विश्वावसु-वेदपाद-स्तवः स्तोत्र की व्याख्या भावार्थ, विश्लेषण

Sooraj Krishna Shastri
By -

स्तोत्र: "विश्वावसु-वेदपाद-स्तवः" स्तोत्र की  व्याख्या, भावार्थ और विश्लेषण के साथ

"विश्वावसु-वेदपाद-स्तवः" अत्यंत भावपूर्ण, वैदिक सन्दर्भों से अनुप्राणित एवं राष्ट्रोन्मुख चिंतन से युक्त स्तोत्र है। इसमें विभिन्न वैदिक स्रोतों (तैत्तिरीय संहिता, तैत्तिरीय आरण्यक, कठोपनिषद) से श्लोकों को सृजनात्मक संशोधन के साथ समसामयिक, सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक उद्देश्यों से जोड़ा है।

स्तोत्र: "विश्वावसु-वेदपाद-स्तवः" स्तोत्र की व्याख्या, भावार्थ और विश्लेषण के साथ


स्तोत्र: "विश्वावसु-वेदपाद-स्तवः" स्तोत्र की व्याख्या, भावार्थ और विश्लेषण के साथ

नीचे मैं प्रस्तुत स्तोत्र की क्रमशः संक्षिप्त व्याख्या सहित भावार्थ और विश्लेषण के साथ  प्रस्तुत कर रहा हूँ, जिससे इसके गूढ़ अर्थों और समष्टिगत दृष्टिकोण की स्पष्टता हो सके —


1.

श्लोक:

विश्वेषां वसु यस्मात् सः कालः संवत्सरात्मकः।
समृद्धः सुखदो भूयात् योगक्षेमस्तु कल्पताम् ॥1॥

भावार्थ:
वह काल जो सभी को संपत्ति (वसु) देता है, जो एक पूर्ण संवत्सर का स्वरूप है — वह काल समृद्धि और सुख देने वाला हो, तथा हमारे लिए योग (प्राप्ति) और क्षेम (संरक्षण) की स्थिति की सृष्टि करे।

वैदिक आशय:
यह श्लोक तैत्तिरीय संहिता की "योगक्षेमो नः" भावना को रूपांतरित करके प्रस्तुत करता है, जो जीवन की भौतिक और आध्यात्मिक पूर्णता की कामना करता है।


2.

श्लोक:

विश्वं वसु तु यस्य स्यात् स चस्मिन् शुभदायने।
सङ्कोचेन विना दद्यत् दाता ददातु नो रयिः ॥10॥

भावार्थ:
जिसके पास समस्त विश्व की संपत्ति है, वह दाता इस शुभ समय में संकोच के बिना दान करे और हमें रयि (संपदा) प्रदान करे।

वैदिक आशय:
यह श्लोक "धाता" (दाता) से सम्बंधित तैत्तिरीय संहिता के श्लोक का रूपांतर है जो उदारता, निर्लोभता और दिव्य धन-प्राप्ति की प्रार्थना है।


3.

श्लोक:

गीतवादित्रकुशलः गन्धर्वगणसंस्थितः।
कालेऽस्मिन् तोषयेद्गीताः विश्वावसुरभि प्रियः ॥3॥

भावार्थ:
जो गान, वाद्य और संगीत में निपुण है, जो गन्धर्वों के मध्य स्थित है — वह प्रिय विश्वावसु इस काल में मधुर गीतों से हमें संतोष प्रदान करे।

वैदिक आशय:
यह श्लोक तैत्तिरीय आरण्यक की उस भावना से जुड़ता है जहाँ विश्वावसु एक दिव्य संगीतज्ञ हैं। यह नववर्ष या किसी विशिष्ट काल के सांस्कृतिक, सौंदर्यात्मक प्रारम्भ की शुभकामना जैसा है।


4.

