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संस्कृत श्लोक: "बहुभिर्न विरोद्धव्यं दुर्बलैरपि धीमता ।" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद |
संस्कृत श्लोक: "बहुभिर्न विरोद्धव्यं दुर्बलैरपि धीमता ।" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद
श्लोक
शब्दार्थ
- बहुभिः — बहुतों के द्वारा
- न विरोद्धव्यम् — विरोध नहीं करना चाहिए
- दुर्बलैः अपि — दुर्बलों के साथ भी
- धीमता — बुद्धिमान व्यक्ति को
- स्फुरन्तम् अपि — फड़फड़ाते (हिलते) हुए भी
- नागेन्द्रम् — महान सर्प (नागराज) को
- भक्षयन्ति — खा जाती हैं
- पिपीलिकाः — चींटियाँ
हिन्दी अनुवाद
बुद्धिमान व्यक्ति को, यदि वह भी बलशाली हो, तब भी बहुत सारे दुर्बलों से विरोध नहीं करना चाहिए। जैसे कि हिलता हुआ (बलवान) साँप भी बहुत-सी चींटियों द्वारा खा लिया जाता है।
व्याकरणिक विश्लेषण
- बहुभिः — तृतीया विभक्ति, बहुवचन (पुंलिंग)
- विरोध्यव्यम् — न कार्तव्यं (कर्तव्य न करने योग्य), भाववाचक शब्द
- दुर्बलैः — तृतीया विभक्ति, पुल्लिंग, बहुवचन
- धीमता — सप्तमी विभक्ति, एकवचन (पुंलिंग) — ‘धीमत्’ शब्द से
- स्फुरन्तम् — क्रियाविशेषण, वर्तमान काल में हिलने वाला
- नागेन्द्रम् — द्वितीया विभक्ति, एकवचन
- भक्षयन्ति — लट् लकार, वर्तमान काल, बहुवचन
- पिपीलिकाः — कर्तृवाचक, प्रथमा विभक्ति, बहुवचन
आधुनिक सन्दर्भ में व्याख्या
आज की राजनीति, समाज या संगठनात्मक कार्यों में यह नीति अत्यंत यथार्थ सिद्ध होती है।
- कोई व्यक्ति कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, यदि वह एकता में संगठित जनसमूह से उलझता है, तो उसकी पराजय निश्चित है।
- इतिहास में कई बार देखा गया है कि अत्याचारी शासकों को साधारण जनता ने एकजुट होकर नीचे गिराया।
- यही संदेश हमें लोकतंत्र की शक्ति, जन-बल, और संगठन की महत्ता को समझने में सहायता करता है।
- साथ ही यह चेतावनी भी है कि घमण्ड या व्यक्तिगत बल पर अति-आत्मविश्वास घातक हो सकता है।
नीति-सार
"सामूहिक शक्ति, व्यक्तिगत बल से कहीं अधिक प्रभावशाली होती है।"
यह रही श्लोक "बहुभिर्न विरोद्धव्यं..." पर आधारित एक छोटी, संवादात्मक नीति-कथा —
कथा शीर्षक: "अहंकारी सर्प और एकजुट चींटियाँ"
(संवादात्मक शैली में)
- सर्पराज (नागेन्द्र)
- मुखिया पिपीलिका (चींटी समूह की नेता)
- वनवासी गिलहरी
[प्रवेश — सर्पराज एक शिला पर विराजमान है, अभिमान से फुफकारता हुआ]
[कुछ दूर चींटियों का दल परिश्रम कर रहा है। मुखिया पिपीलिका सबको निर्देश दे रही है।]
[रात्रि में योजना बनती है। अगली सुबह — सर्प निद्रा में है।]
[चींटियों की हजारों की टोली सर्प पर चढ़ जाती है — धीरे-धीरे सर्प की नींद खुलती है, वह छटपटाता है!]
[सर्प तड़पता है और अंततः निष्क्रिय हो जाता है।]
नैतिक शिक्षा:
"एकता में शक्ति होती है। अहंकार और अकेली शक्ति भी जनता की एकजुटता के सामने टिक नहीं सकती।"
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