Shri Ram aur Bharat Samvad में जानें, क्यों राम ने माता Kaikeyi को दंड नहीं दिया। भ्रातृप्रेम, करुणा और मर्यादा का अद्भुत उदाहरण।
अतुल्य भ्रातृप्रेम – Shri Ram aur Bharat Samvad | Kaikeyi का अपराध और Rama का Karuna Bhav
🌿 अतुल्य भ्रातृप्रेम और राम का दृष्टिकोण 🌿
सरयू के तट की संध्या बेला
सांझ का समय था। मंद-मंद बहती सरयू की धारा, आकाश में सुनहरी आभा, और पक्षियों का मधुर कलरव उस क्षण को और भी पावन बना रहा था। श्रीराम अपने तीनों भाइयों—भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न—के साथ सरयू के तट पर टहल रहे थे। वातावरण गंभीर, किन्तु मधुर था।
ऐसे समय में महात्मा भरत ने बड़े आदर और जिज्ञासा से कहा—
भरत : “भैया! एक प्रश्न पूछूँ?”
राम ने स्नेहिल मुस्कान के साथ अनुमति दी।
भरत ने गंभीर स्वर में कहा—
“माता कैकयी ने मंथरा के साथ मिलकर जो षड्यंत्र रचा, वह तो राजद्रोह के समान था। उस षड्यंत्र के कारण अयोध्या के युवराज और उनकी पत्नी को चौदह वर्ष का वनवास भोगना पड़ा। साथ ही हमारे पिता महाराज दशरथ का वियोग में देहांत हो गया। सामान्य दंडविधान के अनुसार तो ऐसे अपराध का परिणाम मृत्युदंड होता है। फिर आपने माता कैकयी को दंड क्यों नहीं दिया?”
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अतुल्य भ्रातृप्रेम – Shri Ram aur Bharat Samvad | Kaikeyi का अपराध और Rama का Karuna Bhav |
🌸 राम का उत्तर – माँ के प्रति दृष्टि
राम ने भरत की ओर देखा, मुस्कुराए और बड़े ही कोमल स्वर में बोले—
“भरत! यदि किसी कुल में कोई धर्मपरायण और चरित्रवान पुत्र जन्म ले ले, तो उसका जीवन असंख्य पीढ़ियों के पापों का प्रायश्चित कर देता है। जिस माता ने तुम जैसे महात्मा को जन्म दिया है, उसे दंड कैसे दिया जा सकता है?”
🌸 भरत का पुनः प्रश्न – एक नागरिक की दृष्टि
राम के उत्तर से भरत संतुष्ट न हुए। उन्होंने और भी दृढ़ स्वर में कहा—
“भैया! यह तो मोह का भाव है। परन्तु एक राजा का निर्णय मोह से परे होना चाहिए।
आपसे यह प्रश्न मैं आपके अनुज के रूप में नहीं, बल्कि अयोध्या के एक सामान्य नागरिक की भाँति कर रहा हूँ। बताइए, राजा के रूप में आपने माता कैकयी को दंड क्यों नहीं दिया?”
🌸 राम का गंभीर उत्तर – सबसे कठोर दंड
राम का मुखमंडल गंभीर हो गया। कुछ क्षण मौन रहने के बाद उन्होंने कहा—
*“भाई भरत! अपने सगे-संबंधियों के अपराध पर कोई दंड न देना ही इस सृष्टि का सबसे कठोर दंड है।
माता कैकयी ने अपनी भूल का जो दंड पाया, वह किसी भी राजा द्वारा दिए गए दंड से कहीं अधिक कठोर है।
वनवास के चौदह वर्षों में हम चारों भाई अपने-अपने स्थान पर संघर्ष करते रहे, परंतु माता कैकयी हर क्षण अपराधबोध में तिल-तिल कर मरती रहीं।
अपने एक निर्णय के कारण उन्होंने पति खोया, चारों पुत्रों से दूर हो गईं, अयोध्या का सुख खोया और जीवनभर अपराधबोध का भार सहती रहीं।
वनवास समाप्त हुआ, परिवार पुनः मिल गया, सब प्रसन्न हुए—पर माता कैकयी कभी प्रसन्न न हो सकीं।
किसी स्त्री को इससे कठोर दंड और क्या दिया जा सकता है?”*
राम के नेत्रों में आँसू छलक उठे।
🌸 राम का करुण भाव – भूल को अपराध क्यों मानें?
राम ने आगे कहा—
*“और भरत! क्यों न हम उनकी उस भूल को अपराध मानने के बजाय भाग्य का विधान समझें?
यदि वनवास न होता, तो संसार तुम्हारे और लक्ष्मण जैसे भाइयों के अतुल्य प्रेम को कैसे जान पाता?
मैंने तो केवल माता-पिता की आज्ञा का पालन किया, पर तुम दोनों ने मेरे स्नेह में चौदह वर्षों तक वनवास भोगा।
वनवास न होता तो यह संसार कभी न सीख पाता कि भ्रातृप्रेम कैसा होना चाहिए।
इसलिए, भरत! मैं तो यही मानता हूँ कि मेरे वनवास का कारण अपराध नहीं, अपितु एक महान उद्देश्य था।”*
🌸 भरत का मौन और आलिंगन
राम के वचनों से भरत का हृदय पिघल गया। उनके प्रश्न मौन हो गए। वे भाव-विह्वल होकर बड़े भाई राम से लिपट गए।
लक्ष्मण और शत्रुघ्न के नेत्र भी गीले हो गए। सरयू की धारा मानो इस दिव्य प्रेमगाथा की साक्षी बन रही थी।
🌺 निष्कर्ष
राम के उत्तर ने यह सिद्ध कर दिया कि—
- सच्चा दंड बाहरी नहीं, बल्कि भीतर का अपराधबोध होता है।
- भ्रातृप्रेम संसार के लिए अनुकरणीय आदर्श है।
- राम का दृष्टिकोण केवल न्याय का नहीं, बल्कि करुणा और धर्म का था।
इसलिए ही राम “मर्यादा पुरुषोत्तम” कहलाए।
🌿💞🌿 जय श्रीराम 🌿💞🌿