संगत का प्रभाव

Sooraj Krishna Shastri
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🌿 प्रवचन शैली में प्रस्तुति: "संगत का प्रभाव" 🌿

(एक प्रेरक कथा – बच्चों, युवाओं और बड़ों के लिए समान रूप से उपयोगी)


👑 प्रस्तावना – कथा की पृष्ठभूमि

एक बार एक राजा का प्रिय तोता मर गया। राजा का हृदय शोक से भर गया। उन्होंने मंत्री से कहा –

“मंत्रीवर! पिंजरा सूना हो गया है। इसमें फिर से कोई तोता लाया जाए।”

मंत्री ने यत्नपूर्वक खोज की, किंतु वैसा तोता कहीं नहीं मिला। अंत में वे एक संत के पास पहुंचे। संत ने कहा –

“यदि राजा को सचमुच चाहिए, तो मेरा तोता ले जाइए।”

संगत का प्रभाव,राजा और तोते की अद्भुत कथा
संगत का प्रभाव,राजा और तोते की अद्भुत कथा 


राजा ने उस तोते को बड़े प्रेम से सोने के पिंजरे में रखा। लेकिन आश्चर्य तब हुआ जब ब्रह्ममुहूर्त में वह तोता गूंज उठा –

“ॐ तत्सत्... उठो राजन्! दुर्लभ मनुष्य जीवन यूं ही न गँवाओ! यह भजन के लिए है, भोग के लिए नहीं!”

राजपरिवार स्तब्ध रह गया। वह तोता रामायण की चौपाइयाँ, गीता के श्लोक, और संतवाणी सुनाने लगा।
राजा कहते –

“हमें तो एक तोता मिला, पर वास्तव में यह तो एक संत मिल गया!”

लेकिन समय की रेखा सब पर चलती है — और एक दिन वह तोता भी संसार छोड़ गया। राज्य में शोक छा गया, झण्डे झुका दिए गए, जैसे कोई बड़ा संत चला गया हो।


⚖️ पुनरावृत्ति – पिंजरे में दूसरा तोता

कुछ समय बाद राजा ने फिर कहा –

“मंत्रीवर! पिंजरा सूना लगता है, एक और तोता ले आइए।”

मंत्री खोजते-खोजते एक कसाई के यहाँ पहुँच गया, जहां वैसा ही दिखने वाला तोता था। पता चला कि वह भी उसी पेड़ से पकड़ा गया था, जिससे पहला तोता मिला था – दोनों सगे भाई थे।

राजा प्रसन्न हुए कि वही तोता वापस आ गया! लेकिन अगली सुबह...

“उठ बे हरामी के बच्चे! राजा बन बैठा है! ला मेरे लिए अंडे, नहीं तो पड़ेंगे डंडे!”

पूरा राजपरिवार दंग! राजा क्रोध से आगबबूला हो उठा और उस तोते की गर्दन मरोड़ दी।


🔍 शिक्षा – तोता वही, अंतर क्या था?

दोनों तोते सगे भाई थे।
दोनों का रंग-रूप, चेष्टाएँ, चाल-ढाल एक जैसी थीं।
लेकिन एक के लिए राज्य ने झंडे झुकाए, और दूसरे को गर्दन मरोड़कर फेंक दिया गया।

अंतर केवल संगति का था।

  • एक संत की संगति में था – वह तोता नहीं, संत बन गया।

  • दूसरा कसाई की संगति में था – वही तोता, पर स्वभाव में क्रूरता और अशिष्टता भर गई।


📿 संतों की वाणी – संगति का प्रभाव

"संगत ही गुण होत है, संगत ही गुण जाय।
बाँस, फाँस अरु मीसरी, एकै भाव बिकाय।।"
(बाँस भी हो, काँटेदार फाँस भी हो, या मीठी मिसरी – यदि साथ रख दो, तो एक ही जैसे दिखते हैं। पर स्वाद और उपयोग में अंतर संगति से ही प्रकट होता है।)


🕉️ गूढ़ प्रश्न – सत्संग किसे कहते हैं?

"पूरा सद्गुरु ना मिला, मिली न साँची सीख।
भेष जती का बनाय के, घर-घर माँगे भीख।।"

(सच्चे सद्गुरु के बिना न सच्ची शिक्षा मिलती है, न सच्चा मार्ग। आजकल दिखावे के यती, केवल भिक्षा मांगते फिरते हैं।)


🌟 निष्कर्ष – जीवन में संगति का महत्व

  • हमारे विचार, हमारा व्यवहार, और अंततः हमारा भाग्य — इन सब पर संगति का प्रभाव पड़ता है।

  • अगर किसी बच्चे को संतों की संगति मिले, तो वह स्वर्ण बन सकता है।

  • पर यदि वही बच्चा दुष्टों की संगति में जाए, तो रावण भी बन सकता है।


🪔 आत्ममंथन के लिए कुछ प्रश्न –

  1. मेरी संगति मुझे कहाँ ले जा रही है?

  2. मेरे बच्चों को कैसी संगति मिल रही है?

  3. क्या मैंने जीवन में कभी सत्संग का अनुभव किया?

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