हीरापुर का चौसठ योगिनी मंदिर (महामाया मंदिर)

Sooraj Krishna Shastri
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🔱 हीरापुर का चौसठ योगिनी मंदिर (महामाया मंदिर)

🔸 स्थान और पहुँच:

  • निकटतम रेलवे स्टेशन: भुवनेश्वर (लगभग 10 कि.मी. की दूरी पर स्थित)
  • स्थिति: हीरापुर ग्राम, भुवनेश्वर, ओडिशा
  • वर्तमान संरक्षण: भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा संरक्षित एवं अनुरक्षित स्मारक
Chausath yogini temple Hirapur Bhubaneswar Udisa
Chausath yogini temple Hirapur Bhubaneswar Udisa 



🔸 इतिहास एवं निर्माण:

  • निर्माण काल: 9वीं शताब्दी ईस्वी
  • निर्माता: ब्रह्मा राजवंश की रानी हीरादेवी
  • स्थानीय नाम: महामाया मंदिर
  • परंपरागत उद्देश्य: चौसठ योगिनियों की उपासना हेतु निर्मित

🔸 मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा:

स्थानीय पुजारियों के अनुसार, देवी दुर्गा ने एक शक्तिशाली दानव का वध करने हेतु 64 रूपों में विभक्त होकर युद्ध किया।
युद्ध के पश्चात् उन 64 रूपों (योगिनियों) ने दुर्गा से प्रार्थना की कि उनकी स्मृति में एक ऐसा स्थल बनाया जाए जो उन्हें समर्पित हो।
इस प्रकार इस मंदिर की स्थापना हुई, जिसमें इन योगिनियों को एक वृत्ताकार संरचना में प्रतिष्ठित किया गया।


🔸 मंदिर की वास्तुशैली:

  • आकार: गोलाकार (वृत्तीय) मंदिर
  • व्यास: केवल 25 फीट
  • वास्तु सामग्री: बलुआ पत्थर के ब्लॉक्स
  • शैली: Hypaethral (खुले आकाश के नीचे स्थित संरचना)
  • मुख्य प्रवेशद्वार: मंदिर के वृत्त में एकमात्र द्वार
  • आंतरिक योजना:
    • मध्य में देवी काली की मूर्ति
    • चारों ओर 64 योगिनियों की मूर्तियाँ
    • गर्भगृह के केंद्र में शिव, जो चार योगिनियों और चार भैरवों से घिरे होते हैं
    • मंदिर की योजना एक शिवलिंग के लिए बने योनि-आकृति की तरह प्रतीत होती है

🔸 प्रमुख मूर्तियाँ एवं स्थापत्य विशेषताएँ:

🔹 मुख्य प्रतिमा:

  • देवी काली, जो मानव मस्तक पर खड़ी हैं – यह मन पर हृदय की विजय का प्रतीक मानी जाती हैं।

🔹 योगिनियाँ:

  • कुल मूर्तियाँ: 64
  • वर्तमान में सुरक्षित मूर्तियाँ: 56
  • पत्थर: गहरे रंग की क्लोराइट चट्टान
  • ऊँचाई: लगभग 40 से.मी.
  • मुद्रा: विविध पशु-वाहनों (वहनों) और पिंठों पर खड़ी
  • अंगविन्यास:
    • पतले कमर, चौड़े कूल्हे, उन्नत स्तन
    • विभिन्न हेयर स्टाइल, कंगन, बाजूबंद, हार, पायल और गहनों से अलंकृत
    • नग्न किन्तु बेज़लयुक्त करधनी एवं झूलती झालरों से आंशिक रूप से अलंकृत

🔸 ऐतिहासिक आक्रमण और क्षति:

  • ऐसा माना जाता है कि 16वीं शताब्दी में एक परिवर्तित मुस्लिम सेनापति 'कालापहाड़' ने इस मंदिर पर आक्रमण किया।
  • उसने कई मूर्तियाँ खंडित कर दीं।
  • कालापहाड़ को पुरी और कोणार्क मंदिर के विध्वंस के लिए भी जाना जाता है।
  • यह घटना दर्शाती है कि कट्टरता का कोई स्थायी धर्म नहीं होता।

🔸 धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व:

  • यह मंदिर शक्ति साधना, तांत्रिक परंपरा, एवं स्त्री शक्ति के विविध रूपों की अभिव्यक्ति का एक अद्वितीय केंद्र है।
  • यह स्थान मंडल व्यवस्था पर आधारित है — संकेंद्रित वृत्ताकार ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है।
  • कुछ इतिहासकारों के अनुसार, प्राचीन काल में महा भैरव की मूर्ति की भी यहाँ पूजा होती थी।

🔸 वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन:

  • विद्वान इस्तवान केउल ने उल्लेख किया है कि ये मूर्तियाँ न केवल धार्मिक अभिव्यक्ति हैं, अपितु प्राचीन भारतीय स्त्री सौंदर्यबोध, अलंकरण परंपरा, और तांत्रिक अवधारणाओं को दर्शाती हैं।

🔸 निष्कर्ष:

हीरापुर का चौसठ योगिनी मंदिर भारत की तांत्रिक परंपरा, शक्ति उपासना, और महिला देवी रूपों के सशक्त चित्रण का प्रतीक है।
इस मंदिर की स्थापत्य कला, मूर्तिकला, और आध्यात्मिक संरचना – सब मिलकर इसे भारतीय पुरातन संस्कृति का एक अद्वितीय और रहस्यमय धरोहर बनाती है।

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