संस्कृत श्लोक "धान्यानां सङ्ग्रहो नूनमुत्तमः सर्वसङ्ग्रहात्" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण

Sooraj Krishna Shastri
By -
0

संस्कृत श्लोक "धान्यानां सङ्ग्रहो नूनमुत्तमः सर्वसङ्ग्रहात्" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण 

🌞 🙏 जय श्रीराम 🌷 सुप्रभातम् 🙏

 प्रस्तुत श्लोक जीवन की वास्तविक आवश्यकता और प्राथमिकता पर अत्यंत व्यावहारिक और अर्थगर्भित संकेत करता है। यह श्लोक हमें यह समझाता है कि भौतिक वैभव से अधिक महत्वपूर्ण है – अन्न का संचय, जो जीवन की रक्षा करता है।

संस्कृत श्लोक "धान्यानां सङ्ग्रहो नूनमुत्तमः सर्वसङ्ग्रहात्" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण
संस्कृत श्लोक "धान्यानां सङ्ग्रहो नूनमुत्तमः सर्वसङ्ग्रहात्" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण 



श्लोक

धान्यानां सङ्ग्रहो नूनमुत्तमः सर्वसङ्ग्रहात्।
निक्षिप्तं हि मुखे रत्नं न कुर्यात् प्राणधारणम्॥

dhānyānāṁ saṅgraho nūnam uttamaḥ sarva-saṅgrahāt।
nikṣiptaṁ hi mukhe ratnaṁ na kuryāt prāṇa-dhāraṇam॥


🔍 शब्दार्थ व व्याकरणीय विश्लेषण:

पद अर्थ व्याकरणिक टिप्पणी
धान्यानाम् अन्नों (अर्थात् अनाजों) का नपुंसकलिंग, षष्ठी बहुवचन
सङ्ग्रहः संचय पुल्लिंग, प्रथमा एकवचन
नूनम् निश्चय ही / वास्तव में अव्यय
उत्तमः श्रेष्ठ विशेषण
सर्वसङ्ग्रहात् सभी संचयों से पंचमी विभक्ति
निक्षिप्तम् रखा गया कृदन्त रूप, कर्तृवाचक
हि निश्चय ही अव्यय
मुखे मुँह में सप्तमी विभक्ति
रत्नम् रत्न नपुंसकलिंग, एकवचन
न कुर्यात् नहीं करता विधिलिङ् लकार
प्राणधारणम् प्राणों का धारण नपुंसकलिंग, कर्म रूप

🪷 भावार्थ:

"सभी प्रकार के संचयों में अनाज (अन्न) का संचय सबसे श्रेष्ठ है। क्योंकि मुँह में डाला गया रत्न (हीरा, माणिक्य आदि) भी जीवन की रक्षा नहीं कर सकता।"

अर्थात् —
👉 जीवन को चलाने के लिए भोजन आवश्यक है, न कि केवल मूल्यवान वस्तुएँ।
👉 अन्न प्राणाधार है, और सच्चा धन वही है जो समय पर उपयोगी हो।


🌿 प्रेरणादायक कथा: “रत्न या अन्न?” 🌿

प्राचीन काल में एक अत्यंत धनी सेठ था। उसके पास स्वर्ण, रत्नों, और बहुमूल्य वस्तुओं का भंडार था, परंतु वह अन्न को महत्व नहीं देता था। उसका भंडार सड़ा हुआ या फेंका जाता था।

एक वर्ष भयंकर अकाल पड़ा। सेठ ने अपने रत्न लेकर अन्न के लिए गिड़गिड़ाया — पर कोई अनाज देने को तैयार नहीं था।

अंततः वह राजमहल गया और राजा से बोला —

“हे नृप! यह नीलम, यह हीरा — जो कहो, ले लो। बस मुझे कुछ अन्न दे दो।”

राजा ने मुस्कराकर वही श्लोक सुनाया:

"निक्षिप्तं हि मुखे रत्नं न कुर्यात् प्राणधारणम्॥"

और समझाया:

यह रत्न मूल्यवान है, पर जीवन को नहीं बचा सकता।
जो भूख को न मिटा सके, वह धन केवल भ्रम है।

सेठ ने उसी दिन से अन्नदान और अन्नसंचय को ही सच्चा पुण्य और संपत्ति मान लिया।


🌟 शिक्षा / प्रेरणा:

  • संपत्ति का मूल्य उसकी उपयोगिता से है, केवल चमक से नहीं।
  • अन्न सृष्टि का आधार है — जीवन के मूल स्तम्भों में से एक।
  • संकट के समय केवल वही धन काम आता है जो जीवन की रक्षा करे।
  • दान में भी अन्नदान सर्वोत्तम कहा गया है — "अन्नं ब्रह्म"।

🕯️ आधुनिक संदर्भ में:

आज के समय में जब भोजन की बर्बादी, अन्न की अवहेलना, और सजावटी भोग की बढ़ोतरी है — यह श्लोक हमें याद दिलाता है कि
“जो भूख मिटाए वही असली अमूल्य रत्न है।”

Post a Comment

0 Comments

Post a Comment (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!