शोधप्रारूप(synopsis) कैसे बनाएँ ? how to create a research design?
जब हम अपने रिसर्च कार्य का प्रारम्भ करते है तो सबसे पहले शोध विषय(research topic) का चयन करते है । शोध विषय का निश्चय करने के तुरन्त बाद यह प्रश्न आता है कि इस शोधकार्य का प्रयोजन क्या है ? तथा कैसे इस शोध कार्य को पूर्ण करना है? यही तथ्य एक प्रक्रिया के द्वारा लिखित रूप में अपने गाइड और कमेटी के समक्ष प्रस्तुत करना होता है जिसे हम शोधप्रारूप या सिनॉप्सिस(synopsis) कहते हैं।
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| synopsis or research design |
शोधप्रारूप या सिनॉप्सिस(synopsis) का महत्व
शोधप्रारूप या सिनॉप्सिस(synopsis) सही ढंग से न प्रस्तुत करने के कारण वर्षों तक यहाँ-वहाँ भटकना पड़ता है तथा शोधकार्य पिछड़ता चला जाता है।दोस्तों यदि आपने शोधप्रारूप का निर्माण सही ढंग से कर लिया याकि एक बेहतर तरीके से चरणबद्ध शोधप्रारूप सिनॉप्सिस(synopsis) निर्मित कर ली तो यह कमेटी से शीघ्र ही पास हो जाता है । इसलिए कभी भी शोधप्रारूप का निर्माण चरणबद्ध तरीके से करें । शोधप्रारूप निर्माण के कुछ चरण निर्धारित किये गये हैं जिससे शोधप्रारूप बनकर तैयार होता है ।
शोधप्रारूप के 10 चरण(ten stages of research design)
1. परिचय पृष्ठ(introduction page)
2. प्रस्तावना(Preface)
3. औचित्य(justification)
4. प्रयोजन(purpuse of research)
5. प्राक्कल्पना(hypothesis)
6. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि(Historical background)
7. शोध सर्वेक्षण(research survey)
8. शोध प्रकृति(nature of research)
9. अध्याय विभाजन(chapter division)
10. सन्दर्भ-ग्रन्थ सूची(reference bibliography)
शोधप्रारूप या सिनॉप्सिस(synopsis) के यही दस चरण हैं जिससे शोधप्रारूप का निर्माण होता है । अब हम आगे विस्तार से चर्चा करेंगे ।
1. परिचय पृष्ठ(introduction page)
यह सिनॉप्सिस(synopsis) का पहला पेज(front page) होता है जिसमें निम्नलिखित सूचनाएँ देते हैं-
- युनिवर्सिटी का लोगो(logo) तथा युनिवर्सिटी का नाम(name of university)
- शोध-विषय(research topic)
- सत्र(year)
- शोधनिर्देशक/निर्देशिका (name of superviser or guide)
- अपना नाम(your name)
2. प्रस्तावना(Preface)
प्रस्तावना वह भाग होता है जिसमें अपने शोध शीर्षक के विषय में सामान्य जानकारी देनी पड़ती है । एक तरह से यह आपके शीर्षक का सामान्य परिचय होता है । प्रस्तावना बहुत लम्बी नहीं होनी चाहिए । एक-एक शब्द को अच्छी तरह से जाँच-परखकर रखना चाहिए । प्रस्तावना में 300 से 500 शब्द होने चाहिए । आवश्यकतानुसार इसे घटाया बढ़ाया जा सकता है । परन्तु ध्यान रहे प्रस्तावना में व्यर्थ बातें नहीं भरनी चाहिए । जो आवश्यक बातें हो वही इस भाग में लिखें ।
3. औचित्य(justification)
