महानारायणास्त्रम् (Maha Narayan Astra) भगवान श्रीनारायण का अत्यंत शक्तिशाली वैष्णव मंत्र है, जो साधक को दिव्य संरक्षण, शांति और आत्मिक शक्ति प्रदान करता है। यह मंत्र न केवल आध्यात्मिक उन्नति में सहायक है, बल्कि जीवन के प्रत्येक संकट, भय और नकारात्मकता को नष्ट करने की क्षमता रखता है। जब कोई भक्त श्रद्धा और एकाग्रता से "Maha Narayan Astra Mantra" का जाप करता है, तो उसके चारों ओर एक अदृश्य दैवी कवच बन जाता है जो उसे सभी प्रकार के संकटों से सुरक्षित रखता है। यह वैष्णव साधना का अत्यंत प्रभावशाली अंग है जो श्रीविष्णु के शरणागत भाव को जागृत करता है।
For English readers, Maha Narayan Astra is known as a Powerful Protective Vishnu Mantra that brings peace, divine strength, and positive vibrations. Chanting this mantra daily enhances spiritual awareness, removes fear, and connects the soul to eternal divine energy. Discover the ancient Vedic power of this sacred Vaishnav mantra and experience spiritual transformation in life.
महानारायणास्त्रम् स्तोत्र – Maha Narayan Astra Stotra: भगवान नारायण का दिव्य रक्षात्मक मन्त्र हिन्दी अनुवाद सहित
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महानारायणास्त्रम् स्तोत्र – Maha Narayan Astra Stotra: भगवान नारायण का दिव्य रक्षात्मक मन्त्र हिन्दी अनुवाद सहित |
महानारायणास्त्रम्
(रामानुजवैष्णव सम्प्रदाय के चक्राङ्कित वैष्णवों हेतु ॥
पूर्णशुद्ध सात्विक तपोनिष्ठ वैष्णव ब्राह्मणों द्वारा मात्र प्रयोग ॥)
🌸 अथ महानारायणास्त्रम् 🌸
देविदेवि महादेवि करुणाकरपुङ्गवि ।
कथितान्यागमोक्तानि महास्त्राणि त्वयानघे ॥ १॥
गारुडं वारुणं सार्षं पार्वतं बलिदैवतम् ।
अघोराख्यं महास्त्रञ्च तथा पाशुपतं शुभम् ॥ २॥
नारायणाख्यमस्त्रं च कथय स्वानुकम्पया ।
न कथ्यते महामातर्विमुञ्चामि तदा तनुम् ॥ ३॥
देव्युवाच —
शृणु भैरव यत्नेन कथयामि तवाग्रतः ।
कस्याग्रे न कथितं मन्त्रं नारायणात्मकम् ॥ ४॥
महाभये महोत्पाते महाविघ्नेषु सङ्कटे ।
धारणादस्त्रराजस्य भयं सर्वं निवर्तते ॥ ५॥
पूर्वं यद्ब्रह्मणे प्रोक्तं विष्णुना प्रभविष्णुना ।
सृष्टिकाले महाविघ्नपराभूताय भैरव ॥ ६॥
तदहं सम्प्रवक्ष्यामि महाशत्रुनिबर्हणम् ।
महाविघ्नोपशमनं महासङ्कटनाशनम् ॥ ७॥
🌸 विनियोगः 🌸
ॐ अस्य श्रीनारायणास्त्रमहामन्त्रस्य आदिसृष्टिकर्ता ब्रह्मा ऋषिः, जगती छन्दः, त्रिपादविभूतिनायकः श्रीमन्नारायणो देवता, ॐ बीजम्, ह्रीं शक्तिः, ॐ नमः कीलकम्, मम सर्वारिष्टशान्तये सकलाभीष्टसिद्ध्यर्थे च नारायणास्त्रमहामन्त्रपाठे विनियोगः ॥
🌸 ध्यानम् 🌸
ध्यायेत् सागरमध्यस्थं सहस्रादित्यतेजसम् ।
अनन्तशक्तिसंयुक्तं नारायणमनामयम् ॥ ८॥
🌸 मन्त्रः 🌸
