पितरों का उद्धार करता है श्रीमद्भागवत! आत्मदेव ब्राह्मण की कथा - भागवत

Sooraj Krishna Shastri
By -
0

 

पितरों का उद्धार करता है श्रीमद्भागवत! आत्मदेव ब्राह्मण की कथा -  भागवत
पितरों का उद्धार करता है श्रीमद्भागवत! आत्मदेव ब्राह्मण की कथा -  भागवत

पितरों का उद्धार करता है श्रीमद्भागवत! आत्मदेव ब्राह्मण की कथा भागवत

 श्रीमद्भागवत करने से पित्रों का उद्धार हो जाता है। भागवत पुराण करवाने वाला अपना उद्धार तो करता ही है अपितु अपने सात पीढि़यों का उद्धार कर देता है। पापी से पापी व्यक्ति भी यदि सच्चे मन से श्रीमद्भागवत की कथा सुन ले तो उसके भी समस्त पाप दूर हो जाते हैं। जीवन पर्यन्त कोई पाप कर्म करता रहे और पाप कर्म करते-करते मर जाय एवं भयंकर भूत-प्रेत योनि में चला जाय, यदि उसके नाम से हम श्रीमद्भागवत कथा करवायें तो वह भी बैकुण्ठ-लोक को प्राप्त करता है। इसके पीछे एक अद्भुद एवं विचित्र कथा है।       

 तुंगभद्रा नदी के किनारे किसी नगर में आत्मदेव नामक एक ब्राह्मण रहते थे। ब्राह्मण बड़े सुशील और सरल स्वभाव के थे। लेकिन उनकी पत्नी धुँधली बड़ी दुष्ट प्रकष्ति की थी। वह बड़ी जिद्दी, अहंकारी और लोभी थी। आत्मदेव जी के घर में कोई कमी नहीं थी।

 लेकिन उनकी कोई सन्तान नहीं थी। एक दिन उन्हें स्वप्न हुआ कि तुम्हारी कोई सन्तान नहीं, इसलिये तुम्हारे पित्र बड़े दुःखी हैं और तुम्हारे दिये हुये जल को गर्म श्वास से ग्रहण करते हैं। आत्मदेव जी को बड़ा दुःख हुआ। सोचने लगे कि मेरी सन्तान नहीं इसलिये पित्रों के दोष से ही मेरे घर में गाय का कोई बछड़ा नहीं होता और न ही पेड़ पर फल लगते हैं। 

सन्तानहीन व्यक्ति के जीवन को धिक्कार है। वह तो इह लोक-परलोक दोनों ही में दुःख पाता है। एक दिन सबकुछ छोड़-छाड़कर दुःखी मन से आत्मदेव जी सीधे वन चले गये। दो-तीन दिन तक वन में विलाप करने के पश्चात् एक दिन उन्हें वहाँ एक महात्मा के दर्शन हुये और अपने दुःख का कारण बताया।

 महात्मा ने आत्मदेव जी को एक फल दिया और कहा कि इस फल को अपनी पत्नी को खिला देना। इससे उसका पुत्र हो जायेगा। आत्मदेव जी घर आये और अपनी पत्नी धुँधली को वह फल दे दिया। धुँधली ने सोचा कि ये पता नहीं किस बाबा से उठा लाये हैं, फल खाके कुछ हो गया तो! चलो सन्तान हो भी जाय तो उसे पालने में कितना कष्ट उठाना पड़ता है, मैं गर्भवती हो गयी तो मेरा रूप-सौन्दर्य ही बिगड़ जायेगा। 

ऐसा सोचकर उसने वह फल घर में बँधी बन्ध्या गाय को खिला दिया और आत्मदेव जी से कहकर छह-सात महीने के लिये अपनी बहिन के घर चली गयी। कुछ महीनों बाद बहिन का पुत्र लेकर लौटी और आत्मदेव जी से कहा कि मेरा पुत्र हो गया। आत्मदेव जी बड़े प्रसन्न हुये और धुँधली के कहने पर उस पुत्र का नाम धुँधकारी रख दिया।

इधर धुँधली ने जो फल अपनी बन्ध्या गाय को खिलाया था उस गाय ने भी एक सुन्दर से बालक को जन्म दिया। जिसका पूरा शरीर मनुष्य की तरह और गाय की तरह उसके कान थे। इसलिये आत्मदेवजी ने उसका नाम गौकर्ण रख दिया। धीरे-धीरे दोनों बालक बड़े होने लगे तो गौकर्ण पढ़-लिखकर विद्वान और ज्ञानी बना, लेकिन धुँधकारी बड़ा दुष्ट पैदा हुआ।

     "गोकर्णः पण्डितो ज्ञानी धुँधकारी महाखलः॥"

