राधाकृष्ण गतिर्मम स्तुति | Radha Krishna Gatirmam Stuti | The Divine Union of Love and Consciousness

Sooraj Krishna Shastri
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“राधाकृष्ण गतिर्मम स्तुति” प्रेम, भक्ति और चेतना के अद्वैत रहस्य को प्रकट करने वाली एक अद्भुत रचना है। इसमें आठ श्लोकों के माध्यम से श्रीराधा और श्रीकृष्ण के दिव्य संबंध का वर्णन किया गया है। प्रत्येक श्लोक यह दर्शाता है कि राधा और कृष्ण केवल युगल नहीं, बल्कि एक-दूसरे के प्राण, चित्त, और रस हैं। यह स्तुति भक्त को यह अनुभव कराती है कि जीवन का परम धन, गति और लक्ष्य केवल राधाकृष्ण ही हैं। वृन्दावन, जहाँ यह युगल अधिष्ठित हैं, प्रेम और दिव्यता का केंद्र है। इस लेख में प्रत्येक श्लोक का भावपूर्ण अनुवाद और व्याख्या दी गई है जिससे पाठक को राधाकृष्ण के प्रेम की अनुभूति आत्मा की गहराई तक होती है। यह स्तुति केवल काव्य नहीं — यह भक्ति की साधना और प्रेम का परम दर्शन है।

राधाकृष्ण गतिर्मम स्तुति | Radha Krishna Gatirmam Stuti | The Divine Union of Love and Consciousness


🌸 राधा-कृष्ण गतिर्मम स्तुति 🌸— राधा-कृष्ण के अद्वैत प्रेम का दिव्य उद्घोष —
राधाकृष्ण गतिर्मम स्तुति | Radha Krishna Gatirmam Stuti | The Divine Union of Love and Consciousness
राधाकृष्ण गतिर्मम स्तुति | Radha Krishna Gatirmam Stuti | The Divine Union of Love and Consciousness

भूमिका (परिचय)

“राधाकृष्ण गतिर्मम” स्तुति प्रेमयोग की परम अवस्था का काव्यात्मक प्रतीक है।
यह आठ श्लोकों का वह मधुर ग्रंथांश है जिसमें श्रीराधा और श्रीकृष्ण के दिव्य एकत्व, प्रेम और चैतन्य-संयोग का वर्णन हुआ है।
यह स्तुति यह स्पष्ट करती है कि राधा और कृष्ण कोई दो नहीं हैं — वे एक ही परम प्रेमतत्त्व के द्वैत स्वरूप हैं।
भक्त का जीवन, उसका धन और गति — सब कुछ इस युगल सरकार के चरणों में समर्पित है।


🪷 श्लोक १ — प्रेम का मूलस्वरूप

कृष्ण प्रेममयी राधा राधा प्रेममयो हरिः ।
जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्ण गतिर्मम ॥ १ ॥

भावार्थ —
श्री राधा प्रेम की मूर्तिमयी देवी हैं, और श्री कृष्ण उसी प्रेम के रसस्वरूप परमात्मा हैं।
मेरे जीवन का नित्य धन, लक्ष्य और शरण केवल श्री राधा-कृष्ण हैं।


🪷 श्लोक २ — परस्पर सम्पदा का रहस्य

कृष्णस्य द्रविणं राधा राधायाः द्रविणं हरिः ।
जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्ण गतिर्मम ॥ २ ॥

भावार्थ —
श्रीकृष्ण की सम्पदा श्रीराधा हैं, और श्रीराधा की सम्पत्ति श्रीकृष्ण हैं।
दोनों का अस्तित्व एक-दूसरे में विलीन है — यही भक्त के लिए परम धन है।


🪷 श्लोक ३ — प्राणसंयोग की अवस्था

कृष्ण प्राणमयी राधा राधा प्राणमयो हरिः ।
जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्ण गतिर्मम ॥ ३ ॥

भावार्थ —
श्रीराधा श्रीकृष्ण की प्राणस्वरूपा हैं और श्रीकृष्ण श्रीराधा के प्राण हैं।
भक्ति का यह वह बिंदु है जहाँ प्राण-चेतना स्वयं प्रेम का रूप ले लेती है।


🪷 श्लोक ४ — रस-परमानन्द का अनुभव

कृष्ण द्रवामयी राधा राधा द्रवामयो हरिः ।
जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्ण गतिर्मम ॥ ४ ॥

भावार्थ —
श्रीराधा श्रीकृष्ण के माधुर्य-रस में निमग्न हैं, और श्रीकृष्ण श्रीराधा के प्रेमरस में डूबे हैं।
दोनों की यह पारस्परिक द्रवता ही भक्ति-रस की परमावस्था है।


🪷 श्लोक ५ — नित्य-संयोग की स्थिति

कृष्णगेहे स्थितां राधा राधागेहे स्थितो हरिः ।
जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्ण गतिर्मम ॥ ५ ॥

भावार्थ —
श्रीकृष्ण सदैव राधा के साथ रहते हैं और राधा सदा कृष्ण के साथ।
उनका यह नित्य-संयोग ही सच्चे प्रेम की पराकाष्ठा है — जहाँ जुदाई का कोई स्थान नहीं।


🪷 श्लोक ६ — चित्त-संयोग का रहस्य

कृष्णचित्त स्थितां राधा राधाचित्त स्थितो हरिः ।
जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्ण गतिर्मम ॥ ६ ॥

भावार्थ —
श्रीराधा श्रीकृष्ण के चित्त में स्थित हैं और श्रीकृष्ण श्रीराधा के चित्त में।
यह वह स्थिति है जहाँ प्रेम केवल भाव नहीं, बल्कि स्वरूप-साक्षात्कार बन जाता है।


🪷 श्लोक ७ — रंग और स्वरूप की लीलामयी छवि

नीलाम्बर धरा राधा पीताम्बर धरो हरिः ।
जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्ण गतिर्मम ॥ ७ ॥

भावार्थ —
राधा नीलाम्बर धारण करती हैं और श्रीकृष्ण पीताम्बर।
नील और पीत का यह संयोग प्रेम और करुणा का प्रतीक है —
नील रंग भाव-गहराई का और पीत रंग दिव्यता का।


🪷 श्लोक ८ — वृन्दावन का ऐश्वर्य एवं प्रेम का केंद्र

वृन्दावनेश्वरी राधा कृष्णो वृन्दावनेश्वरः ।
जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्ण गतिर्मम ॥ ८ ॥

भावार्थ —
वृन्दावन की अधिष्ठात्री देवी श्रीराधा हैं, और उसी धाम के ईश्वर श्रीकृष्ण।
वृन्दावन वह प्रेमभूमि है जहाँ आत्मा और परमात्मा का संगम होता है।


🌼 समग्र भाव-सार (सारांश)

यह संपूर्ण स्तुति प्रेम के अद्वैत सिद्धांत की व्याख्या है।
यह बताती है कि राधा और कृष्ण दो देहों में एक आत्मा हैं,
और भक्त का परम पुरुषार्थ यही है कि उसका चित्त भी उसी युगल-चेतना में लीन हो जाए।

“राधाकृष्ण गतिर्मम” — यह केवल एक वाक्य नहीं,
बल्कि भक्ति का वह महामंत्र है जो साधक को संसार से उठाकर प्रेम-रस की पराकाष्ठा तक ले जाता है।



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