मौत की प्रतीक्षा नहीं, जीवन की साधना — स्वामी रामतीर्थ के जीवन से प्रेरक प्रसंग

Sooraj Krishna Shastri
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🌹 मौत की प्रतीक्षा नहीं, जीवन की साधना 🌹— स्वामी रामतीर्थ के जीवन से प्रेरक प्रसंग


भूमिका

मनुष्य जीवन में दो प्रवृत्तियाँ होती हैं — एक है जड़ता, जो मृत्यु की प्रतीक्षा करती है; और दूसरी है जिजीविषा, जो अंतिम श्वास तक सीखती, साधती और सृजन करती है। इस सत्य को स्वामी रामतीर्थ ने एक बार जापान यात्रा के दौरान अनुभव किया।

मौत की प्रतीक्षा नहीं, जीवन की साधना — स्वामी रामतीर्थ के जीवन से प्रेरक प्रसंग
मौत की प्रतीक्षा नहीं, जीवन की साधना — स्वामी रामतीर्थ के जीवन से प्रेरक प्रसंग



प्रसंग का प्रारंभ — समुद्री यात्रा और एक विचित्र वृद्ध

स्वामी रामतीर्थ जब जापान जा रहे थे, उस समय वे समुद्री जहाज में यात्रा कर रहे थे। उसी जहाज पर एक जर्मन वृद्ध भी यात्रा कर रहा था, जिसकी आयु लगभग 90 वर्ष थी।

स्वामी जी ने देखा कि वह वृद्ध व्यक्ति दिन-रात चीनी भाषा सीखने में तल्लीन रहता था — सुबह से लेकर सूर्यास्त तक, जहाज के डेक पर बैठकर कठिन चीनी लिपि के प्रतीकों को रटता, अभ्यास करता।


चीनी भाषा की कठिनाई — चित्रों की भाषा

चीनी भाषा कोई साधारण भाषा नहीं है। इसमें वर्णमाला नहीं होती, कोई अक्षर नहीं — न 'अ', 'आ', न 'क', 'ख', 'ग' — बल्कि प्रत्येक शब्द एक चित्र से प्रदर्शित होता है।

उदाहरण के लिए – यदि "झगड़ा" शब्द को लिखना हो, तो एक छप्पर के नीचे दो स्त्रियों के बैठने का चित्र बना दिया जाता है। उसका अर्थ होता है — झगड़ा!

इस प्रकार, एक लाख से अधिक प्रतीकों को सीखना होता है, तभी किसी को सामान्य चीनी भाषा का ज्ञान प्राप्त होता है। इतने कठिन कार्य में वह वृद्ध पूर्ण समर्पण के साथ लगा हुआ था।


रामतीर्थ की जिज्ञासा — वृद्ध से संवाद

तीन दिन तक उस वृद्ध की दिनचर्या देखने के बाद स्वामी रामतीर्थ से रहा नहीं गया। उन्होंने एक दिन प्रश्न किया —

"आपको मालूम है कि चीनी भाषा सीखने में कम-से-कम दस वर्ष लगते हैं? आपकी उम्र पहले ही नब्बे साल है — क्या आप पूरा कर पाएंगे?"

वृद्ध ने मुस्कराकर उत्तर दिया:

“उम्र का हिसाब तो भगवान रखता होगा, मैं नहीं। मेरे पास तो करने को बहुत काम हैं, मैं उस फुजूल चिंता में नहीं पड़ता। और फिर, नब्बे साल का अनुभव कहता है कि अब तक तो मैं बचता आया हूं, आगे भी बच सकता हूं।”


जीवनदृष्टि का उत्तरदायित्व — बूढ़ा कौन?

फिर वृद्ध ने रामतीर्थ से पूछा — “तुम्हारी उम्र कितनी है?

स्वामी जी बोले — “तीस वर्ष।”

वृद्ध ने गहरी दृष्टि से देखा और कहा —

यही तो कारण है कि तुम्हारा देश बूढ़ा हो गया है। तुम तीस की उम्र में भी मौत की प्रतीक्षा कर रहे हो और मैं नब्बे की उम्र में जीवन की साधना कर रहा हूँ।


वृद्ध की प्रार्थना और आस्था

वह वृद्ध कहता है:

“अगर ईश्वर कहीं है, तो वह मेरे जैसे श्रमशील, जिज्ञासु और आशावादी व्यक्ति को देख कर मुझे और जीवन देगा। और अगर वह नहीं भी है, तो उसकी चिंता क्यों की जाए?”


घटना का आश्चर्यजनक अंत

वह व्यक्ति केवल जिंदा ही नहीं रहा, अगले 15 वर्षों तक उसने निरंतर अभ्यास किया।

  • उसने चीनी भाषा पूर्णतः सीखी
  • चीनी साहित्य पढ़ा।
  • और अंततः एक पुस्तक चीनी भाषा में भी लिखी।

वह वृद्ध कुल मिलाकर 105 वर्ष जिया।
जबकि स्वामी रामतीर्थ स्वयं केवल दो वर्ष बाद शरीर का त्याग कर चुके थे।


इस प्रेरणा का मर्म — जीवन का संदेश

इस प्रसंग का सार यही है कि जीवन की लंबाई उतनी महत्वपूर्ण नहीं, जितनी कि उसकी गहराई, उत्साह, और ललक

🔸 मृत्यु तो सबकी निश्चित है, पर जीवित वही है जो अंतिम क्षण तक जीना जानता है।
🔸 जो सीखने की ज्वाला नहीं बुझने देता, समय उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता।


उपसंहार

स्वामी रामतीर्थ की इस यात्रा में मिला यह अनुभव हम सभी के लिए एक प्रेरणा-दीपक है —
कि चाहे आयु कोई भी हो,
आशा, पुरुषार्थ और जिजीविषा यदि साथ हों,
तो ईश्वर भी रास्ता बनाता है।


🔅 जीवन में मृत्यु की प्रतीक्षा न करो — ज्ञान और कर्म की साधना में डूब जाओ।
यही जीवन है, यही अमरत्व की ओर यात्रा है। 🔅


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