संस्कृत श्लोक "मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण
नमः श्रीरामाय। यहां मैं प्रस्तुत श्लोक –"मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः । बन्धाय विषयासक्तं मुक्त्यै निर्विषयं स्मृतम् ॥" का व्यवस्थित एवं श्रेणीबद्ध विश्लेषण प्रस्तुत कर रहा हूँ, जिससे यह शिक्षण, चिंतन, भाषण अथवा आध्यात्मिक साधना हेतु सहज और सम्पूर्ण रूप से उपयोगी बन सके।
![]() |
संस्कृत श्लोक "मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण |
🪔 १. मूल श्लोक (संस्कृत + Transliteration in English)
मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः ।बन्धाय विषयासक्तं मुक्त्यै निर्विषयं स्मृतम् ॥
Mana eva manuṣyāṇāṁ kāraṇaṁ bandhamokṣayoḥ ।bandhāya viṣayāsaktaṁ muktyai nirviṣayaṁ smṛtam ॥
📘 २. हिंदी अनुवाद
🌐 ३. English Translation
🔠 ४. शब्दार्थ और व्याकरण विश्लेषण
पद | पद का अर्थ | व्याकरणिक विश्लेषण |
---|---|---|
मन | चित्त, मन | नपुंसकलिंग, प्रथमा एकवचन |
एव | ही, निश्चयपूर्वक | अव्यय |
मनुष्याणां | मनुष्यों का | षष्ठी बहुवचन |
कारणं | कारण | नपुंसकलिंग, प्रथमा एकवचन |
बन्धमोक्षयोः | बन्धन और मोक्ष के | द्वंद्व समास, षष्ठी द्विवचन |
बन्धाय | बन्धन के लिए | चतुर्थी एकवचन |
विषयासक्तं | विषयों में आसक्त | बहुव्रीहि समास, क्रियाविशेषण |
मुक्त्यै | मुक्ति के लिए | स्त्रीलिंग, चतुर्थी एकवचन |
निर्विषयं | विषयों से रहित | निषेधपूर्वक संज्ञा, नपुंसकलिंग |
स्मृतम् | कहा गया है, स्मरण किया गया | क्तप्रत्ययान्त, क्रियाविशेषण |
🧠 ५. भावार्थ (तात्त्विक और दार्शनिक)
- यह श्लोक मानव मन की सत्ता को स्पष्ट करता है।
- बन्धन (अज्ञान, वासनाएं, मोह) और मोक्ष (ज्ञान, शांति, आत्मबोध) दोनों मन की प्रवृत्ति पर निर्भर हैं।
- यदि मन विषयों की ओर भागता है (आसक्ति करता है), तो बन्धन उत्पन्न होता है।
- यदि वही मन निर्विषय होकर विवेक से युक्त होता है, तो वह आत्मा की ओर उन्मुख होकर मुक्ति का कारण बनता है।
📿 ६. भगवद्गीता एवं उपनिषद् में समरूप विचार
📖 भगवद्गीता 6.5:
उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत् ।आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः ॥👉 “मनुष्य स्वयं ही अपना मित्र और स्वयं ही अपना शत्रु है।”
🪔 कठोपनिषद् (1.3.3):
आत्मा हि बन्धुरात्मनस्तु शत्रुः👉 “आत्मा स्वयं का बंधु और स्वयं का शत्रु भी है – यह उसके मन पर निर्भर करता है।”
🌐 ७. आधुनिक सन्दर्भ में उपयोगिता
परिस्थिति | विषयासक्त मन | निर्विषय मन |
---|---|---|
डिजिटल युग | सोशल मीडिया की लत, निरंतर comparison | डिजिटल डिटॉक्स, mindful उपयोग |
शिक्षा | विषयों में मन न लगना, distraction | ध्यान, एकाग्रता, आत्मविकास |
समाज | लोभ, क्रोध, ईर्ष्या | करुणा, संयम, सेवा |
मानसिक स्वास्थ्य | चिंता, अवसाद | संतुलन, ध्यान, आंतरिक शांति |
🎭 ८. संवादात्मक नीति कथा: "मन की दिशा"
👦 शिष्य: गुरुदेव! मन बड़ा चंचल है, यह तो कहीं भी दौड़ जाता है। मैं इसे कैसे वश में करूँ?
👴 गुरु: पुत्र! मन घोड़े के समान है। अगर उसे विषयों की ओर लगाओगे, तो यह तुम्हें खाई में गिरा देगा। पर यदि विवेक की लगाम से नियंत्रित करोगे, तो वही मन तुम्हें मोक्ष तक पहुँचा सकता है।
👦 शिष्य: पर गुरुदेव, क्या विषयों का त्याग ही समाधान है?
👦 शिष्य: यह कैसे संभव होगा?
📝 ९. शैक्षिक गतिविधियाँ (शिक्षकों/विद्यार्थियों हेतु)
🔹 प्रश्नोत्तरी अभ्यास:
- इस श्लोक के अनुसार मनुष्य के बंधन और मोक्ष का कारण क्या है?
- "निर्विषय" शब्द का अर्थ क्या है?
- इस श्लोक की व्यावहारिक उपयोगिता क्या है?
🔹 लेखन अभ्यास:
विषयों में आसक्त मन और निर्विषय मन – इस पर 200 शब्दों का निबंध लिखें।
🪔 १०. निष्कर्ष – सार तत्व
- मन को दिशा देना ही साधना है।
- विषयों में फँसा हुआ मन बन्धन का कारण बनता है।
- निर्विषय, शांत और ध्यानस्थ मन ही मोक्ष की ओर ले जाता है।
✨ "मन को शत्रु न बनाइये, उसे आत्मबन्धु बनाइये – यही साधना है, यही मुक्ति का द्वार है।"