | √रभ् धातु (क्रियायुक्त) | षष्ठी एकवचन | आरंभ किए हुए का |
अन्तगमनम् | अन्त + गमन | प्रथमा एकवचन | अंत तक पहुँचना |
द्वितीयम् | द्वितीय (विशेषण) | प्रथमा एकवचन | दूसरा |
4. भावार्थ / तात्त्विक अर्थ:
इस नीति श्लोक में दो महत्वपूर्ण बौद्धिक गुणों का निर्देश दिया गया है:
-
किसी भी कार्य को बिना सोचे-समझे आरंभ न करना – यह विवेकशीलता का लक्षण है। जो व्यक्ति बिना योजना, संसाधन या क्षमता का विचार किए बिना कार्य आरंभ करता है, वह प्रायः विफल होता है।
-
जो कार्य एक बार आरंभ कर दिया गया हो, उसे पूरा करना ही चाहिए – यह दृढ़ निश्चय और साहस का लक्षण है। अधूरे कार्य न केवल समय और श्रम की हानि करते हैं, बल्कि आत्मविश्वास को भी कम करते हैं।
5. आधुनिक सन्दर्भ में प्रासंगिकता:
-
प्रबंधन (Management): किसी भी प्रोजेक्ट को शुरू करने से पूर्व योजना, जोखिम मूल्यांकन, संसाधनों की उपलब्धता आदि की जांच करना आवश्यक होता है।
-
छात्र जीवन में: बिना सोच के विषय या कोर्स चुन लेना आगे चलकर असंतोष और असफलता का कारण बन सकता है। वहीं, जो विद्यार्थी अपने चुने हुए विषय में अंत तक लगे रहते हैं, वे लक्ष्य को प्राप्त करते हैं।
-
नवाचार (Startups) में: बहुत से स्टार्टअप्स उत्साह से शुरू होते हैं, पर योजना और धैर्य के अभाव में अधूरे रह जाते हैं।
-
व्यक्तित्व विकास में: बुद्धिमान व्यक्ति वही होता है जो न केवल विचारपूर्वक कार्य करता है, बल्कि अवरोधों के बावजूद उसे पूर्ण भी करता है।
श्लोक
कथा शीर्षक: "संधान और संकल्प – दो मित्रों की कथा"
पात्र:
- गुरुदेव चाणक्य (विवेकी आचार्य)
- संधान (सोच-समझकर कार्य करने वाला)
- संकल्प (उत्साही पर अधीर)
[गुरुकुल का आँगन – प्रातःकाल का समय]
[एक सप्ताह बाद]
नीति बिंदु:
- बिना सोच कार्य न आरंभ करें – यह बुद्धि का प्रथम लक्षण है।
- आरंभ करने के बाद कार्य को छोड़ें नहीं – यह बुद्धि का द्वितीय लक्षण है।
- उत्साह महत्वपूर्ण है, पर संयम और योजना उसके सार हैं।
- धीरे चलना, परंतु चलते रहना, सफलता का मार्ग है।
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