श्लोक:

वसु विश्वस्य यत् सर्वम् अब्देऽस्मिन् भारतं विशेत् ।
तदर्थं यत्नमस्थातुं वयं राष्ट्रे जागृयाम् ॥4॥

भावार्थ:
इस वर्ष सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की संपदा भारत में प्रवेश करे। इसके लिए हम स्वयं को यत्नपूर्वक समर्पित करें और राष्ट्र-सेवा में जागरूक रहें।

वैदिक आशय:
यह श्लोक राष्ट्रचेतना से अनुप्राणित है और तैत्तिरीय संहिता के मंत्रों से प्रेरित है जो "सम्पत्ति" और "राष्ट्र कल्याण" की कामना करते हैं। यह आधुनिक "राष्ट्र निर्माण में सहभागिता" की पुकार है।


5.

श्लोक:

नाल्पकेऽस्ति सुखं यस्मात् भूमा विश्वावसुर्भवेत्।
भूमा ब्रह्म न संस्थितः अत्र ब्रह्म समश्नुयात्॥5॥

भावार्थ:
सुख सदा सीमित में नहीं होता, पूर्णता में ही है — और वही पूर्णता (भूमा) विश्वावसु है। यह पूर्णता ही ब्रह्म है; अतः इस वर्ष में हम ब्रह्म की अनुभूति प्राप्त करें।

वैदिक/उपनिषदीय आशय:
यह कठोपनिषद के प्रसिद्ध श्लोक "नाल्पे सुखं अस्ति, भूमा एव सुखं" का मुक्त रूपांतरण है। "विश्वावसु" को ब्रह्म की पूर्णता का प्रतीक बनाकर एक सुंदर दार्शनिक अन्तर्दृष्टि प्रस्तुत की गई है।


🔶 संक्षिप्त विश्लेषण:

क्रम तत्व प्रकार
1 समय की समृद्धि काल-दर्शन
2 उदारता और दान ईश्वरीय कृपा
3 संगीत एवं सौंदर्य सांस्कृतिक आयाम
4 राष्ट्र और कर्म देशभक्ति
5 ब्रह्मानुभूति आध्यात्मिक दर्शन

🌺 विश्वावसु-वेदपाद-स्तवः पर विश्लेषणात्मक विमर्श 🌺

(वैदिक सन्दर्भ, सांस्कृतिक संलयन और समकालीन प्रासंगिकता)


🔷 1. नाम का संकेत और संरचना

"विश्वावसु-वेदपाद-स्तवः" — यह नाम अपने आप में ही एक विशिष्ट दार्शनिक और सांस्कृतिक गर्भ लेकर आता है।

  • "विश्वावसु" गन्धर्वों में एक महान गायक माने जाते हैं, जिनका उल्लेख वैदिक और उपनिषद् साहित्य में दिव्य संगीतज्ञ के रूप में होता है।

  • "वेदपाद" — अर्थात् वैदिक पदों पर आधारित।

  • "स्तवः" — स्तुति, प्रार्थना या स्तवन।

इस स्तोत्र की वास्तव में वैदिक पदों की प्रेरणा से सृजित एक आधुनिक-रचनात्मक स्तुति है, जिसमें भाव की वैदिक गहराई और अभिव्यक्ति की समसामयिकता का सुंदर समन्वय है।


🔷 2. वैदिक मूल और भाषिक प्रयोग

इस स्तोत्र की रचना में जिन वैदिक स्रोतों से प्रेरणा ली गई है, वे हैं —

  • तैत्तिरीय संहिता

  • तैत्तिरीय आरण्यक

  • कठोपनिषद

रचनाकार ने इन वैदिक श्लोकों की भाषा, पदावली और भावों को थोड़े संशोधनों के साथ आधुनिक राष्ट्रधर्म, सांस्कृतिक चेतना और ब्रह्मज्ञान के केंद्र में रखकर प्रस्तुत किया है।
यह एक मुक्तानुवाद या रचनात्मक रूपांतरण (creative reinterpretation) का उत्कृष्ट उदाहरण है।


