भागवत: धेनुकासुर के वध की कथा

Sooraj Krishna Shastri
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धेनुकासुर के वध की कथा

(श्रीमद्भागवत महापुराण – दशम स्कंध)


भूमिका

धेनुकासुर का वध भगवान श्रीकृष्ण और बलराम की बाल लीलाओं में एक अत्यंत प्रेरक और प्रतीकात्मक घटना है। यह कथा न केवल एक असुर के संहार की कथा है, बल्कि इसके माध्यम से धर्म की स्थापना, भय के नाश, और भगवान की करुणा का परिचय भी मिलता है।

भागवत: धेनुकासुर के वध की कथा
भागवत: धेनुकासुर के वध की कथा



कथा विवरण

1. तालवन का परिचय

गोकुल के समीप एक रमणीय वन था – तालवन, जो ताड़ के घने वृक्षों और मधुर फलों से परिपूर्ण था। किंतु इस वन पर अधिकार था – धेनुकासुर का, जो एक गधे के रूप में अत्यंत शक्तिशाली और क्रूर असुर था। अपने असुर-संगी साथियों के साथ वह इस वन में किसी को भी प्रवेश नहीं करने देता था। गोकुलवासी भयभीत थे और उस स्थान से दूर रहते थे।


2. ग्वालबालों की जिज्ञासा

एक दिन ग्वालबालों ने श्रीकृष्ण और बलराम से कहा:

“तालवन के फल बहुत ही स्वादिष्ट हैं, किंतु धेनुकासुर के कारण हम वहाँ जा नहीं सकते। हे कृष्ण! हे बलराम! आप चलें तो हम सब भी चलें।”


3. बलराम जी की वीरता

भगवान श्रीकृष्ण और बलराम ग्वालबालों को साथ लेकर तालवन पहुँचे।
बलराम जी ने अपनी अपार शक्ति से ताड़ के वृक्षों को जोर-जोर से हिलाया, जिससे मधुर फल भूमि पर गिरने लगे। इस घटना ने धेनुकासुर को क्रोधित कर दिया।

"तत्र तालान् स ऋक्षाणामुक्थं कम्पयतां बल:।
मध्वासवसुगन्धीनां फलं पर्यवपत् भुवि॥"
👉 अर्थ: बलराम ने ताड़ वृक्षों को इतनी शक्ति से हिलाया कि सुगंधित ताड़ फल भूमि पर गिरने लगे।


4. धेनुकासुर का क्रोध और वध

क्रोधित होकर धेनुकासुर बलराम पर झपट पड़ा और उसने अपने प्रचंड वेग से आक्रमण किया।
लेकिन बलराम जी ने उसे पिछली टांगों से पकड़कर चक्र की भाँति घुमाया और जोर से ताड़ के पेड़ पर पटक दिया – धेनुकासुर तत्काल मृत्यु को प्राप्त हुआ।

"धेनुक: क्रुद्धरोषेण रन्क्षद्भीमस्वनो रणे।
बलस्य पृष्ठदेशं स घातयामास भूमिपे॥"
👉 अर्थ: धेनुकासुर क्रोध से काँपता हुआ बलराम पर झपटा, परंतु बलराम ने उसे पराजित कर धराशायी कर दिया।

अन्य असुर साथी भी कृष्ण और बलराम द्वारा मारे गए।


5. तालवन का भय समाप्त

धेनुकासुर के मारे जाने के पश्चात गोकुलवासी भयमुक्त होकर तालवन में गए और वहाँ के ताड़ फलों का स्वाद लिया।

"हतं धेनुकमाकर्ण्य रामेण बलिना हरिः।
तत्र भयहरं लोकं जनं सम्प्रविशन्ति च॥"
👉 अर्थ: बलराम द्वारा धेनुकासुर के वध की बात सुनकर लोग निर्भय हो उस स्थान पर जाने लगे।


तात्त्विक एवं सांकेतिक संदेश

🌿 1. अधर्म का अंत निश्चित है

धेनुकासुर अन्याय, अहंकार और बलात्कारी प्रवृत्ति का प्रतीक था। उसका अंत यह दर्शाता है कि अधर्म चाहे जितना भी प्रबल क्यों न हो, उसका नाश निश्चित है जब धर्म और भगवान साथ हों।

🌿 2. शक्ति का धर्मयुक्त उपयोग

बलराम जी की शक्ति का उपयोग लोक-कल्याण के लिए हुआ। यही सिखाता है कि शक्ति तभी शुभ होती है जब उसका उपयोग निर्बलों के रक्षण हेतु हो।

🌿 3. भक्तों का आनंद

ग्वालबालों के साथ भगवान का तालवन जाना, खेलना और फलों का आनंद लेना – यह ईश्वर के साथ सहज, निर्दोष और आनंदमयी जीवन की झलक है।

🌿 4. भय का नाश

धेनुकासुर का वध यह दर्शाता है कि भगवान की उपस्थिति मात्र से भय, संकट और असुरता का नाश होता है।


निष्कर्ष

धेनुकासुर वध – केवल एक असुर के अंत की कथा नहीं है, यह धर्म की विजय, शक्ति का सदुपयोग, और ईश्वर की करुणा का संदेश है। इस लीला में बलराम का पराक्रम और कृष्ण की सहजता का अद्भुत समन्वय देखने को मिलता है।

यह प्रसंग हमें प्रेरित करता है कि जब कोई भय, अत्याचार या विघ्न जीवन में उपस्थित हो, तब हमें भगवान पर श्रद्धा रखनी चाहिए – क्योंकि वे सदा अपने भक्तों की रक्षा के लिए तैयार रहते हैं।


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