मेष आदि राशियों की दृष्टि का विश्लेषण

Sooraj Krishna Shastri
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मेष आदि राशियों की दृष्टि का विश्लेषण 

 प्रस्तुत विषय "राशियों की दृष्टि" वैदिक ज्योतिष के एक विशिष्ट और गूढ़ भाग का प्रतिनिधित्व करता है, जिसे विशेषतः जैमिनीय ज्योतिष (Jaimini Astrology) में प्रमुखता दी गई है। इसे "राशि दृष्टि" (Sign Aspect) कहा जाता है, जो पाराशरी पद्धति की ग्रह दृष्टि (Planet Aspect) से भिन्न है।

आइए इस श्लोक और उसके भावार्थ को क्रमबद्ध रूप में समझते हैं:

मेष आदि राशियों की दृष्टि का विश्लेषण (Analysis of the vision of zodiac signs like Aries etc.)
मेष आदि राशियों की दृष्टि का विश्लेषण (Analysis of the vision of zodiac signs like Aries etc.)



🔹 मूल श्लोकः

मेषादीनां च राशीनां चरादीनां पृथक् पृथक् ।
दृष्टिभेदं प्रवक्ष्यामि श्रृणु त्वं द्विजसत्तम ॥ ४ ॥

राशयोष्भिमुखं विप्र तथा पश्यन्ति पार्श्वभे ।
रन्ध्र षष्ठे तथा द्यूनेऽभिमुखो राशिरुच्यते ॥ २ ॥


🔹 पदविच्छेद और सरल अन्वय:

  • मेषादीनाम् च राशीनाम् — मेष आदि राशियों की

  • चरादीनाम् पृथक् पृथक् — चर, स्थिर, द्विस्वभाव – इन तीनों के भिन्न-भिन्न रूपों में

  • दृष्टिभेदम् प्रवक्ष्यामि — दृष्टि का भेद मैं बताने जा रहा हूँ

  • श्रृणु त्वं द्विजसत्तम — हे श्रेष्ठ द्विज! तू सुन

  • राशयः अभिमुखं पश्यन्ति — राशियाँ सामने की राशि को देखती हैं

  • तथा पार्श्वभे — और अगल-बगल की को भी

  • रन्ध्र षष्ठे तथा द्यूने — अर्थात अष्टम, षष्ठ, और चतुर्थ राशियों को भी

  • अभिमुखः राशिः उच्यते — इन्हें सम्मुख दृष्टि रखने वाली राशि कहा गया है।


🔹 भावार्थ:

हे द्विजश्रेष्ठ! अब मैं मेष आदि राशियों की चर, स्थिर व द्विस्वभाव के अनुसार दृष्टि का भेद बताता हूँ। जैमिनीय मत में यह कहा गया है कि राशियाँ अपनी सामने (अभिमुख), अगल-बगल (पार्श्व), और कुछ विशेष स्थानों (षष्ठ, अष्टम, चतुर्थ) की राशियों को देखती हैं।

यह "राशि दृष्टि" की अवधारणा है — इसमें ग्रहों की दृष्टि नहीं, अपितु राशियाँ एक-दूसरे को देखती हैं। यह पाराशरी दृष्टियों से भिन्न होती है जहाँ शनि, गुरु आदि की विशिष्ट दृष्टियाँ होती हैं (जैसे गुरु की 5वीं, 7वीं, 9वीं)।


🔹 जैमिनीय दृष्टि का सारांश:

राशि का प्रकार जिन राशियों पर दृष्टि डालती है
चर राशि (मेष, कर्क, तुला, मकर) 11वीं, 7वीं, 3वीं (अर्थात सामने व अगल-बगल)
स्थिर राशि (वृष, सिंह, वृश्चिक, कुम्भ) 10वीं, 7वीं, 4वीं (कृमशः दाएं कोने)
द्विस्वभाव राशि (मिथुन, कन्या, धनु, मीन) 9वीं, 7वीं, 5वीं (तिर्यक् दृष्टि)

👉 ये दृष्टियाँ राशि दृष्टियाँ हैं, न कि ग्रह दृष्टियाँ।

उदाहरण के लिए –
यदि कोई ग्रह मेष राशि में है (चर राशि), तो वह तुला (7वीं), कुंभ (11वीं) और मिथुन (3वीं) राशि में स्थित राशियों को देखेगा।


🔹 पार्श्वदृष्टि और अभिमुख दृष्टि:

  • अभिमुख = सम्मुख (सामने) – जो ज्योतिष की “सप्तम दृष्टि” नहीं, अपितु जैमिनीय “मुख-संयोजन” है।
  • पार्श्व = बगल की राशियाँ (अर्थात एक-एक राशि दाएँ और बाएँ)
  • चर राशि – अगली व पिछली राशियाँ
  • स्थिर राशि – एक छोड़कर अगली और पिछली राशियाँ
  • द्विस्वभाव – अगली दो और पिछली दो में से मध्य की।

🔹 यह दृष्टिकोण क्यों महत्वपूर्ण है?

