भाव, भावेश और नित्य कारक के त्रैतीय दृष्टिकोण से फल विचार

Sooraj Krishna Shastri
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भाव, भावेश और नित्य कारक के त्रैतीय दृष्टिकोण से फल विचार

आज हम "भाव, भावेश, नित्य कारक और त्रिविध लग्न सिद्धांत" को संपूर्ण गहराई से, क्रमबद्ध ढंग से और प्रशिक्षण हेतु उपयुक्त शैली में विश्लेषित करेंगे। यह ज्योतिष शास्त्र के अध्येताओं, शोधकर्ताओं और आचार्यों के लिए अत्यंत उपयोगी होगा।

भाव, भावेश और नित्य कारक के त्रैतीय दृष्टिकोण से फल विचार
भाव, भावेश और नित्य कारक के त्रैतीय दृष्टिकोण से फल विचार



🔶 विषय: भाव, भावेश और नित्य कारक के त्रैतीय दृष्टिकोण से फल विचार

(जैसा कि वृहत् पाराशर होरा शास्त्र के राशि अध्याय के श्लोक 39–43 में वर्णित है) 👉श्लोक देखें


🔷 1. भाव विचार (House-based analysis)

हर भाव का एक विशिष्ट विषय क्षेत्र (domain) होता है – उसे समझना मूल है।

प्रत्येक भाव जीवन के किसी विशेष क्षेत्र को नियंत्रित करता है।

भाव संख्या नाम विषय/कार्यक्षेत्र (Examples)
1 (लग्न) तनु शरीर, आत्मा, स्वभाव, स्वास्थ्य
2 धन धन, कुटुम्ब, वाणी, भोजन
3 सहोदर साहस, पराक्रम, अनुज, संचार
4 बन्धु माता, वाहन, घर, संपत्ति
5 पुत्र संतान, विद्या, बुद्धि, भविष्य
6 शत्रु रोग, ऋण, शत्रुता, मामा
7 दार विवाह, जीवनसाथी, साझेदारी
8 रन्ध्र आयु, मृत्यु, गोपनीयता, शोध
9 धर्म भाग्य, धर्म, गुरु, विदेश यात्रा
10 कर्म कार्य, यश, राजकीय संपर्क
11 लाभ लाभ, इच्छाएँ, बड़े भाई
12 व्यय हानि, विदेश, मोक्ष, त्याग

📌 नियम: भावों के द्वारा उस क्षेत्र के प्रभाव, शक्ति, ग्रहों की उपस्थिति और दृष्टि से उसका फल जाना जाता है।


🔷 2. भावेश विचार (Lord of House Analysis)

"यद्भावाद्यत्फलं चिन्त्यं तदीशात्तत्फलं विदुः।"

भाव का स्वामी (भावेश) जहाँ बैठा हो, वह भाव उस मूल भाव की स्थिति को दर्शाता है।

उदाहरण:

  • पंचम भाव → संतान
    • यदि पंचमेश दशम में है → संतान कर्मशील, यशस्वी।
    • यदि पंचमेश अष्टम में है → संतान से पीड़ा, मानसिक क्लेश।
  • द्वितीयेश षष्ठ में → धन के लिए संघर्ष, ऋण की प्रवृत्ति।

📌 नियम: जिस भाव का विचार किया जाए, उस भाव के स्वामी की कुंडली में स्थिति अत्यंत निर्णायक होती है।


🔷 3. नित्य कारक दृष्टि (Natural Significator Analysis)

प्रत्येक विषय का एक ग्रह "नैसर्गिक कारक" होता है। वह ग्रह उस विषय के परिणामों का "प्राकृतिक प्रतिनिधि" है।

विषय नित्य कारक ग्रह
शरीर, आत्मा सूर्य
मन, माता चन्द्र
बुद्धि, विद्या गुरु
संतान गुरु
धन, स्त्री शुक्र
साहस, रक्त मंगल
रोग, वाक बुध
दीर्घायु, सेवा शनि
विवेक, मोक्ष केतु

📌 नियम: जब कोई विषय देखा जाए, तो न केवल भाव और भावेश को देखें, बल्कि संबंधित नैसर्गिक कारक ग्रह की स्थिति, दृष्टि, बल, दशा आदि भी अनिवार्य रूप से विश्लेषित करें।


🔷 4. त्रिविध लग्न विचार (Triple Ascendant Method)

"लग्न, चन्द्र, सूर्य – इन तीनों को 'लग्नवत्' मानकर भाव फल विचार करें।"

📌 महत्त्व:

| लग्न | देह, व्यवहार, कर्म |
| चन्द्र | मन, भावनाएँ, सुख-दुःख |
| सूर्य | आत्मा, पिता, कर्त्तव्य, उद्देश्य |

विचार के भाव:

  • चन्द्र से द्वितीय, चतुर्थ, नवम → धन, माता, धर्म
  • सूर्य से नवम, दशम → पिता, कर्म
  • मंगल से तृतीय → साहस
  • शुक्र से सप्तम → दाम्पत्य
  • गुरु से पंचम → संतान
  • शनि से अष्टम-द्वादश → आयु और व्यय

📌 नियम:
जो विचार लग्न से किया जाता है, वही चन्द्र और सूर्य से भी किया जाना चाहिए।
इससे मानसिक, भौतिक व आत्मिक समन्वय प्राप्त होता है।


🔷 5. दशा/अन्तर्दशा फल का सूत्र

"जब भाव, भावेश, या कारक ग्रह की दशा चलती है, तभी उस विषय का फलोदय होता है।"

उदाहरण:

  • पंचमेश की दशा → संतान संबंधित फल
  • गुरु की दशा (नित्य कारक) → विद्या, संतान से जुड़े फल
  • यदि दोनों में परस्पर दृष्टि या युति हो → फल अत्यंत बलशाली होगा

📌 विशेष नियम:

  • दशा में शुभ ग्रहों की युति/दृष्टि से सकारात्मक फल
  • पापग्रहों से पीड़ित दशा में उस भाव/विषय में रुकावट

🔷 6. व्यवहारिक उदाहरण विश्लेषण

प्रश्न: भाग्य कैसा रहेगा?

  • लग्न से नवम भाव → खाली
  • नवमेश गुरु → त्रिकोण दृष्टि है
  • चन्द्र से नवम में शुक्र है → शुभ योग
  • नवमेश का स्वामी गुरु → चतुर्थ में, शनि से युक्त → मिश्रित फल
  • दशा गुरु की चले → शुभ फल
  • शनि की दशा → मध्यम फल, देर से लाभ
  • मंगल नवम का कारक, उसकी दशा → भाग्योदय प्रबल (विशेषतः 28 वर्ष के बाद)

📌 निष्कर्ष: भाग्य का विचार करते समय नवम भाव, नवमेश, गुरु, सूर्य – सभी की स्थिति और दशा देखनी चाहिए।


🧠 अंतिम निष्कर्ष – सूत्र रूप में

भाव + भावेश + कारक ग्रह → इन तीन से विषय विशेष का पूर्ण विचार करें।
लग्न + चन्द्र + सूर्य → तीनों से भाववत् विचार करें।
दशा/अन्तर्दशा → जब ये तीनों जुड़े हों तभी फल का स्पष्ट प्राकट्य होता है।

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