Bhagwan Ka Ghar – जीते जी भगवान के घर में रहना क्या होता है?

Sooraj Krishna Shastri
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“Bhagwan Ka Ghar” एक हृदयस्पर्शी प्रेरक कहानी है जो बताती है कि यदि हम अपने घर को भगवान का घर मानें, तो जीवन में शांति, प्रेम और सकारात्मकता स्वतः आ जाती है।

Bhagwan Ka Ghar – जीते जी भगवान के घर में रहना क्या होता है?


🌺 भगवान का घर — एक प्रेरक प्रसंग 🌺

1. एक साधारण दोपहर की असाधारण भेंट

कल दोपहर मैं अपने कार्य से बैंक गया था। वहाँ एक वृद्ध सज्जन भी आए हुए थे। वे कुछ खोजते हुए-से इधर-उधर देख रहे थे।
उनके चेहरे पर हल्की असहायता और गंभीरता झलक रही थी।

मैंने सोचा — शायद उन्हें पेन चाहिए होगा।
मैं पास जाकर विनम्रता से बोला —

“बाबूजी, क्या आपको किसी सहायता की आवश्यकता है?”

वृद्ध ने नम्र स्वर में कहा —

“बेटा, बीमारी के कारण मेरे हाथ काँपते हैं। मुझे पैसे निकालने की स्लिप भरनी है, इसलिए देख रहा था कि कोई मदद कर दे तो अच्छा होगा।”

मैंने आदरपूर्वक कहा —

“यदि आप अनुमति दें तो मैं आपकी स्लिप भर दूँ?”

वे मुस्कुराए, बोले —

“बिलकुल बेटा, भगवान तुम्हें सुख दे।”

मैंने उनसे पूछ-पूछकर पूरी स्लिप सावधानीपूर्वक भर दी।
पैसे मिलने के बाद उन्होंने कहा —

“जरा गिन दोगे? हाथों में कंपकंपी है।”

मैंने पैसे गिनकर उन्हें ससम्मान लौटाए।
हम दोनों का काम लगभग एक ही समय समाप्त हुआ।

Bhagwan Ka Ghar – जीते जी भगवान के घर में रहना क्या होता है?
Bhagwan Ka Ghar – जीते जी भगवान के घर में रहना क्या होता है?


2. मार्ग में एक नई सीख

बैंक से बाहर निकलते समय वे बोले —

“माफ करना बेटा, एक और कष्ट देना पड़ेगा। ज़रा कोई रिक्शा करवा दो। इस दोपहर में रिक्शा मिलना कठिन होता है।”

मैंने मुस्कुराकर कहा —

“बाबूजी, मैं भी उसी दिशा में जा रहा हूँ। यदि आप अनुमति दें तो मैं आपको अपनी कार से घर छोड़ दूँ।”

वे पहले तो झिझके, फिर बोले —

“क्यों नहीं बेटा, चलो।”

रास्ते भर हम हल्की बातचीत करते रहे। उनके शब्दों में अनुभव की गहराई और आत्मीयता थी।

कुछ ही देर में हम उनके घर पहुँचे।


3. भगवान का घर

घर देखकर मैं क्षणभर ठहर गया —
वह घर नहीं, एक सुंदर, शांत और भव्य आलिशान बंगला था।
दरवाज़ा खोलने आईं उनकी वृद्ध पत्नी।
मुझे उनके साथ देखकर उनके चेहरे पर चिंता की एक रेखा उभरी।

वृद्ध सज्जन ने मुस्कुराते हुए कहा —

“अरे चिंता मत करना, यह सज्जन मुझे बैंक से छोड़ने आए हैं।”

थोड़ी देर बाद हम सभी बैठ गए। चाय आई, और बातचीत का क्रम आरंभ हुआ।

उन्होंने कहा —

“बेटा, हम दोनों पति-पत्नी ही यहाँ रहते हैं। हमारे बच्चे विदेश में हैं।”

फिर उन्होंने सहज भाव से कहा —

“यह भगवान का घर है।”

मैंने जिज्ञासापूर्वक पूछा —

“भगवान का घर? क्या कोई विशेष अर्थ है इसका?”

वे बोले —

“हाँ बेटा, हमारे परिवार में यह परंपरा रही है कि हम अपने घर को ‘भगवान का घर’ कहते हैं।
लोग कहते हैं — ‘यह हमारा घर है और इसमें भगवान रहते हैं।’
पर हम कहते हैं — ‘यह भगवान का घर है, और हम उसमें रहते हैं।’

मैं उनकी बात सुनकर गहरे विचार में पड़ गया।


4. दर्शन की गहराई

उन्होंने आगे कहा —

“देखो बेटा, जब हम यह मान लेते हैं कि यह घर भगवान का है, तो फिर इसमें कोई गलत कार्य, झूठ, छल, या अशुद्ध विचार प्रवेश ही नहीं कर पाता।
यह भावना हमें सतत सजग रखती है। हर क्रिया, हर व्यवहार में एक पवित्रता का भाव आ जाता है।”

फिर वे मुस्कुराए और बोले —

“लोग मृत्यु के बाद भगवान के घर जाते हैं,
और हम तो जीते-जी ही भगवान के घर में रह रहे हैं!”

उनकी यह बात मेरे हृदय में गहराई तक उतर गई।
मुझे लगा मानो यह कोई ईश्वरीय संदेश हो —
और शायद भगवान ने ही उस दिन मुझे उनके मार्ग में भेजा हो ताकि मैं यह दिव्य सीख पा सकूँ।


5. अंतःप्रेरणा

वहाँ से लौटते हुए मैं सोचता रहा —

“घर भगवान का, और हम उसमें रहने वाले।”

कितना सूक्ष्म और गहरा अर्थ है इसमें।
यदि हर व्यक्ति यह मान ले कि उसका घर भगवान का है,
तो फिर उस घर में कभी क्रोध, क्लेश, ईर्ष्या या असत्य टिक ही नहीं सकते।
वहाँ केवल शांति, प्रेम और दिव्यता का वास होगा।

सचमुच,

“जहाँ भगवान का घर हो —
वहाँ हर विचार पूजा बन जाता है,
हर कर्म आराधना,
और हर दिन प्रसाद।”


🌼 संदेश:

जीवन के इस छोटे-से प्रसंग ने यह सिखाया —
कि आस्था केवल मंदिरों में नहीं, हमारे आचरण में बसनी चाहिए।
यदि हम अपने घर को, अपने मन को, अपने कर्मक्षेत्र को “भगवान का” मान लें —
तो जीवन स्वयं भगवान के मंदिर में परिवर्तित हो जाता है।



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