🔷 3. प्रमुख भावधाराएँ और विषयवस्तु

1️⃣ काल-चेतना और समृद्धि की कामना

"कालः संवत्सरात्मकः… समृद्धः सुखदो भूयात्…"
यहाँ "काल" को केवल समय नहीं, बल्कि धनदायक संवत्सर, शुभ ऊर्जा से परिपूर्ण शक्ति के रूप में चित्रित किया गया है।

2️⃣ दान और उदारता की संस्कृति

"दाता ददातु नो रयिः…"
यह विचार वैदिक यज्ञीय भावना से जुड़ा है — संकोच से नहीं, मुक्त हस्त से देना ही ईश्वरीय गुण है

3️⃣ संगीत और सौंदर्य चेतना

"गीतवादित्रकुशलः… विश्वावसुरभि प्रियः…"
यह श्लोक जीवन की सौंदर्योपासना और संगीत से मनोबल की ओर संकेत करता है। आध्यात्मिक संगीत का आत्मशुद्धि से गहरा संबंध रहा है।

4️⃣ राष्ट्रधर्म और पुरुषार्थ

"वयं राष्ट्रे जागृयाम्…"
यह वैदिक राष्ट्रवाद की उद्घोषणा है — "स्वधर्म और राष्ट्रधर्म एक दूसरे के पूरक हैं" की उद्घोषणा।

5️⃣ भूमा-ब्रह्म-दर्शन की उपलब्धि

"भूमा ब्रह्म न संस्थितः…"
यह दर्शन कठोपनिषद से प्रेरित है, जहाँ यह कहा गया है कि पूर्णता (भूमा) में ही सुख है, सीमित में नहीं।
यह श्लोक जीवन के आध्यात्मिक उत्कर्ष की ओर संकेत करता है।


🔷 4. समकालीन सन्दर्भ में प्रासंगिकता

यह स्तोत्र केवल वैदिक श्लोकों का संकलन नहीं है, बल्कि इसमें आधुनिक भारत, समृद्ध राष्ट्र, सांस्कृतिक पुनर्जागरण और आध्यात्मिक उन्नयन की स्पष्ट प्रतिध्वनि है।

  • नववर्ष या नव संवत्सर पर इस स्तोत्र का प्रयोग समाज को संस्कार, पुरुषार्थ, संगीत, राष्ट्रसेवा और ब्रह्मज्ञान की प्रेरणा दे सकता है।

  • यह शिक्षा-संस्थानों में 'संवेदना-चिंतन' के केंद्र के रूप में प्रयुक्त हो सकता है।

  • विविध आयोजनों में "काल स्तवन" या "राष्ट्रिक स्तुति" के रूप में प्रस्तुत हो सकता है।


🔷 5. काव्यशिल्प और सांस्कृतिक सौंदर्य

  • प्रत्येक श्लोक में अनुष्टुप छन्द या उसकी छायायुक्त लय है।

  • "वसु", "विश्व", "भूमा", "रयिः", "योगक्षेम" जैसे पदों का बारंबार प्रयोग वैदिक संस्कार की पुनःस्थापना करता है।

  • "संकोचेन विना दद्यत्" — यह वैदिक नीतिधर्म का अत्यंत महत्वपूर्ण कथन है जो स्वार्थत्याग की शिक्षा देता है।


🔷 6. निष्कर्ष : एक वैदिक नवोन्मेष

"विश्वावसु-वेदपाद-स्तवः" — एक ऐसा स्तोत्र है जो वैदिक ज्ञान परम्परा, सांस्कृतिक संवेदना और आधुनिक राष्ट्रीय चेतना — इन तीनों को एक सूत्र में बाँधता है।

यह स्तोत्र निम्न बातों का आह्वान करता है:

  • समय का सही उपयोग

  • समृद्धि के साथ साझा करने की प्रवृत्ति

  • सौंदर्य के प्रति जागरूकता

  • राष्ट्र के लिए पुरुषार्थ

  • ब्रह्म की ओर उन्नयन

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!