भवानी अष्टकम् | Bhavani Ashtakam Lyrics in Sanskrit with Meaning in Hindi

Sooraj Krishna Shastri
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“आदि शंकराचार्य रचित भवानी अष्टकम् (Bhavani Ashtakam) संस्कृत श्लोक, हिंदी भावार्थ और सरल व्याख्या सहित। जानें मां भवानी की स्तुति का महत्व, पाठ विधि और लाभ।”

यह स्तुति अत्यन्त भावपूर्ण है और “भवानी अष्टकम्” नाम से प्रसिद्ध है। इसे महाकवि आदि शंकराचार्य ने रचा है। 

भवानी अष्टकम् | Bhavani Ashtakam Lyrics in Sanskrit with Meaning in Hindi


🌸 भवानी अष्टकम् (आदि शंकराचार्य रचित) 🌸

(१)

न तातो न माता न बन्धुर्न दाता
न पुत्रो न पुत्री न भृत्यो न भर्ता।
न जाया न विद्या न वृत्तिर्ममैव
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानी।।

भावार्थ:
हे भवानी! न पिता, न माता, न भाई, न दाता, न पुत्र, न पुत्री, न सेवक, न पति, न पत्नी, न विद्या, न आजीविका—इनमें से कोई भी मेरा नहीं है।
हे देवी! केवल तुम ही मेरी गति हो।


(२)

भवाब्धावपारे महादु:खभीरु:
पपात प्रकामी प्रलोभी प्रमत्त:।
कुसंसारपाशप्रबद्ध: सदाहं
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानी।।

भावार्थ:
मैं इस भवसागर में, महादुःखों से भयभीत होकर, काम, लोभ और प्रमाद से जकड़ा हुआ हूँ।
हे भवानी! तुम ही मेरी एकमात्र शरण हो।


(३)

न जानामि दानं न च ध्यानयोगं
न जानामि तन्त्रं न च स्तोत्रमन्त्रम्।
न जानामि पूजां न च न्यासयोगं
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानी।।

भावार्थ:
मैं दान, ध्यानयोग, तंत्र, मंत्र, स्तोत्र, पूजन या न्यासयोग कुछ भी नहीं जानता।
हे भवानी! तुम ही मेरी एकमात्र गति हो।

भवानी अष्टकम् | Bhavani Ashtakam Lyrics in Sanskrit with Meaning in Hindi
भवानी अष्टकम् | Bhavani Ashtakam Lyrics in Sanskrit with Meaning in Hindi



(४)

न जानामि पुण्यं न जानामि तीर्थं
न जानामि मुक्तिं लयं वा कदाचित्।
न जानामि भक्तिं व्रतं वापि मातः
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानी।।

भावार्थ:
मैं पुण्य, तीर्थ, मुक्ति, लय, भक्ति या व्रत किसी का भी ज्ञान नहीं रखता।
हे मातः! तुम ही मेरी एकमात्र शरण हो।


(५)

कुकर्मी कुसंगी कुबुद्धिः कुदासः
कुलाचारहीनः कदाचारलीनः।
कुदृष्टिः कुवाक्यप्रबन्धः सदाहं
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानी।।

भावार्थ:
मैं पापकर्मी, दुष्संग में पड़ा, कुलाचारहीन, दुराचारों में लीन, दुष्टदृष्टि और कुवचन का आदी हूँ।
हे भवानी! अब तुम ही मेरी गति हो।


(६)

प्रजेशं रमेशं महेशं सुरेशं
दिनेशं निशीथेश्वरं वा कदाचित्।
न जानामि चान्यत् सदाहं शरण्ये
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानी।।

भावार्थ:
मैं ब्रह्मा, विष्णु, शिव, इन्द्र, सूर्य, चन्द्र आदि किसी देवता को भी नहीं जानता।
हे शरण देनेवाली! तुम ही मेरी एकमात्र गति हो।


(७)

विवादे विषादे प्रमादे प्रवासे
जले चानले पर्वते शत्रुमध्ये।
अरण्ये शरण्ये सदा मां प्रपाहि
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानी।।

भावार्थ:
हे शरण में आनेवाली की रक्षक! विवाद, विषाद, प्रमाद, प्रवास, जल, अग्नि, पर्वत, शत्रु और जंगल के बीच सदा मेरी रक्षा करो।
तुम ही मेरी एकमात्र गति हो।


(८)

अनाथो दरिद्रो जरारोगयुक्तो
महाक्षीणदीनः सदाजाड्यवक्त्रः।
विपत्तौ प्रविष्टः प्रणष्टः सदाहं
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानी।।

भावार्थ:
मैं अनाथ, दरिद्र, वृद्धावस्था से क्षीण, रोगी, दीन, जड़ और विपत्तियों में फँसा हुआ हूँ।
हे भवानी! तुम ही मेरी एकमात्र शरण हो।


॥ श्रीमच्छड़्कराचार्य विरचितं भवान्यष्टकं सम्पूर्णम् ॥

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