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संस्कृत श्लोक: "समदोष: समाग्निश्च समधातु मलक्रिय:" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद |
संस्कृत श्लोक: "समदोष: समाग्निश्च समधातु मलक्रिय:" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद
🙏 जय श्री राम! सुप्रभातम्!
प्रस्तुत श्लोक आयुर्वेद के मूल सिद्धांतों का सार है – यह चरक संहिता से लिया गया प्रसिद्ध श्लोक है, जो स्वास्थ्य की परिभाषा को सम्पूर्णता से व्यक्त करता है।
श्लोक (चरक संहिता सूत्रस्थान 1.41)
समदोष: समाग्निश्च समधातु मलक्रिय:।
प्रसन्नात्मेन्द्रियमना: स्वस्थ इत्यभिधीयते॥
शाब्दिक विश्लेषण (पदविच्छेद):
- सम-दोषः – वात, पित्त, कफ का संतुलन
- सम-अग्निः – पाचन अग्नि का संतुलन
- सम-धातु-मल-क्रियः – शरीर की सात धातुओं और मल की क्रियाओं का संतुलन
- प्रसन्न-आत्म-इन्द्रिय-मनाः – मन, इन्द्रियाँ और आत्मा की प्रसन्नता
- स्वस्थः – वह व्यक्ति
- इति अभिधीयते – ऐसा कहा जाता है
हिंदी भावार्थ:
जिस व्यक्ति के शरीर में त्रिदोष (वात, पित्त, कफ) संतुलित हों, पाचन अग्नि (जठराग्नि) ठीक हो, सात धातुएँ (रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, शुक्र) और मल (मूत्र, विष्ठा, स्वेद) की क्रियाएँ व्यवस्थित हों, तथा आत्मा, मन और इन्द्रियाँ प्रसन्न हों – वही व्यक्ति ‘स्वस्थ’ कहलाता है।
आधुनिक सन्दर्भ में व्याख्या:
यह श्लोक केवल शारीरिक स्वास्थ्य तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समग्र स्वास्थ्य (Holistic Health) की अवधारणा प्रस्तुत करता है:
- शारीरिक संतुलन (दोष, अग्नि, धातु, मल)
- मानसिक संतुलन (मन की प्रसन्नता)
- आध्यात्मिक संतुलन (आत्मा की संतुष्टि)
नीति-संदेश:
- केवल रोग का अभाव ही स्वास्थ्य नहीं है, अपितु संतुलन और प्रसन्नता का समन्वय ही सच्चा स्वास्थ्य है।
- आयुर्वेद में स्वास्थ्य एक सक्रिय स्थिति है – जिसका ध्यान भोजन, आहार, दिनचर्या, मानसिक अनुशासन और आत्मिक साधना से रखा जाता है।
तुलनात्मक दृष्टिकोण:
आधुनिक चिकित्सा जहाँ रोग-निवारण पर केंद्रित है, वहीं आयुर्वेद स्वास्थ्य-संवर्धन और रोग-प्रतिबंधन की ओर अग्रसर करता है।
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