विद्या और विनय का महत्व – Vidya aur Vinay se yukt vyakti का असली सौंदर्य | Sanskrit Shlok with Meaning

Sooraj Krishna Shastri
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जानें संस्कृत श्लोक “विद्याविनयोपेता हरति न चेतांसि कस्य मनुजस्य” का अर्थ। विद्या और विनय से युक्त व्यक्ति क्यों सबका मन मोह लेता है? आधुनिक जीवन में शिक्षा और विनम्रता का महत्व।

विद्या और विनय का महत्व – Vidya aur Vinay se yukt vyakti का असली सौंदर्य | Sanskrit Shlok with Meaning


📜 श्लोक (Sanskrit)

विद्याविनयोपेता हरति न चेतांसि कस्य मनुजस्य ।
मणिकाञ्चनसंयोगो जनयति लोकस्य लोचनानंदम् ॥


🔤 English Transliteration

vidyā–vinayopetā harati na cetāṃsi kasya manujasya ।
maṇi–kāñcana–saṃyogo janayati lokasya locanānandam ॥


🇮🇳 हिन्दी अनुवाद

जो मनुष्य विद्या और विनय से युक्त होता है, वह किसका मन नहीं मोह लेता? जैसे स्वर्ण में जड़ा हुआ रत्न सबकी आँखों को सुखद आनंद प्रदान करता है, वैसे ही विद्या और विनय से युक्त मनुष्य सबको आकर्षित करता है।

विद्या और विनय का महत्व – Vidya aur Vinay se yukt vyakti का असली सौंदर्य | Sanskrit Shlok with Meaning
विद्या और विनय का महत्व – Vidya aur Vinay se yukt vyakti का असली सौंदर्य | Sanskrit Shlok with Meaning



🪔 शब्दार्थ

  • विद्या (Vidyā) – ज्ञान, शिक्षा
  • विनय (Vinaya) – विनम्रता, नम्र स्वभाव
  • उपेता (Upetā) – युक्त, संपन्न
  • हरति (Harati) – हर लेता है, आकर्षित करता है
  • चित्तानि (Cittāṃsi) – हृदय, मन
  • मणि (Maṇi) – रत्न
  • काञ्चन (Kāñcana) – स्वर्ण (सोना)
  • संयोग (Saṃyogaḥ) – मेल, संगम
  • लोचनानंदम् (Locanānandam) – नेत्रों को सुख देने वाला

📚 व्याकरणात्मक विश्लेषण

  • विद्या + विनय + उपेता – समस्त पद, “जो विद्या और विनय से युक्त है” (स्त्रीलिंग, प्रथमा एकवचन)
  • हरति – लट् लकार, प्रथम पुरुष एकवचन (वह हर लेता है)
  • चित्तानि – बहुवचन रूप, “मन”
  • मणि + काञ्चन + संयोगः – तृतीय विभक्ति, “रत्न और स्वर्ण का संगम”

🌏 आधुनिक सन्दर्भ

आज के समय में सिर्फ पढ़ाई या डिग्री (Education) ही पर्याप्त नहीं है।
👉 यदि विद्या के साथ विनम्रता न हो, तो समाज उस व्यक्ति को स्वीकार नहीं करता।
👉 सफलता के साथ घमंड व्यक्ति को गिरा देता है, जबकि विनम्रता उसे सबके दिलों में स्थान दिलाती है।

यह श्लोक हमें याद दिलाता है कि –
Knowledge + Humility = True Beauty of Personality


🗣️ संवादात्मक नीति कथा

👦 शिष्य – “गुरुदेव! क्यों कहा गया है कि विद्या के साथ विनय आवश्यक है?”
👨‍🦳 गुरु – “वत्स! जैसे सोने में जड़ा रत्न सबको भाता है, वैसे ही विद्वान तभी सबका प्रिय बनता है जब उसमें विनम्रता होती है। विद्या बिना विनय, केवल घमंड का कारण बन जाती है।”
👦 शिष्य – “अब समझा, गुरुजी! विद्या का आभूषण ही विनय है।”


✅ निष्कर्ष

  • विद्या मनुष्य को ऊँचा उठाती है।
  • विनय (विनम्रता) उसे और सुंदर व स्वीकार्य बनाता है।
  • जैसे रत्न और सोना मिलकर आभूषण की शोभा बढ़ाते हैं, वैसे ही विद्या और विनय मिलकर व्यक्तित्व को अनुपम बना देते हैं।


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