संस्कृत श्लोक: "सत्यं अष्टविधं पुष्पं, विष्णोः प्रीतिकरं भवेत्" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद

Sooraj Krishna Shastri
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संस्कृत श्लोक: "सत्यं अष्टविधं पुष्पं, विष्णोः प्रीतिकरं भवेत्" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद

🙏 जय श्री राम 🌷सुप्रभातम् 🙏
 प्रस्तुत श्लोक अत्यंत सुंदर, सात्त्विक और भावनात्मक रूप से ऊर्जावान है। यह श्लोक भक्ति का गूढ़तम स्वरूप दर्शाता है जिसमें भगवान विष्णु की पूजा बाह्य पुष्पों से नहीं, अपितु मानव के आंतरिक गुणरूपी पुष्पों से की जाती है।

आइए इसका विस्तृत हिन्दी अनुवाद, शाब्दिक विश्लेषण, व्याकरण, भावार्थ, और आधुनिक सन्दर्भ में गहराई से अध्ययन करें:

Thought of the day Sanskrit
Thought of the day Sanskrit 



🪔 श्लोक:

अहिंसा प्रथमं पुष्पं, पुष्पं इन्द्रियनिग्रहः।
सर्वभूतदयापुष्पं, क्षमा पुष्पं विशेषतः॥
ज्ञानपुष्पं तपः पुष्पं, ध्यानं पुष्पं तथैव च।
सत्यं अष्टविधं पुष्पं, विष्णोः प्रीतिकरं भवेत्॥


📘 1. शाब्दिक अनुवाद:

पद अर्थ
अहिंसा किसी भी जीव को मन, वचन, कर्म से कष्ट न देना (अहिंसा)
प्रथमं पुष्पं पहला पुष्प
इन्द्रियनिग्रहः इन्द्रियों पर संयम
सर्वभूतदया सभी जीवों पर करुणा
क्षमा क्षमा करना, अपमान सहना
ज्ञानम् आत्मज्ञान, विवेक
तपः तपस्या, आत्मसंयम
ध्यानम् ध्यान, मन की एकाग्रता
सत्यं सत्य — मनसा, वाचा, कर्मणा
अष्टविधं पुष्पम् आठ प्रकार के पुष्प
विष्णोः प्रीतिकरं भगवान विष्णु को प्रिय
भवेत् होता है, हो

🧠 2. व्याकरणिक विश्लेषण:

  • सभी गुणों को पुष्प की उपमा दी गई है — रूपक अलंकार
  • विष्णोःषष्ठी विभक्ति, एकवचन, पुंलिंग (भगवान विष्णु के लिए)
  • प्रीतिकरं – "प्रिय करने वाला", विशेषण, नपुंसक लिंग, एकवचन
  • भवेत्लृट् लकार, वर्तमान संभाव्यता, "होता है/होगा"

💡 3. भावार्थ:

यह श्लोक बताता है कि भगवान विष्णु या किसी भी ईश्वर की आराधना केवल बाह्य फूलों से नहीं, अपितु आंतरिक गुणरूपी पुष्पों से की जानी चाहिए। ये गुण:

  1. अहिंसा — मन, वचन, और कर्म से किसी को कष्ट न देना
  2. इन्द्रियनिग्रह — इन्द्रियों का संयमित उपयोग
  3. सर्वभूतदया — सब प्राणियों के प्रति दया
  4. क्षमा — अपमान को सह लेना
  5. ज्ञान — आत्मज्ञान, विवेक
  6. तप — कठिन साधना, त्याग
  7. ध्यान — ईश्वर पर केंद्रित एकाग्रता
  8. सत्य — सच्चाई में स्थित होना

इन गुणों को 'पुष्प' कहा गया है, क्योंकि जैसे पुष्प पूजा में प्रिय होते हैं, वैसे ही ये गुण ईश्वर को अत्यंत प्रिय हैं।


🌍 4. आधुनिक सन्दर्भ में सन्देश:

🌼 आजकल पूजा-पाठ केवल बाहरी कर्मकांड तक सीमित रह गया है — फूल, दीपक, घंटी।
किन्तु यह श्लोक हमें अंतःकरण की शुद्धता की ओर प्रेरित करता है:

🌿 "जो व्यक्ति मंदिर में जाकर पुष्प चढ़ाता है, परन्तु दूसरों को कष्ट देता है — वह सच्चा भक्त नहीं।"
🌿 "जिसके जीवन में क्षमा, दया, और सत्य है — वही वास्तविक रूप से विष्णु का प्रिय है।"


🔱 5. नीति दृष्टिकोण:

"भक्ति केवल गंध नहीं, गुण है।"
ईश्वर को सच्चे पुष्प चाहिए — हमारे विचारों की शुचिता, कर्मों की पवित्रता, और हृदय की विनम्रता।


📖 6. एक प्रेरक कथा (संक्षेप में):

🔸 एक बार नारदजी ने भगवान विष्णु से पूछा — "हे प्रभो! आपके प्रियतम भक्त कौन हैं?"

🔹 विष्णु बोले — "जो अहिंसा, क्षमा, दया, संयम, ध्यान, तप, सत्य और ज्ञान से मेरी पूजा करता है — वही मेरा वास्तविक भक्त है। जो इन पुष्पों से मेरी पूजा करता है, वही सच्चा अर्चक है।"


📝 7. निष्कर्ष:

"वास्तविक पूजा वह है, जिसमें भक्त स्वयं पुष्प बनकर ईश्वर को अर्पित होता है।"
🌸 आइए, हम सब मिलकर बाह्य पुष्पों के साथ-साथ आंतरिक पुष्पों से भी श्रीहरि की आराधना करें।

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