आप जिस शीर्षक पर कार्य करने जा रहे हैं उस शीर्षक का औचित्य क्या है ? इसके बारे में यहाँ लिखना होता है। औचित्य का आशय यह है कि जिस विषय का आपने चयन किया है उस पर शोधकार्य करने की आवश्यकता क्या है । आपके इस शोधकार्य के करने से कौन-कौन सी नई बातें निकलकर आएंगी जिसके बारे में जानना जरूरी है। कभी-कभी हमें लगता है कि औचित्य और प्रयोजन एक ही बात है पर ऐसा नहीं है, इसमें अन्तर है । औचित्य भाग में केवल आपके शोध कार्य की आवश्यकता से सम्बन्धित बातों का जिक्र होता है जबकि प्रयोजन भाग में शोधकार्य के फल या परिणाम की जानकारी दी जाती है। अतः इन दोनों का अन्तर समझकर पृथक-पृथक जानकारी लिखनी चाहिए । इस भाग में यह भी बताना होता है कि इस विषय पर कितना कार्य हुआ है और क्या बाकी है । जो भाग शेष है उसकी भी पूर्ण जानकारी इसमें लिखनी चाहिए । क्योंकि कभी-कभी ऐसा भी होता है कि जिस विषय पर आप कार्य करने जा रहे हैं उस पर कार्य हुआ होता है परन्तु आपको लगता है कि नहीं यह कार्य अभी पूर्ण नहीं है , इसमें इतना भाग बचा है जिस पर शोधकार्य होना चाहिए। इसी बात की जानकारी इस भाग में देनी पड़ती है ।
4. प्रयोजन(Purpose of research)
आपके शोधकार्य का कोई न कोई प्रयोजन होना चाहिए । जैसा कि कहा गया है -
प्रयोजनमनुद्दिश्य मन्दोपि न प्रवर्तते॥
अतः आपके शोधशीर्षक में एक अच्छा परिणाम, फल या प्रयोजन छुपा होना चाहिए । बिना प्रयोजन के शोध शीर्षक का चयन नहीं करना चाहिए । इस भाग में यह लिखना होता है कि आपने जो शोध शीर्षक चुना है उसका प्रयोजन क्या है ? इस शोधकार्य का परिणाम क्या होगा ? इसका जिक्र इस भाग में करना चाहिए । ध्यान रहे आपके शोध शीर्षक के विस्तार के आधार पर ही प्रयोजन का निश्चय करना चाहिए । ऐसा न हो कि जो प्रयोजन आप दिखा रहे हों वहाँ तक आपके शोध शीर्षक की पहुँच ही न हो । जैसे आपने किसी एक साहित्यिक पुस्तक पर शोधकार्य आरम्भ किया तथा प्रयोजन में लिखा कि इस शोधकार्य से सम्पूर्ण साहित्य जगत् का कल्याण होगा । यह गलत है । साहित्य जगत् बहु-विस्तृत शब्द है । एक पुस्तक पर किया गया कार्य समग्र साहित्य का कल्याण नहीं कर सकता अतः आपके द्वारा दिखाया गया यह प्रयोजन निरर्थक है । इस विषय का सही प्रयोजन यह है कि प्रस्तुत पुस्तक पर शोध कार्य करने से इस पुस्तक से सम्बन्धित तथ्य अध्येताओं के सम्मुख आयेंगे तथा इस पुस्तक के महत्त्व का आकलन हो सकेगा । अब आप समझ गये होंगे कि इस भाग में हमें क्या दर्शाना है । शोध शीर्षक के अनुरूप शोधकार्य का फल भी होना चाहिए ।
5. प्राक्कल्पना(hypothesis)
शोध प्रारूप का यह भी बहुत महत्त्वपूर्ण भाग है । प्राक्कल्पना का अर्थ होता है पूर्व में कल्पना करना । अपने शोध शीर्षक के विषय में हम यह बताते हैं कि यह शोधकार्य किस प्रकार से अपने मूलभूत विषय का उपस्थापन करेगा अथवा इस विषय पर हमारे शोधकार्य से किस प्रकार के प्रतिफल के आने की सम्भावना है । इस बात का वर्णन भी इस शोधप्रारूप में करना पड़ता है ।research design
6. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि(Historical background)