गोकर्ण पढ़ने को बनारस चला गया। धुँधकारी गाँव में ही बच्चों को पीटता, वष्द्धों को परेशान करता, चोरी करता, धीरे-धीरे डाका डालने लगा और बहुत बड़ा डाकु बन गया। माँस-मदिरा का सेवन करता हुआ धुँधकारी रोज मध्य रात्रि में घर आता। आत्मदेव जी को बड़ा दुःख हुआ, पुत्र को बहुत समझाया, लेकिन पुत्र नहीं माना। 

बड़े दुःखी मन से आत्मदेव जी सीधे वन को चले गये और भगवान का भजन करते हुये आत्मदेव जी ने अपने शरीर का परित्याग कर दिया।

अब घर में माँ रहती तो माँ को भी धुँधकारी परेशान करने लगा, यहाँ तक कि माँ को पीटने लगा। एक दिन धुँधली ने भी डर कर अर्द्धरात्रि में कुँए में कूदकर आत्महत्या कर ली। अब तो धुँधकारी घर में पाँच-पाँच वेश्याओं के साथ में रहने लगा। 

एक दिन धन के लोभ में उन वेश्याओं ने धुँधकारी को मदिरा पिलाकर जलती हुयी लकड़ी से जलाकर मार डाला और धुँधकारी को वहीं दफनाकर उसका सारा धन लेकर के भाग गयी। धुँधकारी जीवन भर पाप कर्म करता रहा और मरने के बाद भयंकर प्रेत-योनि में चला गया। 

एक दिन गौकर्ण जी तीर्थ यात्रा से लौटे तो जाना कि धुँधकारी प्रेत-योनि में भटक रहा हैै। तब गौकर्ण ने अपने भाई के निमित्त श्रीमद्भागवत की कथा करवायी। सात दिनों तक कथा सुनने के पश्चात् धुँधकारी प्रेत-योनि से विमुक्त होकर दिव्य-स्वरूप धारण कर भगवान विष्णु के लोक में पहुँच गये। इसलिये पित्रों के निमित्त श्रीमद्भागवत कथा करवाने से पित्रों को मुक्ति मिल जाती है।

श्रीमद्भागवत कथा सुनने का फल !!!!!!

मानव जीवन सबसे उत्तम और अत्यन्त दुर्लभ है। श्रीगोविन्द की विशेष कष्पा से हम मानव-योनि में आये हैं। भगवान के भजन करने के लिये ही हमें यह जीवन मिला है और श्रीमद्भागवत कथा सुनने से या करने से हम अपना मानव जीवन में जन्म लेना सार्थक बना सकते हैं। श्रीमद्भागवत कथा सुनने के अनन्त फल हैं।

श्रीमद्भागवत कथा सुनने से मनुष्य को आत्मज्ञान होता है। भगवान की दिव्य लीलाओं को सुनकर मनुष्य अपने ऊपर परमात्मा की विशेष अनुकम्पा का अनुभव करता है।

श्रीमद्भागवत कथा करने से मनुष्य अपने सुन्दर भाग्य का निर्माण शुरू कर देता है। वह ईह लोक में सभी प्रकार के भोगों को भोग कर परलोक में भी श्रेष्ठता को प्राप्त करता है।

श्रीमद्भागवत कथा मनुष्य को जीना सिखाती है तथा मष्त्यु के भय से दूर करती है एवं पित्र दोषों को शान्त करती है।

जिस व्यक्ति ने जीवन में कोई सत्कर्म न किया हो, सदैव दुराचार में लिप्त रहा हो, क्रोध रूपी अग्नि में जो हमेशा जलता रहा हो, जो व्यभिचारी हो गया हो, परस्त्रीगामी हो गया हो, यदि वह व्यक्ति भी श्रीमद्भागवत की कथा करवाये तो वह भी पापों से मुक्त हो जाता है।

जो सत्य से विहीन हो गये हों, माता-पिता से भी द्वेष करने लगे हों, अपने धर्म का पालन न करते हों, वे भी यदि श्रीमद्भागवत कथा सुनें तो वे भी पवित्र हो जाते हैं।

मन-वाणी, बुद्धि से किया गया कोई भी पापकर्म-चोरी करना, छद्म करना, दूसरों के धन से अपनी आजीविका चलाना, ब्रह्म-हत्या करने वाला भी यदि सच्चे मन से श्रीमद्भागवत कथा सुनले तो उसका भी जीवन पवित्र हो जाता है।

जीवन-पर्यन्त पाप करने के पश्चात् मरने के बाद भयंकर प्रेत-योनि (भूत योनि) में चला गया व्यक्ति के नाम पर भी यदि हम श्रीमद्भागवत की कथा करवायें तो वह भी प्रेत-योनि से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त कर लेता है।

Post a Comment

0Comments

thanks for a lovly feedback

Post a Comment (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!