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं नमो भगवते नारायण सकल जगदुत्पत्ति-स्थिति-लयकारणाय अमिततेजसे अतुलबलपराक्रमाय महाविभूतिपतये ह्रीं ह्रीं ह्रैं ह्रैं ह्रः सकलनिगमगोचरगुणगणाय महासम्राज्यविभूतिविभूषिताय ध्वजातपत्रचामरव्यजनकुण्डल –करकटिसूत्राङ्गदादि हारवलयमणिनूपुराद्यनेकमणिभूषणभूषिताय सहस्रशिरसे सहस्राक्षाय सहस्रभुजाय सहस्रपादाय शङ्खचक्रगदापद्मधराय शार्ङ्गधर शरनन्दकखड्गचर्मखेटकपरशुपाश –हलमुसल तोमरभुशुण्डीपाशाङ्कुशकुन्तशतघ्नीपरशुवराभय विभूषितभुजसहस्राय बलिरञ्जितब्रह्माण्डमण्डलाय अनन्तनागेन्द्रसिंहासनाधिष्ठिताय सनकाद्यनेकमुनिगणसिद्धचारण –विद्याधरकिन्नर-गन्धर्वयक्षरक्षोरगगीर्वाणस्वर्गीतगुणार्णवाय सकल-जगद्भयङ्कराय भूतप्रेतपिशाचयक्षराक्षस-डाकिनीशाकिनीवैतालमारीचब्रह्मराक्षस-कूष्माण्डवैनायक–मातृगणा–नुन्मथय-मथय–क्षयं कुरु-कुरु कुष्टदुष्टज्वरदाहापस्मारीप्रमेह–वि–स्फोटकब्रह्मापस्मारादि सर्वराजरोगान् विहिंसनाय ममाभयं कुरु-कुरु मम शत्रूनुच्चाटय-उच्चाटय व्याधिभयं शमय-शमय चौरभयं नाशय-नाशय महास्त्राणि स्तम्भय-स्तम्भय मम दुष्टग्रहान् भीषय-भीषय मम द्वेषकरान् मोहय-मोहय स्तम्भय-स्तम्भय कम्पय-कम्पय पातय-पातय बन्धय-बन्धय भूतग्रहान् बन्धय-बन्धय बालग्रहान् शमय-शमय यक्षपक्षज्वालातमोहारग्रहान् ज्वल-ज्वल प्रज्ज्वल-प्रज्ज्वल मथ-मथ पच-पच दह-दह उन्मथयोन्मथय मम शत्रून् विनाशय-विनाशय त्रोटय-त्रोटय निगडपाशादीन् मोचय-मोचय वद्दिवातसुपर्णनागपर्वतपर्जन्यादि
दुष्टशस्त्रास्त्रजन्यबन्धनानि शमय-शमय शत्रुकृतमहापीडां शमय-शमय
दुष्टरोगपीडां शमय-शमय दुष्कृतपीडां शमय-शमय भूतप्रेतपिशाचादि पीडां शमय-शमय दुष्कर्मजन्यनरकभयात् मामुद्धरोद्धर मां सञ्जीवय-सञ्जीवय महामृत्युभ्यां मां मोचय-मोचय ॥
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः खं खां खैं फट् हुँ हुँ हुँ फट्-फट् ठःठःठः ह्रीं ह्रीं ह्रीं हुँ हुँ हुँ एहि-एहि ज्वल-ज्वल प्रज्वल-प्रज्वल हुँ फट् स्वाहा ॥ ॐ नमो नारायणाय नमस्ते नमस्ते नमस्ते ॥ ९॥
🌸 फलश्रुतिः 🌸
देव्युवाच —
इत्येतत्परमं गुह्यमस्त्रं नारायणात्मकम् ।
त्वमेव संयतो भूत्वा धारयस्व निरन्तरम् ॥ १०॥
महाभये महोत्पाते महाशत्रुसमागमे ।
रणे दुर्गे विवादे च पाते चौराग्निजे भये ॥ ११॥
विषसर्पभये घोरे मारीराजभये तथा ।
स्मरणान्मन्त्रराजस्य भयं सर्वं निवर्तते ॥ १२॥
एकवारं पठेद्यो वै व्याधिभूतादिनाशनम् ।
एकवारं पठेद्यो वै दशविद्याफलं लभेत् ॥ १३॥
शतावर्तनमात्रेण सर्वशत्रुक्षयो भवेत् ।
सहस्रावर्तनेनैव ग्रहपीडा निवर्तते ॥ १४॥
अयुतावर्तनेनैव राज्यलक्ष्मी स्थिरा भवेत् ।
पञ्चविंशति सहस्रेण पञ्चतत्त्वाधिपो भवेत् ॥ १५॥
लक्षावर्तनमात्रेण लक्ष्मीपतिः सम्भवेत् ।
नदीतीरे पर्वताग्रे पिप्पलाग्रे शुभालये ॥ १६॥
गोष्ठे वृन्दावने रम्ये पठन्मन्त्रमनूत्तमम् ।
त्रिलोहवेष्ठितं चैतद्धारयेद्दक्षिणे करे ॥ १७॥
सङ्ग्रामे शस्त्रसम्पाते शस्त्रधारानिबन्धनम् ।
त्वमपि श्रद्धया मन्त्रं धारयस्व निरन्तरम् ॥ १८॥
सुरासुरैरजेयश्च भविष्यसि न संशयः ।