इस भाग में यह लिखना होता है कि आपके शोध-शीर्षक की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि क्या है ? इस शीर्षक से सम्बन्धित तथ्यों का इतिहास क्या रहा है ? आपके शीर्षक को प्रभावित करने वाले कैसे-कैसे ग्रन्थ या कैसी-कैसी साहित्यिक सामग्री पूर्वकाल से ही उपलब्ध है अथवा प्राचीनकाल में आपके शोधविषय का प्रारूप क्या था ? इस भाग में शोध शीर्षक का ऐतिहासिक विवरण देना चाहिए । research design
7. शोध-सर्वेक्षण(research survey)
शोधप्रारूप का यह भाग अतीव महत्त्वपूर्ण होता है । आपने कोई भी शोध शीर्षक चुन तो लिया, शोध प्रारूप भी बना लिया , सब कुछ निश्चित हो गया कि इसी शोध विषय पर हमें कार्य करना है परन्तु बाद में कमेटी में जाकर खारिज हो गया तथा पत्र में लिखकर आ गया कि जिस विषय पर आप शोधकार्य करने जा रहे हैं उस विषय पर तो कार्य हो चुका है । तब आपका मुंह देखने लायक होता है । तो यह घटना आपके साथ घटे इससे पूर्व ही यह निरीक्षण कर लें कि जिस विषय का आपने चुनाव किया है वह अकर्तृक है अर्थात् उस पर किसी ने शोध कार्य नहीं किया है । अपने शोध प्रारूप के इस भाग में आप यही बताएंगे कि जिस विषय पर मैं शोध कार्य करने जा रहा हूँ उस विषय पर मेरे संज्ञान में कोई शोधकार्य नहीं हुआ है । इसका सर्वेक्षण हमने कर लिया है तथा यह शोध शीर्षक शोधकार्य हेतु अर्ह है ।research design
8. शोध-प्रकृति(nature of research)
इस भाग में आप यह बताते हैं कि आपने अपने शोधकार्य में किस विधि या किस शोध पद्धति का इस्तेमाल किया है । आपके शोध की प्रकृति क्या है ? इस विषय में आप निश्चय करते हैं कि हमने शोधकार्य की परिपूर्णता एवं स्पष्टता हेतु किन-किन विधियों का समावेश किया है । यह प्रकृति अनेक प्रकार की हो सकती है । शोधकार्य में कहीं तुलनात्मक, कहीं विश्लेषणात्मक या कहीं विमर्शात्मक या कहीं-कहीं अन्यान्य शोध-प्रविधियों का प्रयोग किया जाता है । इन्हीं विषयों की सम्भावना प्रस्तुत भाग में करनी चाहिए ।research design
शोध-प्रविधियों की जानकारी के लिए देखें- शोध-प्रविधियाँ ।
9. अध्याय-विभाजन(chapter division)
इस भाग में आप अपने शोधकार्य का प्रबन्ध भाग दर्शाने हेतु अध्याय विभाजन करते हैं । आपके शोध- प्रबन्ध के अध्यायों का प्रारूप कैसा रहेगा उन बातों का विवरण आप इस भाग में लिखेंगे । आपके शोध प्रबन्ध में 5,6,7,8,9, या 10 कितने अध्याय होंगे इसका स्पष्ट उल्लेख यहां होना चाहिए । research design
अध्याय विभाजन में ध्यातव्य बातें-
- अध्यायों की संख्या आपके शोध प्रबन्ध के अनुरूप होनी चाहिए ।
- फालतू अध्याय न जोड़ें जिसका आपके शोध प्रबन्ध में कोई महत्त्व न हो ।
- अध्यायों में विशिष्ट तथ्यों से सम्बन्धित सब-टाइटल(sub-title) का प्रयोग करें ।जैसे-
अध्याय.1 के अन्तर्गत 1.1,1.2,1.3,...आदि या(क),(ख),(ग)... इत्यादि ।
- अध्याय विभाजन में सर्वप्रथम भूमिका फिर अध्यायों का क्रम पुनः उपसंहार अन्त में परिशिष्ट की योजना करनी चाहिए । research design
10. सन्दर्भ ग्रन्थ सूची(reference bibliography)
