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राजा भोज की प्रेरणादायक कथा |
🌿 राजा भोज और चाचा मुंज की प्रेरणादायक कथा
(धर्म, नीति और वैराग्य का अद्भुत संदेश)
🔸 प्रारम्भिक प्रसंग: पिता का वचन
प्राचीन भारत के महान नरेशों में से एक थे राजा भोज। जब भोज अभी अबोध बालक ही थे, तभी उनके पिता का स्वर्गवास हो गया। मृत्यु से पूर्व, राजा ने अपने अनुज मुंज को समीप बुलाया और उनसे विनम्र स्वर में कहा —
“भोज अभी बहुत छोटा है, अतः राज्य की बागडोर फिलहाल तुम संभालो। किंतु जब यह योग्य और समझदार हो जाए, तब इसे राजपाट सौंप देना। यही मेरा अंतिम आदेश है।”
चाचा मुंज ने वचन तो दे दिया, परंतु समय के साथ उनकी नीयत में परिवर्तन आ गया।
🔸 नियति की परीक्षा: चाचा की कुटिलता
भोज बाल्यकाल में अत्यंत तेजस्वी, विवेकशील एवं दयालु स्वभाव के थे। वे चाचा मुंज की देखरेख में बड़े हो रहे थे। किंतु जब वे धीरे-धीरे यौवन की ओर बढ़ने लगे और उनमें राजकीय गुण प्रकट होने लगे, तब चाचा की चिंता बढ़ने लगी।
मुंज ने मन ही मन सोचा —
“यदि भोज बड़ा हो गया और उसमें राजा बनने के गुण उत्पन्न हो गए, तो मुझे राज्य त्यागना पड़ेगा। इससे पहले कि वह सक्षम बने, क्यों न उसे रास्ते से हटा दिया जाए?”
इस दुर्भावना से ग्रस्त होकर, राजा मुंज ने जल्लादों को बुलाया और आदेश दिया —
“इस बालक को दूर जंगल में ले जाकर समाप्त कर दो। अब यह मेरे मार्ग का काँटा बन चुका है।”
🔸 मानवता की जागृति: वधिकों की दया
राजा भोज को ले जाकर जब जल्लाद जंगल में पहुँचे, तो उन्होंने उस निरपराध, निष्कलुष बालक के तेज और निरीहता को देखकर द्रवित हो गए। उनका हृदय पसीज गया।
उन्होंने भोज को ससम्मान मुक्त कर दिया और सच्चाई बताते हुए कहा —
“तुम्हारे चाचा ने तुम्हारे प्राण हरने का आदेश दिया है। किंतु हम तुम्हें मार नहीं सकते। भाग जाओ और अपना भविष्य स्वयं गढ़ो।”
भोज भयभीत नहीं हुए। उन्होंने साहस के साथ एक असाधारण कार्य किया।
🔸 सत्य की चोट: भोज का श्लोक और व्यंग्यपूर्ण संदेश
उन्होंने अपने रक्त से एक श्लोक लिखा और जल्लादों से कहा कि वह राजा मुंज तक पहुँचा दिया जाए। वह श्लोक था:
मान्धाता च महीपतिः कृतयुगाऽऽलंकार भूतो गतः।सिन्धुर्येन महोदधौ विरचितः क्वासौ दशास्यान्तकः॥अन्ये चापि युधिष्ठिरप्रभृतयः याताः दिवं भूपते।नैकेनापि समं गता वसुमती मुंजस्त्वया यास्यति॥
📖 श्लोक का अर्थ:
"हे राजन्! सतयुग के महान सम्राट मान्धाता भी अब नहीं रहे। त्रेता युग में जिन्होंने समुद्र पर पुल बनवाया और दशानन रावण का अंत किया – वे श्रीराम भी चले गए। द्वापर में युधिष्ठिर जैसे धर्मराज भी इस धरती को छोड़कर स्वर्गवासी हो गए। इन समस्त प्रतापी राजाओं में से कोई भी अपने साथ पृथ्वी अथवा उसका वैभव नहीं ले गया।परंतु हे मुंज! शायद आप ही पहले व्यक्ति होंगे जो सम्पूर्ण पृथ्वी को अपने साथ ले जाने का प्रयत्न कर रहे हैं!"
🔸 अंतर्मंथन: मुंज का हृदय परिवर्तन
इस व्यंग्यात्मक किंतु गंभीर श्लोक को पढ़कर राजा मुंज की आँखें खुल गईं। उनके भीतर ग्लानि और पश्चात्ताप की ज्वाला प्रज्वलित हो उठी। उन्होंने अपने अपराध को स्वीकार किया और तत्काल भोज को खोज मंगवाया।
🔸 न्याय की पुनर्स्थापना: भोज का राज्याभिषेक
राजा मुंज ने सार्वजनिक रूप से क्षमा माँगी और भोज को राजसिंहासन सौंपते हुए कहा —
“मेरे अपराध क्षम्य नहीं, परंतु तुम धर्मात्मा हो। मुझे क्षमा करो और इस राज्य को धर्मपूर्वक चलाओ।”
इस प्रकार राजा भोज ने न केवल अपने धैर्य, विवेक और काव्यात्मक प्रहार से स्वयं को बचाया, बल्कि समस्त राज्य में धर्म और न्याय की स्थापना भी की।
🔹 नैतिक शिक्षा:
यह कथा केवल एक ऐतिहासिक प्रसंग नहीं, अपितु मानव स्वभाव, सत्ता की लालसा और जीवन की नश्वरता का गहरा चिंतन प्रस्तुत करती है।
🔸 यह बताती है कि —
- धन, सत्ता, वैभव – ये सब नाशवान हैं।
- अंत में मनुष्य खाली हाथ ही संसार से जाता है।
- जो व्यक्ति दूसरों को धोखा देता है, अंततः स्वयं अपने पापों में फँसता है।
- और सत्य, साहस व विवेक से बड़ी कोई तलवार नहीं।
🌺 उपसंहार:
राजा भोज की यह कथा आज के युग में भी उतनी ही प्रेरणादायक और प्रासंगिक है जितनी प्राचीन काल में थी। यह हमें सिखाती है कि जब सत्ता का अंधकार बढ़ता है, तब भी धैर्य, ज्ञान और सत्य की ज्योति से रास्ता निकाला जा सकता है।