संस्कृत श्लोक "अर्थानामर्जनं कार्यं वर्धनं रक्षणं तथा" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण
🌸 जय श्रीराम – सुप्रभातम् 🌸
आज का श्लोक हमें धन के प्रबंधन और सदुपयोग की महत्त्वपूर्ण शिक्षा देता है।
📜 संस्कृत मूल
अर्थानामर्जनं कार्यं वर्धनं रक्षणं तथा।
भक्ष्यमाणो निरादायः सुमेरुरपि हीयते॥
🔤 IAST Transliteration
arthānām arjanaṁ kāryaṁ vardhanaṁ rakṣaṇaṁ tathā ।
bhakṣyamāṇo nirādāyaḥ sumerur api hīyate ॥
🇮🇳 हिन्दी भावार्थ
- धन केवल अर्जित करना ही पर्याप्त नहीं है, उसे बढ़ाना और सुरक्षित रखना भी आवश्यक है।
- यदि कोई व्यक्ति बिना कमाए केवल उपभोग ही करता रहे, तो उसकी आवश्यकता पूरी करते-करते सुमेरु (सोने का पहाड़) भी घटने लगेगा।
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संस्कृत श्लोक "अर्थानामर्जनं कार्यं वर्धनं रक्षणं तथा" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण |
📚 व्याकरणिक विश्लेषण
- अर्थानाम् अर्जनम्: धन का अर्जन करना
- वर्धनम्: वृद्धि करना, बढ़ाना
- रक्षणम्: रक्षा करना, सुरक्षित रखना
- भक्ष्यमाणः: भक्षण करने वाला, उपभोग करने वाला
- सुमेरुः अपि हीयते: सुमेरु पर्वत भी क्षीण हो जाता है
🌼 नीति संदेश
👉 धन केवल कमाना ही पर्याप्त नहीं, बल्कि उसे बुद्धिमानी से बढ़ाना और सुरक्षित रखना भी जीवन का अनिवार्य अंग है।
👉 जो व्यक्ति बिना अर्जन के केवल उपभोग करता है, वह शीघ्र ही निर्धन हो जाता है।
👉 आय से अधिक व्यय करने पर, चाहे कितनी भी संपत्ति क्यों न हो, वह शीघ्र समाप्त हो जाती है।
🪔 जीवन से जुड़ा उदाहरण
- यदि कोई किसान खेत में अन्न उगाता है पर बीज बचाकर नहीं रखता, तो अगली ऋतु में भूखा रह जाएगा।
- यदि कोई व्यक्ति लाखों की संपत्ति का उत्तराधिकारी बने, पर स्वयं न कमाए और न बचाए, तो कुछ ही वर्षों में सब नष्ट हो जाएगा।
✅ शिक्षा
👉 धन कमाना, उसे बढ़ाना और उसकी रक्षा करना – ये तीनों ही जीवन की सफलता और स्थिरता के लिए आवश्यक हैं।