तव स्नेहान्मयाऽऽख्यातं मन्त्रराजमनूत्तमम् ॥ १९॥
गोपायस्व प्रयत्नेन गुह्याद्गुह्यन्तरं परम् ।
सुशिष्याय प्रदातव्यं महाविद्याप्रजापिने ॥ २०॥
🌸 इति महानारायणास्त्रप्रयोगः ॥ 🌸
महा नारायण अस्त्रम् का हिन्दी अनुवाद
🌷🌷 महानारायणास्त्रम् 🌷🌷
(रामानुजवैष्णव सम्प्रदाय के चक्राङ्कित वैष्णवों हेतु ॥
पूर्णशुद्ध सात्विक तपोनिष्ठ वैष्णव ब्राह्मणों द्वारा मात्र प्रयोग ॥)
🌸 अथ महानारायणास्त्रम् 🌸
श्लोक १-३ :
देवी, हे देवों में श्रेष्ठे, हे करुणामयी! आपने अनेक आगमों में वर्णित महान अस्त्रों (शक्तियों) का उल्लेख किया है — जैसे गारुड, वारुण, पार्वत, बलिदेव और पाशुपत अस्त्र।
अब कृपा कर आप वह नारायण नामक अस्त्र भी बताइए।
यदि आप यह अस्त्र न बताएँ, तो मैं यह शरीर त्याग दूँगा।
भावार्थ:
भैरव देवता देवी से विनम्र निवेदन करते हैं कि वे अब नारायण स्वरूप का वह दिव्य अस्त्र बताएँ जो समस्त बाधाओं का नाश करता है।
श्लोक ४-७ :
देवी बोलीं — हे भैरव! ध्यानपूर्वक सुनो, मैं तेरे सम्मुख वह परम रहस्यमय नारायणात्मक अस्त्र बताने जा रही हूँ, जिसे किसी के सामने नहीं कहा गया।
महाभय, महाविघ्न या संकट के समय इस अस्त्रराज का स्मरण करने से सभी भय दूर हो जाते हैं।
यह वही अस्त्र है जिसे प्रभु विष्णु ने सृष्टि के प्रारम्भ में ब्रह्मा को महाविघ्नों के नाश हेतु दिया था।
अब मैं तुझे वही महाशत्रु-नाशक, महाविघ्न-उपशमक, और महा-संकटनाशक मन्त्र बताती हूँ।
भावार्थ:
देवी इस अस्त्र को ब्रह्मा-विष्णु संवाद से प्राप्त दिव्य अस्त्र बताकर इसे सर्वोच्च रक्षात्मक शक्ति के रूप में प्रकट करती हैं।
🌸 विनियोगः 🌸
इस नारायणास्त्र महा-मन्त्र का ऋषि ब्रह्मा हैं, छंद जगती है, देवता स्वयं त्रिपाद-विभूति-स्वरूप श्रीमन्नारायण हैं।
“ॐ” बीज है, “ह्रीं” शक्ति है, “ॐ नमः” कीलक है।
इसका जप सर्व पाप-पीड़ा शमन तथा सभी अभिष्ट सिद्धि के लिए किया जाता है।
भावार्थ:
यह विनियोग दर्शाता है कि इस मन्त्र का जप धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष — चारों पुरुषार्थों की सिद्धि का साधन है।
🌸 ध्यानम् 🌸
समुद्र के मध्य में सहस्र सूर्य के समान तेजस्वी, अनन्त शक्तियों से युक्त, अमल (निष्कलंक) नारायण का ध्यान करना चाहिए।
भावार्थ:
भगवान नारायण का ध्यान दिव्य तेज के सागर के रूप में करना चाहिए, जिनसे समस्त ब्रह्माण्ड प्रकाशित होता है।
🌸 मन्त्रः 🌸
यह मन्त्र नारायण की अनन्त शक्तियों का आह्वान करता है —
वह जो जगत की उत्पत्ति, स्थिति और संहार का कारण हैं;
असीम तेजस्वी, अतुल बल और पराक्रम के स्वामी हैं;
सहस्र शिर, सहस्र नेत्र, सहस्र भुजाओं वाले हैं;
शंख, चक्र, गदा, पद्म धारण करने वाले हैं;
और जो समस्त अस्त्रों, शस्त्रों, मणियों, हारों, अलंकारों से विभूषित हैं।
वे ही सभी प्राणियों के भीतर व्याप्त हैं —
देव, दानव, यक्ष, राक्षस, पिशाच, ग्रह, भूत, दुष्ट शक्तियाँ —
सबको वे अपने तेज से दग्ध कर देते हैं।
हे प्रभो!