  • यह राशि आधारित दृष्टि है, न कि केवल ग्रह आधारित।
  • इससे चरण (पाद), कारक, फलादेश, और द्रष्टा-दृष्ट विषय का विश्लेषण और गूढ़ हो जाता है।
  • जैमिनीय प्रणाली आत्मिक-कारक, उपपद, दारा-कारक आदि के साथ इन दृष्टियों को जोड़ती है।


1.  जैमिनीय राशि दृष्टि क्या है?

जैमिनीय ज्योतिष में ग्रहों के स्थान पर राशियाँ एक-दूसरे पर दृष्टि डालती हैं।
यह दृष्टि ग्रह दृष्टि (पाराशरी) से भिन्न है।
प्रत्येक राशि अपने प्रकार (चर, स्थिर, द्विस्वभाव) के अनुसार विशेष दिशाओं में देखती है।


2. राशि वर्गीकरण और उनकी दृष्टि व्यवस्था

क्रम राशि का प्रकार राशियाँ जिन राशियों को देखती हैं (राशि दृष्टि)
1️⃣ चर राशि मेष, कर्क, तुला, मकर 3वीं, 7वीं, 11वीं (अर्थात अगल-बगल और सामने)
2️⃣ स्थिर राशि वृष, सिंह, वृश्चिक, कुम्भ 4वीं, 7वीं, 10वीं (कोणीय दृष्टि)
3️⃣ द्विस्वभाव राशि मिथुन, कन्या, धनु, मीन 5वीं, 7वीं, 9वीं (तिर्यक् दृष्टि)

3. विस्तारपूर्वक उदाहरण सहित

चर राशियाँ – (3, 7, 11 दृष्टियाँ)

राशि दृष्टि डाली जाती है इन राशियों पर
मेष मिथुन (3rd), तुला (7th), कुम्भ (11th)
कर्क कन्या, मकर, वृष
तुला धनु, मेष, सिंह
मकर मीन, कर्क, वृश्चिक

स्थिर राशियाँ – (4, 7, 10 दृष्टियाँ)

राशि दृष्टि डाली जाती है इन राशियों पर
वृष सिंह (4th), वृश्चिक (7th), कुंभ (10th)
सिंह वृश्चिक, कुम्भ, वृष
वृश्चिक कुम्भ, वृष, सिंह
कुंभ वृष, सिंह, वृश्चिक

द्विस्वभाव राशियाँ – (5, 7, 9 दृष्टियाँ)

राशि दृष्टि डाली जाती है इन राशियों पर
मिथुन तुला (5th), धनु (7th), कुंभ (9th)
कन्या मकर, मीन, वृष
धनु मेष, मिथुन, सिंह
मीन कर्क, कन्या, वृश्चिक

4. दृष्टियों की सरल सारणी

प्रकार 3rd 4th 5th 7th 9th 10th 11th
चर ✔️ ✔️ ✔️
स्थिर ✔️ ✔️ ✔️
द्विस्वभाव ✔️ ✔️ ✔️

5. महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ:

🔸 जैमिनीय दृष्टियों में केवल राशियाँ ही देखती हैं, ग्रह नहीं।
🔸 यह दृष्टि चंद्र कुंडली या लग्न कुंडली के आधार पर ली जा सकती है।
🔸 पाराशरी दृष्टियों (जैसे गुरु की 5वीं, 9वीं) से इनका कोई संबंध नहीं
🔸 जैमिनीय दृष्टियों का प्रयोग कारक ग्रहों (आत्मकारक, दारकारक, उपपद आदि) के साथ किया जाता है।


6. समापन व उपयोग:

  • यदि कोई कारक ग्रह किसी विशेष राशि में बैठा है, तो वह उस राशि की दृष्टियों से संबंधित भावों को प्रभावित करेगा।
  • जैमिनीय ज्योतिष में यही दृष्टि फलादेश, दारा भाव, राजयोग, उपपद विवाह योग, आदि निर्धारण में प्रमुख है।

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