संस्कृत श्लोक: "प्रथमे नार्जिता विद्या द्वितीये नार्जितं धनम्" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद

Sooraj Krishna Shastri
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संस्कृत श्लोक: "प्रथमे नार्जिता विद्या द्वितीये नार्जितं धनम्" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद

🙏जय श्री राम🌸सुप्रभातम्🙏
 प्रस्तुत श्लोक अत्यंत गूढ़ और जीवनोपयोगी नीति-सूत्र है। आइए इसका विस्तारपूर्वक अध्ययन करें — शब्दार्थ, व्याकरण, भावार्थ और आधुनिक परिप्रेक्ष्य में:
संस्कृत श्लोक: "प्रथमे नार्जिता विद्या द्वितीये नार्जितं धनम्" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद
संस्कृत श्लोक: "प्रथमे नार्जिता विद्या द्वितीये नार्जितं धनम्" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद



🪔 श्लोक:

प्रथमे नार्जिता विद्या द्वितीये नार्जितं धनम्।
तृतीयेनार्जितो धर्मश्चतुर्थे किं करिष्यति॥

📜 (अनुवाद):
"जीवन के पहले चरण में विद्या नहीं अर्जित की, दूसरे चरण में धन नहीं कमाया, तीसरे चरण में धर्म (पुण्य) नहीं किया — तो चौथे और अंतिम चरण में क्या करोगे?"


📘 1. शाब्दिक विश्लेषण:

पद अर्थ
प्रथमे पहले (जीवन के प्रथम चरण में)
नार्जिता नहीं अर्जित की गई
विद्या शिक्षा, ज्ञान
द्वितीये दूसरे (चरण में)
नार्जितं नहीं कमाया गया
धनम् धन
तृतीयेन तीसरे (चरण में)
आर्जितः अर्जित किया गया
धर्मः धर्म, पुण्य
चतुर्थे चौथे (चरण में)
किं करिष्यति क्या करेगा?

🧠 2. व्याकरणिक विश्लेषण:

  • प्रथमे, द्वितीये, तृतीयेन, चतुर्थेसप्तमी विभक्ति, पुंलिंग, एकवचन (काल-विशेष सूचक)
  • नार्जिता, नार्जितं, आर्जितःकृदन्त रूप, निषेधात्मक प्रयोग (न + आर्जित = नार्जित)
  • विद्या, धनम्, धर्मःप्रथम/द्वितीया विभक्ति, विषय वाचक संज्ञाएँ
  • किं करिष्यतिलृट् लकार (भविष्यत् काल), प्रथम पुरुष, एकवचन

💡 3. भावार्थ:

यह श्लोक जीवन के चार आश्रमों या चार काल-चरणों को संकेत करता है —

चरण आशय अपेक्षित उपलब्धि
प्रथम चरण बचपन-यौवन (विद्यार्थी अवस्था) विद्या-अर्जन
द्वितीय चरण युवावस्था (गृहस्थ आश्रम) धनार्जन, परिवार-निर्वाह
तृतीय चरण प्रौढ़ावस्था (वानप्रस्थ) धर्माचरण, पुण्य-संचय
चतुर्थ चरण वृद्धावस्था (संन्यास आश्रम) मोक्ष-साधना, त्याग

यदि पहले तीनों चरणों में आवश्यक योग्यताएँ अर्जित नहीं कीं, तो चौथे चरण में क्या साध्य रहेगा? जीवन की संध्या तो निष्क्रिय हो जाएगी।


🌍 4. आधुनिक सन्दर्भ में विवेचना:

🔹 1. शिक्षा (प्रथम चरण):

यदि युवा अवस्था में शिक्षा और कौशल नहीं अर्जित किया, तो आगे चलकर रोज़गार, आत्मनिर्भरता, सामाजिक प्रतिष्ठा नहीं मिल पाएगी।

🔹 2. आर्थिक सुरक्षा (द्वितीय चरण):

यदि कार्यक्षम अवस्था में मेहनत, धन-संचय और व्यवस्था नहीं की गई, तो बुढ़ापे में निर्भरता और दुख भोगना पड़ेगा।

🔹 3. धर्म और मूल्य (तृतीय चरण):

यदि प्रौढ़ावस्था में धर्म, दान, सेवा, सत्वगुण का अभ्यास नहीं हुआ, तो आत्मिक शांति और संतोष भी नहीं मिलेगा।

🔹 4. बुढ़ापे की निरर्थकता (चतुर्थ चरण):

चतुर्थ चरण में न शरीर समर्थ होता है, न मन। न विद्या है, न धन। और धर्म की भी पूँजी नहीं — तब जीवन की अंतिम वेला व्यर्थ और दुखद बन जाती है।


🔥 5. प्रेरक दृष्टांत:

🧓 कबीर का उपदेश:

"जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहिं।
सब अंधियारा मिट गया, दीपक देखा माहिं॥"

कबीर समझाते हैं कि समय रहते चेतो। समय निकल जाए तो प्रयत्न का फल भी नहीं।

📖 उपनिषदों का संकेत:

"विद्या और धर्म — दोनों समय पर अर्जित न हों, तो अंत में केवल पश्चाताप ही शेष रह जाता है।"


🏁 6. निष्कर्ष (सार):

जीवन के चारों चरणों का अपना-अपना धर्म है।
यदि आरंभिक तीन चरणों में अयोग्यता, प्रमाद या आलस्य हो —
तो अंतिम चरण में न तो जीवन उपयोगी रह जाता है, न मृत्यु स्वीकार्य।

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