संस्कृत श्लोक: "असहायः पुमानेकः कार्यान्तं नाधिगच्छति" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद
🙏 जय श्रीराम 🌹सुप्रभातम् 🙏
प्रस्तुत नीति श्लोक अत्यंत मार्मिक और व्यावहारिक है, जो सहयोग की अनिवार्यता और स्वाभाविक सीमाओं को उजागर करता है। आइए इसका हम क्रमशः — हिन्दी अनुवाद, शाब्दिक विश्लेषण, व्याकरणिक पक्ष, भावार्थ, और आधुनिक संदर्भ में विस्तृत विवेचन करें:
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संस्कृत श्लोक: "असहायः पुमानेकः कार्यान्तं नाधिगच्छति" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद |
📜 मूल श्लोक
असहायः पुमानेकः कार्यान्तं नाधिगच्छति।तुषेणापि विनिर्मुक्तः तण्डुलो न प्ररोहति॥
🧾 1. शाब्दिक विश्लेषण
पद | अर्थ |
---|---|
असहायः | सहायता रहित, अकेला |
पुमान् | पुरुष, मनुष्य |
एकः | अकेला |
कार्यान्तम् | कार्य की पूर्णता तक, कार्य का अंतिम लक्ष्य |
न अधिगच्छति | नहीं प्राप्त करता |
तुषेणापि | तुष (धान का बाहरी छिलका) से |
विनिर्मुक्तः | मुक्त (छुटा हुआ), रहित |
तण्डुलः | चावल का दाना |
न प्ररोहति | अंकुरित नहीं होता, उगता नहीं है |
🔤 2. व्याकरणिक विवेचन
- पुमान्, तण्डुलः – पुल्लिंग, एकवचन, कर्ता।
- कार्यान्तम् – कार्यम् + अन्तम् = कार्य की पूर्णता (द्वितीया विभक्ति)।
- प्ररोहति – √रुह् (उगना) धातु से वर्तमानकाल, प्रथम पुरुष, एकवचन।
- विनिर्मुक्तः – वि + नि + मुच् + क्त (पिछला क्रियापद), कृदन्त विशेषण।
🧠 3. भावार्थ
- कोई भी व्यक्ति यदि अकेला और असहाय है, तो वह कार्य की पूर्णता तक नहीं पहुँच सकता।
- जैसे छिलका हटे हुए चावल का दाना भी अंकुरित नहीं होता, वैसे ही मनुष्य बिना सहायता और संरचना के फलित नहीं हो सकता।
❝सहयोग और संरचना जीवन में उन्नति के बीज हैं।❞
🪷 4. सांकेतिक दृष्टि
यह श्लोक प्रकृति के नियम और समाज-निर्माण दोनों को इंगित करता है:
प्रतीक | तात्पर्य |
---|---|
तण्डुलः | योग्यता या मनुष्य |
तुष | सहयोग, पोषण, परिस्थितियाँ |
प्ररोहण | विकास, सफलता |
तुष (छिलका) भले ही कठोर लगे, पर वही बीज की सुरक्षा और उगने की क्षमता में सहायक है।
🧘♂️ 5. सामाजिक-सांस्कृतिक सन्दर्भ
- मनुष्य स्वभावतः सामाजिक प्राणी है। अकेले होने पर उसकी शक्ति सीमित हो जाती है।
- शिक्षा, समाज, मित्र, गुरु — ये सभी तुष (संरक्षणात्मक ढाँचे) हैं जो विकास के लिए अनिवार्य हैं।
- आत्मनिर्भरता आवश्यक है, परंतु संपर्कहीनता नहीं।
🌐 6. आधुनिक संदर्भ
आज की "Do-it-yourself" संस्कृति में भी यह श्लोक अत्यंत प्रासंगिक है:
स्थिति | परिणाम |
---|---|
विद्यार्थी को बिना मार्गदर्शन पढ़ना | उलझन, भ्रम |
कर्मचारी को बिना संसाधन काम | असफलता |
नेता को बिना दल | दिशा-हीनता |
बीज को बिना भूमि, जल, सूर्य | निष्फलता |
सीख: स्वतंत्रता को सहयोग से सज्जित करना ही विवेक है।
🧑🏫 7. नीति-कथा दृष्टांत
एक चावल का बीज बोया गया।
यदि वह छिलके से रहित हो, तो चाहे आप उसे श्रेष्ठ मिट्टी में डालें — वह अंकुरित नहीं होगा।
क्यों?
क्योंकि बीज की आत्म-संरक्षा और अंकुरण शक्ति उसी 'छिलके' में निहित है।
मनुष्य भी ऐसा ही है — योग्यता अकेले पर्याप्त नहीं है, उसे संरचना, सहयोग, और परिस्थिति की आवश्यकता है।
📌 8. सार-सूत्र
"सहायता रहित पुरुष चाहे जितना भी श्रम करे, वह लक्ष्य तक नहीं पहुँच सकता; जैसे छिलका रहित चावल कभी नहीं उगता।"
🪔 9. नैतिक शिक्षा
- सहायता माँगने में संकोच न करें — यह कमजोरी नहीं, बुद्धिमानी है।
- किसी को "निर्धन या अक्षम" समझ कर उपेक्षा मत करें — आप स्वयं भी कभी तुषविहीन तण्डुल हो सकते हैं।
- अकेले चलो, पर सहायता के पुल भी बनाते चलो।