आपने दीपावली के महात्म्य को अत्यंत भावपूर्ण और रोचक शैली में प्रस्तुत किया है। यह वर्णन पौराणिक सन्दर्भों, तात्त्विक विवेचन और लोक आस्था के समन्वय से दीपावली के सांस्कृतिक और धार्मिक पक्ष को समग्रता में प्रस्तुत करता है। मैं इसे और अधिक व्यवस्थित, शैलीबद्ध और भाषिक रूप से परिष्कृत रूप में प्रस्तुत कर रहा हूँ ताकि यह प्रवचन, लेख, पोस्टर या किसी धार्मिक ग्रंथ-पाठ में भी उपयोगी हो सके —
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दीपावली का माहात्म्य 🌟 — एक पर्व, दो युगों की स्मृति |
🌟 दीपावली का माहात्म्य 🌟
— एक पर्व, दो युगों की स्मृति
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दीपावली का उत्सव केवल प्रकाश का नहीं, बल्कि सतयुग और त्रेतायुग की दिव्य घटनाओं का स्मरण भी है।
इस पर्व के दो प्रमुख आध्यात्मिक आधार हैं —
🔱 सतयुग — लक्ष्मी प्राकट्य दिवस
सतयुग में समुद्र मंथन से माँ लक्ष्मी का प्राकट्य हुआ। यह अमावस्या की रात्रि थी, जब लक्ष्मीजी धन, ऐश्वर्य, समृद्धि और सौभाग्य की देवी के रूप में प्रकट हुईं।
इसीलिए इस दिन को "लक्ष्मी पूजन" के रूप में मनाया जाता है।
🚩 त्रेतायुग — रामायण स्मृति
त्रेतायुग में जब भगवान श्रीराम १४ वर्षों का वनवास पूर्ण कर अयोध्या लौटे, तो उनके स्वागत में नगरवासियों ने घर-घर दीप जलाए।
इसलिए इस दिन को "दीपों की पंक्ति" अर्थात् "दीपावली" कहा गया।
✨ इस प्रकार यह पर्व 'लक्ष्मी पूजन' और 'दीपावली' — दोनों नामों से युक्त होकर द्विगुण महत्त्व का प्रतीक बन जाता है।
🙏 लक्ष्मी-गणेश पूजन का रहस्य 🙏
🔶 लक्ष्मी जी और कुबेर —
लक्ष्मी जी जब समुद्र मंथन से प्रकट हुईं, तो उन्होंने धन के संरक्षण हेतु कुबेर को अपना भंडारी नियुक्त किया। परंतु कुबेर अत्यंत कंजूस निकले — वे धन बाँटते ही नहीं थे।
इससे माता लक्ष्मी खिन्न हो गईं। जब उन्होंने यह बात भगवान विष्णु से कही, तो भगवान ने सुझाव दिया — "तुम गणेश जी की बुद्धि का सहारा लो।"
🔷 गणेश जी का आगमन —
माँ लक्ष्मी ने गणेश जी से आग्रह किया कि वे उचित पात्रों के नाम सुझाएँ, जिन्हें वे अपनी कृपा दें। गणेश जी ने शर्त रखी — "जिसका नाम मैं लूँ, माँ, आप उस पर बिना किसी किंतु-परन्तु के कृपा करें।"
माँ लक्ष्मी ने सहमति दी।
गणेश जी कुबेर के खजाने के द्वार खोलने लगे और शुभ पात्रों को धन-संपदा मिलने लगी।
कुबेर केवल देखते रह गए। माँ लक्ष्मी गणेश जी की करुणा, न्याय और विवेक से इतनी प्रसन्न हुईं कि उन्हें आशीर्वाद दिया —
"जहाँ मेरे पति नारायण न हों, वहाँ मैं तुम्हें पुत्रवत अपने साथ रखूँगी।"
📿 कार्तिक अमावस्या और लक्ष्मी-गणेश पूजन का संयोग
🔸 कार्तिक अमावस्या के दिन जब दीपावली आती है, उस समय भगवान विष्णु योगनिद्रा में होते हैं। वे देवउठनी एकादशी को जागते हैं।
🔸 इस बीच माँ लक्ष्मी शरद पूर्णिमा से लेकर अमावस्या तक पृथ्वी भ्रमण पर रहती हैं और अपने मानस पुत्र श्री गणेश को साथ लेकर आती हैं।
इसलिए दीपावली पर लक्ष्मी-गणेश की संयुक्त आराधना की जाती है।
🌼 संदेश 🌼
दीपावली केवल दीप जलाने का उत्सव नहीं, यह ज्ञान, धर्म, विवेक और करुणा के सामंजस्य से आंतरिक आलोक को जागृत करने का पर्व है।
लक्ष्मी से ऐश्वर्य मिले और गणेश से शुभबुद्धि — यही सच्ची दीपावली है।