मेरे सभी शत्रुओं को नष्ट करें,
व्याधि, ग्रहदोष, भय, विष, ज्वर, अपस्मार, और रोगों को शांत करें।
मुझे अभय प्रदान करें।
दुष्ट ग्रहों, भूत-प्रेतों, पिशाचों, यक्षों, राक्षसों, डाकिनियों, शाकिनियों का नाश करें।
मेरे शत्रुओं का विनाश करें, रोगों को मिटाएँ,
कष्टों और पापों का निवारण करें,
मुझे मृत्यु के भय से मुक्त करें और पुनः जीवन प्रदान करें।
भावार्थ:
यह सम्पूर्ण मन्त्र भगवान नारायण को रक्षक और विनाशक रूप में आवाहित करता है — जो दुष्ट शक्तियों को नष्ट कर भक्त को समस्त भय से मुक्त करते हैं।
🌸 फलश्रुतिः 🌸
श्लोक १०-१२ :
देवी कहती हैं — हे भैरव! यह अत्यंत गुप्त नारायणात्मक अस्त्र है।
इसे संयमपूर्वक निरन्तर धारण करना चाहिए।
महाभय, युद्ध, विवाद, चौरभय, विष, सर्प, मृत्यु आदि किसी भी संकट में इसका स्मरण मात्र करने से भय नष्ट हो जाता है।
श्लोक १३-१५ :
एक बार इसका पाठ करने से व्याधि, भूत, पिशाच आदि से रक्षा होती है;
एक बार जपने से दश विद्याओं का फल प्राप्त होता है।
सौ बार जपने से सभी शत्रु नष्ट हो जाते हैं।
हजार बार जपने से ग्रहदोष शान्त हो जाते हैं।
दस हजार बार जपने से राज्यलक्ष्मी स्थिर हो जाती है।
पच्चीस हजार बार जपने से पंचतत्वों पर अधिपत्य प्राप्त होता है।
एक लाख बार जपने से लक्ष्मीपति के समान ऐश्वर्य प्राप्त होता है।
श्लोक १६-१७ :
नदी के तट, पर्वत के शिखर, पिप्पल वृक्ष के नीचे, शुभ गृह में या वृन्दावन जैसे रमणीय स्थलों में इस मन्त्र का जप अत्युत्तम फलदायी होता है।
त्रिलोह (सोना, चाँदी, ताँबा) से लिखित इसे दक्षिण हाथ में धारण करने से सम्पूर्ण रक्षा होती है।
श्लोक १८-२० :
युद्ध में, शस्त्रवर्षा के समय, या किसी भी संकट में इसे श्रद्धा से धारण करने वाला व्यक्ति देवों और असुरों दोनों पर विजय प्राप्त करता है।
हे भैरव! यह मन्त्रराज मैं तुझसे स्नेहवश कह रही हूँ, इसे अत्यंत गुप्त रखना।
यह केवल श्रेष्ठ शिष्य को देना चाहिए, जो विद्याप्रेमी और संयमी हो।
🌸 इति महानारायणास्त्र प्रयोगः ॥ 🌸
🔶 संक्षेप भावार्थ:
“महानारायणास्त्रम्” वह दिव्य मन्त्र है जो श्रीनारायण की अनन्त शक्तियों का आह्वान करता है।
यह भय, रोग, शत्रु, ग्रहदोष, दुष्टात्मा, विष, ज्वर, और मृत्यु तक को नष्ट करने में समर्थ है।
इसका पाठ सात्विक, संयमी, वैष्णव ब्राह्मण द्वारा शुद्ध आचरण के साथ किया जाना चाहिए।
श्रद्धा और विश्वास से जपने वाला साधक समस्त संकटों से मुक्त होकर श्रीनारायण की अनुकम्पा प्राप्त करता है।
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