संस्कृत श्लोक: "दूरेऽपि सज्जना भान्ति हिमवन्नगसन्निभाः" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद
🌞 🙏 जय श्रीराम 🌷 सुप्रभातम् 🙏
प्रस्तुत श्लोक सच्चे सज्जनों और असज्जनों के स्वभावगत अंतर को एक अत्यंत सशक्त उपमा के माध्यम से व्यक्त करता है। यह श्लोक स्मरणीय और अनुकरणीय दोनों है।
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संस्कृत श्लोक: "दूरेऽपि सज्जना भान्ति हिमवन्नगसन्निभाः" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद |
✨ श्लोक ✨
दूरेऽपि सज्जना भान्ति हिमवन्नगसन्निभाः ।असन्तो नैव दृश्यन्ते रात्रिक्षिप्ताः शरा यथा ॥
dūre'pi sajjanā bhānti himavannaga-sannibhāḥ ।asanto naiva dṛśyante rātri-kṣiptāḥ śarā yathā ॥
🔍 व्याकरणीय विश्लेषण:
पद | अर्थ | व्याकरणिक विवरण |
---|---|---|
दूरेऽपि | दूर होते हुए भी | “दूरे” = सप्तमी, “अपि” = भी (अव्यय) |
सज्जनाः | सद्गुणी लोग | पुल्लिंग, प्रथमा बहुवचन |
भान्ति | चमकते हैं / प्रकट होते हैं | धातु "भा" (प्रकाश), लट् लकार, प्र. पु. बहुवचन |
हिमवत्-नग-सन्निभाः | हिमालय पर्वत के समान | बहुव्रीहि समास |
असन्तः | दुष्ट लोग / असज्जन | प्रथमा बहुवचन |
नैव | नहीं ही | न + एव (निश्चयपूर्वक निषेध) |
दृश्यन्ते | दिखाई देते हैं | धातु "दृश्", आत्मनेपदी, लट् लकार |
रात्रि-क्षिप्ताः | रात में छोड़े गए | कृदन्त (past passive participle) |
शराः यथा | जैसे बाण | उपमा (तृतीया विभक्ति) |
🪷 भावार्थ:
“सज्जन पुरुष दूर से भी हिमालय पर्वत की भाँति प्रकाशित और प्रभावी प्रतीत होते हैं,
जबकि असज्जन व्यक्ति रात्रि में छोड़े गए बाणों के समान अदृश्य रहते हैं।”
🌿 प्रेरणादायक कथा: “हिमालय की भाँति” 🌿
प्राचीन काल में एक छोटा बालक विभास अपने गुरु के साथ तपोवन में रहता था। वह निर्धन था, किंतु स्वभाव से अत्यंत विनम्र, सेवा में तत्पर, और सत्कर्म में रत।
एक दिन नगर के राजा ने घोषणा की —
“जो व्यक्ति मेरी पुत्री को योग्य शिक्षाएं देगा और उसके जीवन को उज्ज्वल बनाएगा,मैं उसे अपना उत्तराधिकारी घोषित करूँगा।”
नगर के अनेक धनवान, तर्कविद्, और अहंकारी ज्ञानी राजप्रसाद पहुँचे। वे एक-दूसरे को नीचा दिखा रहे थे।
परंतु राजकन्या ने गुरु के आश्रम में रहकर विभास के सत्संग से जो सीखा था, उसे भुला न सकी।
उसने राजा से कहा:
“मुझे वह चाहिए जो दूर रहकर भी मेरे विचारों को प्रकाशित करता है — जैसे हिमालय।”
राजा ने हैरान होकर पूछा: “कौन?”
कन्या ने कहा —
“विभास — जो साधु है, सच्चा है, और दूर रहकर भी मुझे ऊँचा सोचने की प्रेरणा देता है।”
राजा ने तब कहा:
“सज्जन वही है जो **दिखने से पहले प्रभाव डालता है।और असज्जन तो होते हुए भी अंधकार में खो जाते हैं — जैसे रात के अज्ञात बाण।”
🌟 शिक्षा / प्रेरणा:
- सज्जनता शरीर की नहीं, स्वभाव की पहचान है।
- सच्चा सज्जन व्यक्ति अपने आचरण, विचार, और प्रभाव से दूर से भी पहचाना जाता है — जैसे हिमालय पर्वत।
- दुष्टजन दिखते तो हैं, पर अंधकारमय अस्तित्व के कारण उन्हें कोई मान नहीं देता।
- सज्जनता का प्रकाश दूरी नहीं जानता।
🕯️ जीवन सूत्र:
“बनिए वह हिमालय,जो अपनी ऊँचाई से नहीं,अपनी शांति और स्थायित्व से पहचान बनाता है।”