संस्कृत श्लोक "सद्वृत्तेन हि तुष्यन्ति देवाः सत्पुरुषा गुरुः" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण
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आज का श्लोक सामाजिक व्यवहार, नैतिक जीवन, और विचारशीलता का एक सुंदर समन्वय है। यह बताता है कि अलग-अलग वर्गों के लोग किस प्रकार की संतुष्टि से प्रसन्न होते हैं — और यह भी कि सच्चा आचरण कितना व्यापक प्रभाव डालता है।
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संस्कृत श्लोक "सद्वृत्तेन हि तुष्यन्ति देवाः सत्पुरुषा गुरुः" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण |
✨ श्लोक ✨
सद्वृत्तेन हि तुष्यन्ति देवाः सत्पुरुषा गुरुः।ज्ञातयस्त्वन्नपानेन वाग्विशेषेण पण्डिताः॥
sadvṛttena hi tuṣyanti devāḥ satpuruṣā guruḥ।jñātayas tvannapānena vāg-viśeṣeṇa paṇḍitāḥ॥
🔍 शब्दार्थ व व्याकरण:
पद | अर्थ | व्याकरणिक टिप्पणी |
---|---|---|
सद्वृत्तेन | अच्छे आचरण से | "सद्" = शुभ; "वृत्ति" = व्यवहार |
हि | निश्चय ही / वास्तव में | अव्यय |
तुष्यन्ति | प्रसन्न होते हैं | धातु: तुष् (संतोष), लट् लकार |
देवाः | देवता | पुल्लिंग, प्रथमा बहुवचन |
सत्पुरुषाः | सज्जन व्यक्ति | पुल्लिंग, प्रथमा बहुवचन |
गुरुः | गुरुजन | प्रथमा एकवचन |
ज्ञातयः | कुटुंबीजन, रिश्तेदार | प्रथमा बहुवचन |
अन्नपानेन | भोजन-पेय से | तृतीया विभक्ति, द्वंद्व समास |
वाग्विशेषेण | विशेष/विचारित वाणी से | “वाक् + विशेष” = सुचिन्तित वाणी |
पण्डिताः | विद्वान लोग | प्रथमा बहुवचन |
🪷 भावार्थ:
“देवता, सत्पुरुष और गुरुजन अच्छे आचरण से प्रसन्न होते हैं।
रिश्तेदार (ज्ञाति) भोजन और पेय से संतुष्ट होते हैं, और विद्वान व्यक्ति सुंदर, सुसंस्कृत वाणी से प्रसन्न होते हैं।”
🌿 व्यावहारिक दृष्टांत:
जैसे एक व्यक्ति एक ही समय पर मंदिर में दर्शन, परिवार में भोज, और सभा में भाषण देने गया।
- मंदिर में उसका आचरण देखकर पुजारी ने कहा,
“यह सज्जन पुण्यात्मा है।”
- घर पर उसकी सेवा व आतिथ्य से सबने कहा,
“वाह! कितना अपनापन है!”
- और सभा में उसकी वाणी सुनकर विद्वान बोले,
“यह तो साक्षात् विवेक की वाणी है!”
इससे स्पष्ट हुआ कि हर वर्ग को प्रसन्न करने की अपनी-अपनी कसौटी है — और एक सज्जन व्यक्ति उन्हें सबमें सिद्ध करता है।
🌟 शिक्षा / प्रेरणा:
- आचरण (सद्वृत्ति) ही सबसे बड़ा यज्ञ है — जिससे देव, सत्पुरुष और गुरु संतुष्ट होते हैं।
- संपर्क में आने वाले लोगों की मनोवृत्ति को समझकर उनका यथोचित सम्मान करना ही विवेक है।
- विद्वानों के साथ तर्क नहीं, सुशब्द और विवेकयुक्त वाणी प्रयोग करना चाहिए।
- परिवारजन को सम्मान और स्नेह के साथ अन्न-सेवा देना भारतीय संस्कृति का मूल है।
🕯️ मनन योग्य पंक्ति:
"वाणी से पंडित को, आचरण से गुरु को,और सेवा से परिवार को जीत लो —फिर जीवन में कोई शत्रु नहीं रह जाएगा।"