रोग होने का कारण, ज्योतिषीय परिप्रेक्ष्य में

Sooraj Krishna Shastri
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रोग होने का कारण, ज्योतिषीय परिप्रेक्ष्य में (Cause of disease, from astrological perspective)

नमस्कार 🙏
 प्रस्तुत श्लोक का व्यवस्थित, गूढ़ एवं विस्तृत विश्लेषण करते हैं — शाब्दिक, व्याकरणिक, भावात्मक एवं दार्शनिक चारों स्तरों पर।


🔶 मूल श्लोक:

जन्मान्तरकृतं पापं व्याधिरूपेण बाधते।
तच्छान्तिरौषधैर्दानैर्जपहोमसुरार्चनैः॥

Cause of disease, from astrological perspective रोग होने का कारण, ज्योतिषीय परिप्रेक्ष्य में
Cause of disease, from astrological perspective 
रोग होने का कारण, ज्योतिषीय परिप्रेक्ष्य में 

 


🔷 1. शाब्दिक विश्लेषण (शब्दार्थ सहित)

पद अर्थ
जन्मान्तरकृतं पूर्वजन्मों में किया गया (कर्म)
पापम् अधर्म या अनीतिपूर्ण कर्म
व्याधिरूपेण रोग के रूप में
बाधते कष्ट देता है / पीड़ित करता है
तच्छान्तिः उसकी शांति या निवृत्ति
औषधैः औषधियों से
दानैः दान देने से
जप मंत्रों का जप
होम हवन या अग्निहोत्र
सुरार्चनैः देवताओं की पूजा

🔷 2. व्याकरणिक विश्लेषण

  • जन्मान्तरकृतं पापम्सप्तमी तत्पुरुष समास + नपुंसकलिङ्ग एकवचन
  • व्याधिरूपेणतृतीया विभक्ति, रूपेण = "रूप में"
  • बाधतेलट् लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन, कर्मणि प्रयोग
  • तच्छान्तिःस: + शान्तिः = तच्छान्तिः, स्त्रीलिंग, प्रथमा एकवचन
  • औषधैः दानैः जपः होमः सुरार्चनैःतृतीया विभक्ति बहुवचन (साधन कारक)

🔷 3. भावात्मक विश्लेषण

यह श्लोक हमें रोग और पाप के बीच एक सूक्ष्म किंतु गूढ़ संबंध को प्रकट करता है:

  • रोग केवल एक शारीरिक अवस्था नहीं, कर्मफल का दृश्य रूप हो सकता है।
  • हम जो पापकर्म पूर्व जन्मों में करते हैं, वे सूक्ष्म रूप से हमारे जीवन में रोग, दुःख, मानसिक क्लेश आदि के रूप में प्रकट होते हैं।
  • केवल आधुनिक चिकित्सा (औषध) से यह पूर्णतः शांत नहीं हो सकते।
  • इसके लिए चाहिए —
    • दान (मन की उदारता),
    • जप (मंत्रों से मानसिक शुद्धि),
    • होम (वातावरणीय शुद्धि व आंतरिक आहुति),
    • सुरार्चन (ईश्वर की शरणागति)।

यह श्लोक वैदिक जीवन के शारीरिक + मानसिक + आध्यात्मिक संतुलन को दर्शाता है।


🔷 4. दार्शनिक एवं आध्यात्मिक विश्लेषण

🔹 कर्मसिद्धान्त की पुष्टि:

  • यह श्लोक कर्म और पुनर्जन्म के सिद्धांत को स्वीकार करता है।
  • रोगों का कारण केवल जैविक या आहारजन्य नहीं, बल्कि पूर्व जन्म के कर्म भी हो सकते हैं।

🔹 औषध और अध्यात्म का समन्वय:

  • शुद्ध औषधि से शरीर उपचारित होता है।
  • परंतु मन और आत्मा की शुद्धि हेतु जप, दान, होम, और देवपूजन आवश्यक हैं।

🔹 चार उपाय – शारीरिक व आध्यात्मिक संतुलन:

उपाय उद्देश्य
औषधि शारीरिक उपचार
दान कर्मशुद्धि, पापकर्म की क्षमा हेतु
जप मन की शुद्धि, मानसिक संतुलन
होम/पूजन वातावरण, चेतना व आत्मा की शुद्धि

🔷 5. आधुनिक चिकित्सा प्रणाली से तुलनात्मक दृष्टिकोण

पारंपरिक दृष्टि आधुनिक दृष्टि समन्वित दृष्टि
रोग = कर्मफल रोग = संक्रमण, अनुवांशिकता, तनाव रोग = बहुस्तरीय (शरीर + मन + आत्मा)
शांति = पूजा आदि शांति = दवा, थेरेपी शांति = औषधि + ध्यान + सेवा + भक्ति

🔷 6. प्रेरक सन्देश

जब रोग केवल शरीर का न होकर आत्मा तक व्याप्त हो,
तब केवल दवा नहीं, दया, दान, ध्यान, और धर्म ही उपाय हैं।


🔷 7. स्मरणीय सूत्र रूप में

“रोग का उपचार केवल औषधि नहीं,
योग, जप, और सेवा भी है।”


🔷 8. श्लोक पर आधारित व्यवहारिक सन्देश

यदि आप या कोई अपने जीवन में रोगों या मानसिक क्लेश से ग्रसित हो:

  • दवा अवश्य लें, पर उसके साथ –
    • गौसेवा करें
    • तुलसी, गंगा, सूर्य का पूजन करें
    • “महामृत्युंजय मंत्र” का जप करें
    • रोगियों को दान दें
    • परमात्मा में विश्वास रखें

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