संस्कृत श्लोक "नोदन्वानर्थितामेति सदाम्भोभिः प्रपूर्यते" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण
🌞 🙏 जय श्रीराम 🌷 सुप्रभातम् 🙏
आज का श्लोक स्वाभिमान, आत्मविकास और पात्रता का गूढ़ संदेश देता है। यह श्लोक हमें सिखाता है कि याचना नहीं, आत्मसाधना द्वारा ही संपत्ति, यश और सफलता को प्राप्त किया जा सकता है। यह नीति-सूक्ति आत्मनिर्भरता की उत्कृष्ट प्रेरणा है।
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संस्कृत श्लोक "नोदन्वानर्थितामेति सदाम्भोभिः प्रपूर्यते" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण |
✨ श्लोक ✨
नोदन्वानर्थितामेति सदाम्भोभिः प्रपूर्यते ।आत्मा तु पात्रतां नेयः पात्रमायान्ति सम्पदः ॥
no danvān arthitām eti sadāmbhobhiḥ prapūryate ।ātmā tu pātratāṁ neyaḥ pātram āyānti sampadaḥ ॥
🔍 शब्दार्थ / व्याकरणीय विश्लेषण:
पद | अर्थ | व्याकरणिक टिप्पणी |
---|---|---|
न उदन्वान् | समुद्र (जल-राशि) नहीं | “उदन्वान्” = जलधि, समुद्र |
अर्थिताम् | याचना / याचक अवस्था | अर्थ् + क्तिताच |
एति | प्राप्त करता है | लट् लकार |
सदा अम्भोभिः प्रपूर्यते | सदा जलों से भरता है | “प्रपूर्यते” = भर दिया जाता है (कर्मणि प्रयोग) |
आत्मा | आत्मा / व्यक्ति स्वयं | प्रथमा एकवचन |
तु | परन्तु | अव्यय |
पात्रतां नेयः | योग्य बनाना चाहिए | “नेयः” = ले जाना चाहिए, विधिलिङ् |
पात्रम् | योग्य पात्र | नपुंसकलिंग |
आयान्ति | आती हैं | लट् लकार |
सम्पदः | सम्पत्तियाँ | स्त्रीलिंग बहुवचन |
🪷 भावार्थ:
"समुद्र कभी भी याचक नहीं बनता, फिर भी वह नदियों के जल से हमेशा भरा रहता है।
इसलिए मनुष्य को भी स्वयं को योग्य बनाना चाहिए।
जब व्यक्ति पात्र बनता है, तभी सम्पत्तियाँ (सफलताएँ, सम्मान आदि) उसके पास स्वतः आती हैं।"
🌿 प्रेरणादायक दृष्टांत: “पात्रता का मूल्य” 🌿
एक बालक गुरु से बोला –
“गुरुदेव, मैं धन चाहता हूँ, सम्मान चाहता हूँ, ज्ञान चाहता हूँ।”
गुरु ने मुस्कुराकर एक मिट्टी का पात्र दिया और बोले:
“जा इसे सोने से भरवा लाओ।”
बालक भागा-भागा बाजार गया, सबने मना कर दिया।
वह लौटा और बोला:
“कोई इस मिट्टी के पात्र को भरने को तैयार नहीं हुआ।”
गुरु बोले:
“बिलकुल सही। जब तक पात्र मजबूत, साफ और मूल्यवान नहीं होगा,कोई उसमें कुछ नहीं डालेगा।
ऐसे ही जीवन भी एक पात्र है —अगर तुम स्वयं को योग्य नहीं बनाओगे, तो दुनिया तुम्हें भरने क्यों आएगी?”
🌟 शिक्षा / प्रेरणा:
- स्वाभिमान आत्मबल की पहली सीढ़ी है।
- सच्चा पुरुषार्थ याचना से बड़ा होता है।
- नदी स्वयं बहकर समुद्र को भरती है, क्योंकि समुद्र गहराई और धैर्य से युक्त होता है।
- जो अपने भीतर मूल्य बढ़ाता है, बाह्य सम्पत्ति उसी के पास आती है।
- सम्पत्ति, यश, सम्मान, सब उसी के पीछे भागते हैं — जो पात्र बन जाता है।
🕯️ मनन योग्य पंक्ति:
"याचना करने से नहीं,योग्यता बढ़ाने से सम्पत्ति आती है।"