अधिकतर लोग सुबह-शाम पूजा करते हैं, लेकिन उनका मन शांत नहीं होता है, क्यों ?

Sooraj Krishna Shastri
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अधिकतर लोग सुबह-शाम पूजा करते हैं, लेकिन उनका मन शांत नहीं होता है, क्यों ?
अधिकतर लोग सुबह-शाम पूजा करते हैं, लेकिन उनका मन शांत नहीं होता है, क्यों ?


निश्चित ही! प्रस्तुत कथा  व्यवस्थित, विस्तृत तथा संवादात्मक शैली में आपके लिए प्रस्तुत करता हूँ, ताकि यह और भी प्रभावशाली बन सके और पाठकों तक इसकी गूढ़ शिक्षा गहराई से पहुँच सके —


अधिकतर लोग सुबह-शाम पूजा करते हैं, लेकिन उनका मन शांत नहीं होता है, क्यों ?

भूमिका:

पुराने समय की बात है। एक गाँव में एक धर्मनिष्ठ महिला रहती थी। वह प्रतिदिन प्रातःकाल और सायंकाल पूजा-पाठ करती थी, व्रत-उपवास रखती थी, और जब भी गाँव में कोई साधु-संत आता, तो उसका आदर-सत्कार करती थी।

परंतु एक बात उसे भीतर ही भीतर कचोटती थी —
"मैं सब कुछ कर रही हूँ, फिर भी मेरा मन शांत क्यों नहीं रहता?"


प्रसंग: एक संत का आगमन

एक दिन उस गाँव में एक प्रसिद्ध संत पधारे। वे गहराई से जीवन के सत्य को समझाने वाले, सरल और करुणाशील प्रवचनकर्ता थे। गाँव में रुककर वे दिनभर जन-जन को उपदेश देते और शाम को अपने भिक्षा पात्र (कमंडल) लेकर घर-घर जाकर भिक्षा माँगते।


संवाद: महिला और संत की पहली भेंट

(संत महिला के घर भिक्षा माँगने पहुँचे)

👩‍🦳 महिला (आदरपूर्वक)
"स्वामीजी! कृपा करके मेरा अन्न स्वीकार करें।"

🧘 संत (कमंडल आगे बढ़ाते हुए)
"माँ! तुम्हारा भाव ही हमारे लिए सबसे मूल्यवान है।"

👩‍🦳 महिला (संकोच और पीड़ा के साथ)
"स्वामीजी, मैं प्रतिदिन पूजा करती हूँ, उपवास रखती हूँ, सत्संग सुनती हूँ... फिर भी मेरे मन में बेचैनी रहती है। मन कभी शांति नहीं पाता। कृपया मुझे बताइये कि सच्चा सुख और शांति कैसे मिलती है?"

🧘 संत (मुस्कुराते हुए)
"इस प्रश्न का उत्तर मैं कल दूँगा, और स्वयं तुम्हारे ही घर आकर दूँगा।"


अगले दिन: संत का आगमन और प्रतीक्षा

अगले दिन महिला ने संत के सत्कार के लिए स्वादिष्ट खीर बनाई। वह अत्यंत उत्साहित थी कि आज उसे अपने प्रश्न का उत्तर मिलेगा।

संत समय पर उसके द्वार पहुँचे और बाहर से आवाज़ दी —
🧘 "माँ! भिक्षाम् देहि।"

👩‍🦳 महिला (खीर का कटोरा लेकर बाहर आती है)
"स्वामीजी! आज मैंने विशेष रूप से आपके लिए खीर बनाई है। कृपया इसे स्वीकार करें।"

संत ने अपना कमंडल आगे बढ़ा दिया।


संवाद: कमंडल और अंतर्निहित शिक्षा

महिला ने जब कमंडल के भीतर देखा तो वह चौंकी।

👩‍🦳 "स्वामीजी! आपके कमंडल में तो गंदगी और कचरा है! उसमें तो खीर डालने से वह बिगड़ जाएगी। कृपया कमंडल मुझे दें, मैं उसे धोकर फिर खीर डालती हूँ।"

🧘 संत (धैर्यपूर्वक)
"क्या मतलब है तुम्हारा? क्या बिना सफाई के तुम इसमें खीर नहीं डालोगी?"

👩‍🦳 "नहीं महाराज! जब तक पात्र स्वच्छ न हो, तब तक उसमें अमृततुल्य खीर कैसे डाली जा सकती है?"

संत मुस्कुराए और बोले —

🧘 "माँ! यही तो मैं तुम्हें समझाना चाहता था।"

"जिस प्रकार तुम गंदे पात्र में शुद्ध खीर नहीं डाल सकती, उसी प्रकार जब तक मन गंदा है — उसमें काम, क्रोध, लोभ, मोह, और बुरे विचारों की गंदगी भरी है — तब तक उसमें भक्ति, ज्ञान और शांति टिक नहीं सकती।"

"मन को शुद्ध किए बिना उपदेश और साधना का फल नहीं मिलता।"

"पात्र पहले शुद्ध करो — मन को निर्मल और शांत बनाओ, तभी परम सुख का अनुभव होगा।"


🪷 कथा की गूढ़ सीख

  • सच्चा सुख और आनंद पाने के लिए पहले अपने मन को शुद्ध करना होगा।

  • मन में जब तक नकारात्मक भावनाएँ रहेंगी, वहाँ शांति और ज्ञान वास नहीं कर सकते।

  • जैसे गंदे बर्तन में अमृत नहीं रखा जा सकता, वैसे ही अशांत मन में दिव्यता नहीं ठहरती।

  • पूजा और व्रत से पहले भावों की शुद्धता आवश्यक है।

  • शुद्ध, निर्मल और संतुलित मन ही ईश्वर और आत्मज्ञान की सच्ची झलक पा सकता है।


📿 "जब मन शांत हो जाता है, तभी आत्मा की आवाज़ सुनाई देती है। और जब आत्मा बोलती है, तब संसार का हर शोर मौन हो जाता है।" 🕉️



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