शोध प्रारूप का यह अन्तिम भाग है । इस भाग में आपके शोध विषय में प्रयुक्त ग्रन्थों की जानकारी यहाँ देनी पड़ती है । सन्दर्भ ग्रन्थ सूची में ग्रन्थ के लेखक, रचयिता या सम्पादक का नाम, ग्रन्थ का नाम या शीर्षक, प्रकाशक का नाम , प्रकाशन स्थल , संस्करण एवं वर्ष का क्रमशः उल्लेख करना चाहिए । पत्र-पत्रिकाओं या इन्टरनेट की भी यदि सहायता ली गई है तो इसका भी उल्लेख आप यहाँ कर सकते हैं ।research design
सबसे अन्त में नीचे बाएँ दिनाङ्क एवं स्थान का सङ्केत करना चाहिए तत्पश्चात् उसके नीचे बाँए ही साइड मार्गदर्शक का नाम एवं दायें अपना नाम एवं हस्ताक्षर अङ्कित करना चाहिए ।
हमें आशा है आपको यह लेख पसन्द आयेगा । आपको यह लेख कैसा लगा इसके बारे में कमेन्ट बॉक्स में लिखकर हमें प्रेषित करें । यदि सम्बन्धित विषय में किसी प्रकार की आशंका है तो भी कॉमेन्ट करके अवश्य सूचित करें । research design
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महादय: शोधप्रारूपस्य उत्तमम् रित्याम् विवरणं दत्तवान्। शोधर्थि कृत्ते उपयोगि भवेत्।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, यदि आप सभी के काम आ सकूँ तो स्वयं को सफल मानूँगा। यदि आप इससे लाभान्वित हुए हों तो और मित्रों को भी प्रेरित करें ।
जवाब देंहटाएंThank you sir ek synopsis bhej dijiye koi ho apke pass toh
हटाएंKoi AK synopsis bhejen sir
जवाब देंहटाएंok
हटाएंThanks Sir 🙏
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा विवरण। इस सम्बन्ध में आपसे सम्पर्क किया जा सकता है?
जवाब देंहटाएंजी हाँ हमसे सम्पर्क करने के लिए हमारे ईमेल आईडी soorajkuti@gmail.com या फोन नंबर 7376572355 पर सम्पर्क कर सकते हैं
हटाएंधन्यवाद 🙏🙏
बहुत बहुत धन्यवाद सर आपने एक एक चरण को बेहतर ढंग से समझाया हैं 🙏🙏
जवाब देंहटाएंधन्यवाद भाई 🙏🙏
हटाएंBahut hi sundar prasentation sir..
जवाब देंहटाएंThank you🙏
जवाब देंहटाएंBabu ki sundar lekh dhanyavad
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर जानकारी
जवाब देंहटाएंThank you for giving this a beautiful information for synopsis of PhD
जवाब देंहटाएंअतिउत्तम प्रस्तुति एवं बहुपयोगी लेख
जवाब देंहटाएंIt's very useful and helpful for my synopsis 🙏
जवाब देंहटाएंThank you🙏🙏
हटाएंSir readymade शोधप्रारूप Ka pdf mil Sakta h 5 September last date
जवाब देंहटाएंThanks for sharing
जवाब देंहटाएंvery informative post for research. thanks for shering
जवाब देंहटाएंBharat mein madhyamik Shiksha ki samasya per shodh
जवाब देंहटाएंBahut suder
जवाब देंहटाएंImportant update for research modul..thanks for shering
जवाब देंहटाएंwhats a kind of shodh prarup ?
जवाब देंहटाएंeffective post
जवाब देंहटाएंThanks sir🙏
जवाब देंहटाएंbahut hi sarahniya
जवाब देंहटाएंati sarahniya...thanks for shering
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